बजट 2018-19 : मैन्यूफैक्चरिंग में निवेश को तवज्जो, जानें बजट से जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्य
आम बजट को ‘कामचलाऊ’, ‘लोकलुभावन’ और ‘ऐतिहासिक’ जैसी संज्ञाएं दी जा रही हैं. लेकिन, इसे न तो पूरी तरह से लोगों के अलग-अलग तबकों को तुष्ट करने के इरादे से लाया गया है, और न ही इसमें आर्थिक सुधारों को गति देने की कोई ठोस पहल की गयी है. सरकार ने गांव और गरीब पर […]
आम बजट को ‘कामचलाऊ’, ‘लोकलुभावन’ और ‘ऐतिहासिक’ जैसी संज्ञाएं दी जा रही हैं. लेकिन, इसे न तो पूरी तरह से लोगों के अलग-अलग तबकों को तुष्ट करने के इरादे से लाया गया है, और न ही इसमें आर्थिक सुधारों को गति देने की कोई ठोस पहल की गयी है. सरकार ने गांव और गरीब पर फोकस तो किया है, पर और बेहतर की गुंजाइश बनी हुई है. बजट के विभिन्न आयामों के विश्लेषण…
अरविंद मोहन
अर्थशास्त्री, लखनऊ विवि
इस बार अायकर में कोई बदलाव नहीं किया गया है, लेकिन 40 हजार रुपये की छूट दी गयी है. टैक्स में कमी करने जैसा ही प्रभाव इस कटौती का होगा. इसका फायदा भी लक्षित वेतनभोगियों को ही मिलेगा. ईपीएफ में सरकारी हिस्सेदारी का दायरा बढ़ाने और विशेषकर महिलाओं को ईपीएफ कटौती में दी गयी छूट एक प्रकार से डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांफसर की कवायद के रूप में देखी जा सकती है. इससे कामकाजी लोगों, खासकर कम आय वालों को फायदा देने की कोशिश की गयी है.
कॉरपोरेट टैक्स में छूट
कुछ वस्तुओं पर कस्टम ड्यूटी बढ़ाने की कवायद को बड़े परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए. इस बजट से तीन बड़े संकेत दिख रहे हैं. पहला, वर्षों बाद सरकार ने शेयर बाजार पर टैक्स लगा दिया है.
दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ (लांग टर्म कैपिटल गेन) पर 10 प्रतिशत टैक्स लगाया गया है. अगर आप शेयर को एक वर्ष से ज्यादा रख रहे हैं, तो 15 प्रतिशत का टैक्स देना होगा. दूसरा, मध्यम वर्ग उद्यमों को सरकार ने कॉरपोरेट टैक्स में छूट दी है. अब 250 करोड़ तक टर्नओवर वाले उद्यमों को 25 प्रतिशत कॉरपोरेट टैक्स देना होगा. तीसरी बात, मोबाइल और टीवी पर कस्टम ड्यूटी बढ़ा दी गयी है. आज देश में बचत का बड़ा हिस्सा शेयर बाजार में चला जा रहा है. अन्य प्रकार की आय पर टैक्स देना पड़ता है. जबकि, आप शेयर बाजार में निवेश करते हैं, तो आपको टैक्स नहीं देना पड़ता है. यही वजह है कि आम निवेशक को शेयर बाजार ज्यादा आकर्षित करता है.
मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में निवेश
बीते वर्षों के उलट इस बार सरकार की यह मंशा है कि मैन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र में निवेश को आकर्षित किया जाये. पहले सरकार का प्रयास था कि सरकार का पैसा शेयर बाजार के माध्यम से कॉरपोरेट के पास जाये. अब सरकार करों में बदलाव कर मैन्यूफैक्चरिंग की तरफ निवेश को मोड़ने का प्रयास कर रही है और इसका आनेवाले वर्षों इसका प्रभाव दिखेगा.
मैन्यूफैक्चरिंग को ही ध्यान में रख कर सरकार 250 करोड़ टर्नओवर वाले उद्यमों को 25 प्रतिशत के दायरे में लाने का फैसला किया है. सरकार मध्यम वर्ग को उद्यमों पर विशेष रूप से फोकस करती दिख रही है. यही वह क्षेत्र है, जो मैन्यूफैक्चरिंग में सबसे ज्यादा शामिल होता है. कस्टम ड्यूटी बढ़ाने से देश में ‘मेक इन इंडिया’ के तहत प्रोडक्शन को बढ़ावा मिले. आज नोएडा जैसे इलाकों में बड़ी संख्या में मल्टी नेशनल कंपनियां मोबाइल प्रोडक्शन बेस सेट-अप की हुई हैं.
