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अलबरूनी ने ”चाबहार” को बताया था भारत का प्रवेश द्वार, जाने देश को क्या होगा लाभ

मध्य युगीन यात्री अलबरूनी ने चाबहार को भारत का प्रवेश द्वार कहा था. रविवार को ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी ने चाबहार बंदरगाह के पहले चरण के निर्माण का उद्घाटन किया. चाबहार का मतलब चार झरने होता है. लंबे समय से भारत को इस परियोजना के पूरे होने की उम्मीद थी. इसकी भौगोलिक स्थिति ऐसी […]

मध्य युगीन यात्री अलबरूनी ने चाबहार को भारत का प्रवेश द्वार कहा था. रविवार को ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी ने चाबहार बंदरगाह के पहले चरण के निर्माण का उद्घाटन किया. चाबहार का मतलब चार झरने होता है. लंबे समय से भारत को इस परियोजना के पूरे होने की उम्मीद थी. इसकी भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि भारत का संपर्क यूरोप और अफ्रीका से आसानी से स्थापित हो सकता है. भारत इस मार्ग के जरिये मध्य एशिया, रूस और यहां तक कि यूरोप तक पहुंचने का प्रयास कर रहा है. चाबहार बंदरगाह को रेल नेटवर्क से भी जोड़ने का प्रस्ताव है और इसमें भी भारत मदद करेगा. मई 2016 में इस अंतरराष्ट्रीय मार्ग को बनाने का निर्णय लिया था, और तब से चाबहार बंदरगाह पर काम चल रहा है. वैसे इसके लिए भारत 2003 से ही प्रयासरत था.

भारत के लिए इस परियोजना को शुरू करना इसलिए भी जरूरी था क्योंकि चीन और पाकिस्तान की मदद से ग्वादर परियोजना चला रहा है.पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह चाबहार से मात्र 72 किलोमीटर दूर पर स्थित है. यहां पर चीन ने 46 अरब डॉलर (3,131 अरब रुपये ) का निवेश किया है. भारत और अफगानिस्तान के बीच यूं तो सबसे समीप का रास्ता पाकिस्तान से होकर गुजरता है लेकिन दोनों देशों के बीच खराब संबंधों के चलते अतीत में पाकिस्तान इस रास्ते में रोड़ा अटकाता रहा है. भारत ने पिछले महीने ही अफगानिस्तान को सहायता के रूप में 11 लाख टन गेहूं की एक खेंप भेजी है. भारत ने अफगानिस्तान को ये गेहूं मुफ्त में देने का वादा किया है.
भारत का मूंदड़ा पोर्ट चाबहार से मात्र 900 किलोमीटर दूर पर स्थित है. गुजरात के कच्छ स्थित मूंदड़ा पोर्ट भारत का सबसे बड़ा निजी पोर्ट है. मूंद्रा पोर्ट देश का सबसे पहला पोर्ट है, जहां 100 मिलीयन टन कार्गो के आयात – निर्यात एक साल के दौरान हुआ है. गौरतलब है कि भारत को चाबहार परियोजना के निर्माण कार्य में सुस्ती को लेकर आलोचना होते आयी है. जिस तेजी से चीन ग्वादर परियोजना के काम में पूर्ति दिखाई. उस तेजी से भारत चाबहार का काम आगे बढ़ नहीं पा रहा था. इस बीच ईरान ने चीन को बंदरगाह विकास के लिए प्रलोभन भी दिया था, लेकिन कुछ खास कारणों से ईरान और भारत के बीच इस बात को लेकर सहमति बन पायी. बीच में ईरान ने संकेत दिये थे कि अगर भारत इसमें रुचि नहीं लेता है तो ईरान चीन का प्रस्ताव स्वीकार कर सकता है. चीन ने चाबहार से ग्वादर तक रेल लाईन बिछाने की योजना भी रखी थी.
भारत के साथ क्या है समस्या
ईरान और अमेरिका के रिश्ते ट्रंप के आने के बाद बिगड़ते जा रहे हैं. ऐसी परिस्थिति में भारत के बंदरगाह विकास को लेकर कई बड़ी कंपनियां पीछे हट सकती है. ट्रंप ने परमाणु नीति को लेकर ईरान पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी.

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