आर्थिक सर्वे : कानूनी पचड़ों में फंसने से जीडीपी को 7.5 लाख करोड़ का नुकसान
आज संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक देश के न्यायिक व्यवस्था की वजह से करीब 7.5 लाख करोड़ का नुकसान होता है. यह राशि जीडीपी का करीब 4.7 प्रतिशत है. भारत विश्व बैंक की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (ईओडीबी), 2018 में पहली बार 30 स्थान उछलकर चोटी के 100 देशों में शामिल हो गया […]
आज संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक देश के न्यायिक व्यवस्था की वजह से करीब 7.5 लाख करोड़ का नुकसान होता है. यह राशि जीडीपी का करीब 4.7 प्रतिशत है. भारत विश्व बैंक की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (ईओडीबी), 2018 में पहली बार 30 स्थान उछलकर चोटी के 100 देशों में शामिल हो गया है, लेकिन धीमी न्यायिक व्यवस्था अब भी इसकी दुखती रग है. आर्थिक सर्वे के मुताबिक धीमी न्यायिक व्यवस्था में लंबित केस की वजह से प्रोजेक्ट के क्रियान्वन में देरी होती है. यही नहीं इसका टैक्स कलेक्शन पर भी पड़ता है. अटके प्रोजेक्ट का सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है.
Approximately 2.82 lakh tax cases worth 7.5 lakh crores, approximately 4.7% of GDP, are stuck in appellate litigation #economicsurvey18 https://t.co/i0m3KTlS7z pic.twitter.com/FqW86fC0FW
— Arvind Subramanian (@arvindsubraman) January 29, 2018
आर्थिक सर्वे में इस मुद्दे से निपटने के लिए अदालतें स्थगित मामलों को प्राथमिकता देने और सख्त समयसीमा लागू करने पर विचार करने का सुझाव दिया है, जिसके भीतर अस्थायी आदेश वाले मामलों पर फैसला दिया जा सकता है. इनमें विशेष रूप से सरकारी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं से जुड़े मामले शामिल होंगे. गौरतलब है कि इज ऑफ डूइंग बिजनेस में 10 बिन्दुओं पर किसी देश के कारोबारी माहौल का मूल्यांकन किया जाता है. इनमें इनफोर्सिंग कॉन्ट्रैक्ट शामिल है. इस सूचकांक में भारत की रैकिंग 174 से सुधरकर 164 वें स्थान पर पहुंचा था. अन्य सूचकांकों में भारत ने अच्छा प्रदर्शन किया था.
न्यायिक व्यवस्था से जुड़े यह है समस्या
सुप्रीम कोर्ट, हाइकोर्ट, इकोनॉमिक ट्रिब्यूनल और टैक्स डिपार्टमेंट में मामले लगातार बढ़ रहे हैं और इसकी संख्या लगातार बढ़ रही है. प्रोजेक्ट अटकने से कानूनी लागत में वृद्धि, कर राजस्व के लिए जूझने और निवेश में कमी के रूप में अर्थव्यवस्था को नुकसान हो रहा है.
मामलों के निपटान में देरी और उनके लंबित होने की वजह न्याय व्यवस्था पर काम का ज्यादा बोझ होना है, जिसके परिणाम स्वरूप क्षेत्राधिकार में विस्तार एवं कोर्ट द्वारा हिदायत देने और स्थगन आदेश देने जैसे मामले होते हैं. कर से संबंधित अभियोजनों में अपील के प्रत्येक चरण में लगातार विफल होने के बावजूद सरकार द्वारा मुकदमेबाजी पर अड़े रहने से ऐसी स्थिति पैदा होती है.
उच्चतम न्यायालय की सफलता के आधार पर ज्यादा विषय केन्द्रित और चरण केन्द्रित पीठ तैयार करना, जिससे अदालतों के लिए लंबित और विलंबितता से लड़ने में आंतरिक विशेषज्ञता विकसित करना संभव होता है.न्यायिक व्यवस्था विशेषकर आधुनिकीकरण और डिजिटलीकरण पर सरकारी व्यय में खासी वृद्धि करना.
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