यहां उत्पादन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि एक्साइज ड्यूटी में कोई बढ़ोतरी नहीं की गयी है. कस्टम ड्यूटी बढ़ने से बाहर से आनेवाले कंपोनेंट महंगे जरूर हो जायेंगे. आयातित वस्तुओं पर 10 प्रतिशत सोशल वेल्फेयर सरचार्ज लगाने की घोषणा की गयी है. विदेशों से आयातित वस्तुएं थोड़ी महंगी होंगी, लेकिन घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा. लघु उद्यमों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार को एक बड़ी पहल करनी चाहिए थी. खास तौर पर उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश आदि प्रदेशों के उद्यमों से होनेवाले उत्पादन का कुछ हिस्सा देश के भीतर खप जाता है और हमारे निर्यात में 45 प्रतिशत का हिस्सा इन लघु उद्यमों से पूरा होता है.
लघु उद्यमों के लिए पहल जरूरी
उदारीकरण के शुरुआत में भी इन उद्यमों को प्रोत्साहित करने के बजाये नुकसान पहुंचाया गया. इन उद्यमों के लिए दूसरे पीढ़ी के सुधार की यहां सख्त जरूरत थी, जो सरकार नहीं कर सकी. उत्तर प्रदेश को ही लें, तो ब्राश और कारपेट इंडस्ट्री समेत तमाम पारंपरिक उद्यम सिकुड़ते जा रहे हैं. एक बड़ा कारण है कि आपका लैंड-लॉक्ड हैं, पोर्ट तक ले जाने की एक अतिरिक्त लागत हो जाती है. इनके सुधार के लिए तरजीह देने का प्रयास होता नहीं दिख रहा है.
बीते महीनों में हुए ढांचागत बदलाव का इन क्षेत्रों पर ज्यादा प्रभाव पड़ा है. उद्यमियों को इस खर्च से कैसे सहूलियत मिले, इस पर सोचने की जरूरत है. खास कर निर्यात पर निर्भर क्षेत्रों के लिए बड़े प्रयास की दरकार थी. कृषि क्षेत्र में नये सिरे से सुधार की पहल करने की जरूरत है. सलाना लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपये का खाद्यान्न सड़ जाता है. कारण, आपके पास उचित व्यवस्था नहीं है. अगर हम इसे बचा पाये, तो इसका असर जीडीपी ग्रोथ में दिख सकता है.
स्किल डेवलपमेंट योजना
मुद्रा योजना की बात करें, तो सिर्फ आवंटन से काम पूरा नहीं हो जाता है. हम बाजार से इन उद्यमों को कैसे जोड़ें, यह बड़ी चुनौती है. इन उद्यमों का आकार और औकात दोनों छोटी है. एक व्यवस्थित कार्ययोजना ही इन्हें लंबी अवधि तक जिंदा रख सकती है.
कृषि और लघु उद्यमों के हालात और चुनौतियां लगभग एक जैसेे हैं. वित्त मुहैया करा देने मात्र से इनका विकास नहीं होगा. हमारे पास आज तक आंकड़ें नहीं हैं, जिससे यह तय कर सकें, कि छोटे उद्यमियों को क्या उत्पादन और उसकी खपत कैसे करनी चाहिए. आज की तारीख में न तो हमें क्षमता मालूम है और न ही अपने संसाधन. दूसरी समस्या प्रशिक्षित कार्यबल की है.
स्किल डेवलपमेंट के लिए बहुत बड़ी योजना चल रही है, लेकिन चुनौतियां बरकरार है. हम नया प्लेटफाॅर्म बनाने की कोशिश में हैं, लेकिन मौजूद व्यवस्था पर सुधार के इच्छुक नहीं हैं. इससे यही स्पष्ट होता है कि देश में मैनपावर प्लानिंग जैसी कोई चीज है ही नहीं. हम समग्र कार्ययोजना बनाने से चूक रहे हैं. इसके लिए हमें कहीं-न-कहीं से एक शुरुआत करनी होगी.
(ब्रह्मानंद मिश्र से बातचीत पर आधारित)
बजट
किसानों को मिलेगा लाभ
इस बार का बजट गांव और गरीब के नाम रहा
अश्वनी महाजन
अर्थशास्त्री, दिल्ली विवि
मोदी सरकार का अंतिम ‘पूर्ण बजट’, गांव और गरीब के लिए समर्पित बजट कहा जायेगा. इसकी तो कतई आशा नहीं थी कि सरकार समर्थन मूल्य को सभी फसलों पर लागू करने को सैद्धांतिक स्वीकृति दे देगी. ये बातें इस बजट में संभव हो पायीं, यह वास्तव में किसानों को प्रसन्न करेगा. गौरतलब है कि सरकारी तंत्र में लोग भी लगातार इस वायदे को लागू करने संबंधी बात करने से कतराया करते थे.
यही नहीं किसानों के अतिरिक्त ग्रामीण क्षेत्र में रहनेवाले अन्य भूमिहीन लोग, जो खेती नहीं करते, लेकिन मत्स्य पालन, पशुपालन इत्यादि गतिविधियों में संलग्न है, कल्पना नहीं करते थे कि उन्हें किसान क्रेडिट कार्ड के रूप में कभी कृषि ऋण मिल पायेगा, अब किसान क्रेडिट कार्ड के हकदार बन जायेगें. यह उनके लिए एक स्वप्न सरीखी बात ही कही जायेगी.
लंबे समय से ऐसा महसूस किया जा रहा था कि वर्तमान विकास का मॉडल रोजगार सृजन में असफल हो रहा है. निवेश के लिए तो तमाम प्रकार की सुविधाएं दी जाती थी, लेकिन रोजगार सृजन के लिए कोई छूट नहीं मिलती थी. लेकिन पिछले कुछ समय से सरकार द्वारा अतिरिक्त रोजगार सृजन पर आयकर में छूट, वस्त्र और अन्य कुछ उद्योगों में अतिरिक्त रोजगार देने पर कर्मचारी भविष्य निधि में सहयोग इत्यादि शुरू हुआ था. इस बजट में इसे और आगे बढ़ाते हुए अभी सभी उद्योगों में अतिरिक्त रोजगार देने पर कर्मचारी भविष्य निधि में 12 प्रतिशत योगदान सरकार से दिया जायेगा, ऐसी घोषणा बजट में हुई है, जो स्वागत योग्य है.
यही नहीं लघु उद्योगों को वित्त समेत कई उपायों से प्रोत्साहन देने की बात हुई है, जिससे रोजगार सृजन में मदद मिलेगी. ग्रामीण क्षेत्रों में भी रोजगार के अतिरिक्त अवसर बांस और बांस से बनी वस्तुओं के निर्माण, गैर कृषि ग्रामीण गतिविधियों को बढ़ावा सहित कई उपाय हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार बढ़ा सकते हैं.
लंबे समय से यह बात सिद्ध होती जा रही है कि गरीबों को स्वास्थ्य की सरकारी सुविधाएं उपलब्ध न होने के कारण उनकी निर्भरता निजी क्षेत्र के अस्पतालों पर बढ़ती जा रही है, जिसके चलते वे लगातार कर्ज के बोझ में दब रहे हैं. गरीबों को ओर गरीब करने में स्वास्थ्य संबंधी खर्चें प्रमुख कारण है.
ऐसे में 10 करोड़ परिवारों के लिए यानी लगभग 50 करोड़ लोगों के लिए दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य रक्षक योजना शुरू करने की घोषणा गरीबों के लिए एक बड़ी राहत का सबब बन रही है, जिसके अनुसार सभी परिवारों को 5 लाख रुपये तक की स्वास्थ्य खर्च संबंधी सहायता उपलब्ध होगी. देखना होगा कि यह कैसे लागू होती है, लेकिन सैद्धांतिक रूप से इस योजना की घोषणा ही एक बहुत बड़ा कदम है, जिसे सराहा जाना चाहिए.
ल विश्वविद्यालय बनेगा
रेल बजट में अब पहले जैसी कोई बात नहीं रही
अरविंद कुमार सिंह
पूर्व सलाहकार, भारतीय रेल
चुनौतियों से जूझ रही भारतीय रेल के बजट आवंटन में बढ़ोत्तरी के साथ केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मुसाफिरों पर किसी तरह का कोई बोझ नहीं डाला है. उनका दावा किया है कि रेलवे नेटवर्क को मजबूत करना और ढुलाई क्षमता बढ़ाना सरकार का प्रमुख केंद्र बिंदु रहा है.
सरकार ने 2018-19 के लिए रेलवे का पूंजीगत व्यय 1.48 लाख करोड़ से अधिक किया है और कई नयी पहल भी. बजट में रेल बजट के समाहित होने का यह दूसरा साल है. रेलवे के नीति निर्धारकों को पहली बार यह नजर भी आने लगा है कि देश की लाइफ लाइन कहा जानेवाला यह महकमा अब बाकी महकमों से अलग नहीं रहा.
बेशक सरकर ने सुरक्षा संरक्षा को प्राथमिकता दी है और कुछ नयी पहल भी की जानेवाली है.फिलहाल रेलवे का जोर क्षमता सृजन पर है. इसके तहत 18 हजार किमी रेल मार्ग के दोहरीकरण, तिहरीकरण आदि के साथ पांच हजार किमी आमान परिवर्तन पर जोर है, जिससे सारा नेटवर्क बड़ी लाईन में बदल जायेगा और इससे क्षमता बढ़ जायेगी. 2018-19 में रेलवे 12,000 माल डिब्बों और 5160 सवारी डिब्बों के साथ 700 इंजनों की भी खरीदारी करेगी. वहीं सुरक्षा के मद्देनजर 4267 मानव रहित समपारों को भी दो साल में समाप्त कर दिया जायेगा. रेलवे स्टेशनों पर यात्री सुविधाओं के विकास की दिशा में भी कुछ कदम उठे हैं. इस साल पहला आधुनिक ट्रेन सेट चालू होंगे और मुंबई और बंगलूरू मे मेट्रो रेल के विस्तार के साथ वडोदरा में रेल विवि बनेगा.
लेकिन मोदी सरकार के इस आखिरी पूर्ण बजट में दूसरे तमाम पक्षों के साथ सबकी निगाहें इस पर लगी थी कि वह भारतीय रेल के कायाकल्प के लिए क्या नये कदम उठाती है. हाल के सालों में लगातार हुई रेल दुर्घटनाओं ने दर्शा दिया था कि वह चरमरा रही है और इस क्षेत्र में भारी निवेश की दरकार है.
पिछले बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने समन्वित परिवहन ढांचे पर जोर दिया था और रेलवे के हिस्से में 1.31 लाख करोड़ का प्रावधान किया था. इस बार यह बढ़ कर 1.48 लाख करोड़ हो गया. सुरक्षा, पूंजीगत और विकास कार्यों, स्वच्छता और वित्त तथा लेखा सुधारों पर रेलवे ने बीते एक सालों में खास फोकस किया है और कई महत्वाकांक्षी योजना बनायी गयी है. लेकिन इसके लिए जिन संसाधनों की दरकार है वह जुटा नहीं पा रहा है.
रेलवे के समक्ष सबसे बड़ी तात्कालिक चुनौती अगले साल यानी 2019 तक सालाना डेढ़ अरब टन माल वहन क्षमता बढ़ाने का है. इसी तरह प्रधानमंत्री के सुझाव के तहत रेलवे जिन खास प्राथमिकताओं पर काम कर रहा है, उसमें पांच साल में माडल शेयर बढ़ाकर 37 फीसदी करना भी शामिल है. इस दिशा में अभी खास प्रगति नहीं दिख रही है.
बजट से जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्य
भारतीय संविधान में बजट शब्द का उल्लेख कहीं भी नहीं किया गया है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 112 में केंद्रीय बजट को वार्षिक वित्तीय विवरण के रूप में निर्दिष्ट किया गया है और इसी वित्तीय विवरण को हर साल आम बजट के रूप में प्रस्तुत किया जाता है.बजट के जरिये सरकार वित्त वर्ष (1 अप्रैल से 31 मार्च) के लिए अपने अनुमानित खर्चों और आय का ब्यौरा पेश करती है.
वित्त वर्ष 2017-2018 से पहले प्रत्येक वर्ष फरवरी के अंतिम कार्य-दिवस को भारत के वित्त मंत्री संसद में बजट पेश करते रहे हैं. लेकिन वर्ष 2017 से इसे फरवरी के पहले दिन पेश किया जा रहा है.
संविधान के अनुसार, बजट को लागू करने से पूर्व संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित करना आवश्यक होता है. इसके बाद राष्ट्रपति की मंजूरी लेनी होती है और उसके बाद 1 अप्रैल से यह प्रभावी हो जाता है.
वर्ष 1924 में भारत का पहला रेल बजट पेश हुआ था और तब से इसे आम बजट से अलग पेश किया जाता था, क्योंकि तब देश के कुल बजट में रेलवे की हिस्सेदारी तकरीबन 70 प्रतिशत थी. लेकिन धीरे-धीरे यह हिस्सेदारी घटकर लगभग 15 प्रतिशत रह गयी. इसी कारण वर्ष 2017 में सरकार ने अलग से रेल बजट पेश करने का प्रावधान खत्म कर इसे आम बजट में शामिल कर दिया.
बजट के प्रभाव
कुछ ज्यादा करने की गुंजाइश नहीं
मोहन गुरुस्वामी
अर्थशास्त्री
सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि आम बजट में सरकार के लिए ज्यादा कुछ करने की गुंजाइश रहती नहीं है. इसलिए बजट को लेकर हमें ज्यादा उत्साहित नहीं होना चाहिए. केंद्र सरकार के लगभग 87 फीसदी खर्चे पहले से तय होते हैं. शेष 13 फीसदी में ही उसके लिए कुछ नया करने की गुंजाइश बचती है. राज्य सरकारों को उसे 24 फीसदी देना होता है.
करीब 10 प्रतिशत केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित योजनाओं जैसे नेशनल हाइवेज, सिंचाई परियोजनाओं, पेयजल परियोजनाओं आदि के मद में चला जाता है. करीब 18 फीसदी रकम लोन की ब्याज चुकायी जाती है. करीब नौ फीसदी रक्षा खर्च में चला जाता है और लगभग 10 प्रतिशत सब्सिडी मद में आबंटित की जाती है. वित्त आयोग के नियमों के तहत पिछड़े राज्यों को विशेष पैकेज के तौर पर पांच फीसदी रकम मुहैया करायी जाती है.
इसके अलावा, कर्मचारियों को वेतन देने और पेंशन की रकम समेत विविध तय खर्चों को भी इसमें शामिल कर लें, तो केंद्र सरकार के पास बजट में कुछ नया करने के लिए केवल 13 फीसदी के करीब ही रकम बचती है. इसी में अन्य सभी चीजों को समायोजित करना होता है. सरकारें हमेशा कहती हैं कि हम इसके बूते बड़ा बदलाव कर देंगे, जो अगले साल होने की उम्मीद के सहारे आगे बढ़ती रहती है. इसका दूसरा पहलू यह भी है कि सरकार हमारे लिए उतने में से ही खर्च कर सकती है, जितना वह बाजार से वसूल सकती है.
हेल्थ सेक्टर में केंद्र सरकार देश के 40 प्रतिशत लोगों को स्वास्थ्य बीमा की सुविधा मुहैया करायेगी. वेतनभोगी तबके को ज्यादा कुछ राहत नहीं दी गयी. आय कर में स्टैंडर्ड डिडक्शन के नाम पर भले ही उसके लिए 40,000 रुपये कटौती कर दी जायेगी, लेकिन एक फीसदी एजुकेशन सेस लगाकर इस तबके से रकम वसूली के पूरे इंतजाम कर लिये गये हैं.
स्टैंडर्ड डिडक्शन के नाम पर आठ हजार करोड़ रुपये की रियायत दी, लेकिन एजुकेशन सेस के जरिये इससे अधिक वसूल लिया जायेगा.
उज्ज्वला गैस स्कीम के तहत आठ करोड़ लोगों को रसोई गैस सिलिंडर का कनेक्शन देने का लक्ष्य रखा गया है. लेकिन आंकड़े से पता चलता है कि इनमें से अधिकतर लोग दो-तीन बार के बाद सिलिंडर खरीदने के लिए कम ही आ रहे हैं. गैस सिलिंडर की कीमत लगातार बढ़ायी जा रही है. इससे सिलिंडर बनानेवालों को और गैस का काराेबार करनेवालों को ही फायदा है.
जहां तक अर्थव्यवस्था को सुधारते हुए पटरी पर लाने की बात है, तो जीडीपी में कोई खास बढ़त नहीं हुई है. उल्लेखनीय है कि जीडीपी जब बढ़ता है, तो खर्चे बढ़ते हैं और अर्थव्यवस्था में सुधार होता है.
(कन्हैया झा से बातचीत पर आधारित)
कमेंट
कपड़ा उद्योग में आवंटन एक सराहनीय कदम
बहुत छोटे, छोटे और मझोले स्तर के उद्यमों वाले वस्त्र क्षेत्र के लिए 7140 करोड़ रुपये का आवंटन बहुत बड़ा कदम है. सभी क्षेत्रों के लिए 12 फीसदी प्रोविडेंट फंड की दर बड़ी राहत है. और, महिला कामगारों के लिए आठ फीसदी का प्रावधान सभी क्षेत्रों, खासकर वस्त्र उद्योग, में रोजगार बढ़ाने में सहायक होगा.
एचकेएल मागु, अध्यक्ष, वस्त्र निर्यात प्रोमोशन कौंसिल
मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर के िलए अच्छी नीतिगत पहल
संघीय बजट में वित्त मंत्री द्वारा घोषित नयी औद्योगिक नीति एक अच्छी
पहल है. नयी नीति के तहत यदि उद्योग को बढ़ावा देने के लिए एक जगह कई तरह के उद्यम लगाये जाते हैं, तो समूचे मैन्यूफैक्चरिंग चेन के लिए यह मददगार होगा.
पीसी त्रिपाठी, अध्यक्ष, डिफेंस एंड स्ट्रेटेजिक इंडस्ट्रीज एसोसिएशन ऑफ इंडिया
फूड पार्कों के बाहर के उद्यमों पर ध्यान देना जरूरी
खाद्य क्षेत्र में जो नये आवंटन घोषित हुए हैं, वह निश्चित रूप से सरकार की अच्छी पहल हैं. हालांकि यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार फूड पार्कों से बाहर स्थित उद्योगों तथा छोटे और मझोले उद्यमों की बजटिंग पर भी ध्यान देगी. देश में खाद्य प्रसंस्करण के 99 फीसदी छोटे और मझोले उद्यम फूड पार्कों से बाहर स्थित हैं. इसलिए फूड पार्क पर केंद्रित नीति से आगे बढ़ने की जरूरत है.
सागर कुराडे, पूर्व अध्यक्ष, ऑल इंडिया फूड प्रोसेसर्स एसोसिएशन
वैश्विक बाजार में कंपीिटशन के िलए बहुत कुछ करना बाकी
वित्त मंत्री द्वारा 250 करोड़ तक के छोटे एवं मझोले उद्यमों के लिए 25 फीसदी करों की घोषणा स्वागतयोग्य तो है, परंतु अर्थव्यवस्था
और कारोबार पर असर डालने के लिहाज से कम ही है. अमेरिका समेत दुनियाभर में ऊंची दरों में कमी आ रही है, ऐसे में वैश्विक प्रतिद्वंद्विता में भारत को आगे रखने के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है.
मिलिंद कोठारी, प्रबंध सहयोगी, बीडीओ इंडिया
बीमा प्रीमियम में सरकार को सब्सिडी देनी चाहिए
हेल्थ बीमा की मौजूदा योजना एक शुरूआती और प्रयोगधर्मी कोशिश होगी. लगता है कि इसमें सरकारी और निजी क्षेत्र की बीमा कंपनियों की भागीदारी होगी. इस संदर्भ में सही चीज यह है कि सरकार आंशिक रूप से प्रीमियम पर सब्सिडी दे और कामकाज तथा जोखिम उठाने की जिम्मेदारी निजी क्षेत्र को दे दे.
जॉयदीप के रॉय, बीमा भागीदार, पीडब्ल्यूसी इंडिया
Disclaimer: शेयर बाजार से संबंधित किसी भी खरीद-बिक्री के लिए प्रभात खबर कोई सुझाव नहीं देता. हम बाजार से जुड़े विश्लेषण मार्केट एक्सपर्ट्स और ब्रोकिंग कंपनियों के हवाले से प्रकाशित करते हैं. लेकिन प्रमाणित विशेषज्ञों से परामर्श के बाद ही बाजार से जुड़े निर्णय करें.