मुंबई : दुनियाभर के शेयर बाजार में पिछले दिनों से आयी गिरावट के बाद लोग हैरान हैं कि आखिर ऐसा क्या हो गया, जिसकी वजह से शेयर मार्केट धराशायी हो गये. दरअसल बॉन्ड की यील्ड दुनियाभर में उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है, जिसकी वजह से शेयर बाजार में गिरावट आ रही है. बॉन्ड यील्ड, यानी बॉन्ड पर मिलने वाला रिटर्न होता है. बॉन्ड यील्ड बढ़ने का मतलब बॉन्ड से ज्यादा कमाई होता है.
अमेरिका में बॉन्ड यील्ड 4 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गयी है. जर्मन बॉन्ड में भी उछाल दिखा है, जबकि भारत में भी 10 साल के बॉन्ड की यील्ड बढ़ गयी है. खबर ये है कि भारत में बॉन्ड यील्ड यानी बॉन्ड पर ब्याज 12 महीने के रिकॉर्ड 7.55 फीसदी के आसपास है. ऐसे में निवेशकों का रुझान बॉन्ड की ओर बढ़ता जा रहा है और निवेश के बाकी माध्यमों से वै पैसे निकाल रहे हैं.
बॉन्ड को सुरक्षित निवेश माना जाता है. इसमें मुनाफा भी फिक्स होता है, जबकि शेयर बाजार में बाकी निवेश जोखिम वाले हैं. ऐसे में लोगों अपना पैसा बॉन्ड में लगाना चाहते हैं.बॉन्ड से मिलने वाले लाभ से करीब-करीब5फीसदी ज्यादा फायदामिलनेकीस्थितिमें हीनिवेशक शेयर बाजार में पैसा लगाते हैं.ऐसे में लोगों का रुझान बाजारकेबाकी माध्यमों से हटकर बॉन्ड की ओर होता है और बाजार में गिरावट आती है.
भारत में क्या पड़ा असर
भारतीय शेयर बाजारों में भारी उथल पुथल के बीच एक और बड़ी गिरावट दर्ज की गयी और बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स 561 अंक लुढ़ककर एक महीने के न्यूनतम स्तर 34,195.94 अंक पर आ गया. अमेरिकी बाजार में भारी गिरावट से एशिया समेत पूरी दुनिया के बाजारों में इस समय भूचाल आया हुआ है. भारतीय बाजारों में यह लगातार छठा कारोबारी सत्र है जब बाजार में गिरावट बनी रही. बाजार की शुरुआत आज गिरावट के साथ हुई.
सेंसेक्स कारोबार शुरू होने के कुछ ही मिनटों में करीब 1,275 अंक का गोता लगाते हुए 34,000 अंक के नीचे आ गया जबकि एनएसई निफ्टी 390 अंक नीचे चला गया. निफ्टी भी 168.30 अंक या 1.58 प्रतिशत की गिरावट के साथ 10,498.25 अंक पर बंद हुआ.
क्या है बॉन्ड यील्ड
हर बॉन्ड का एक फेस वैल्यू होता है. यह वह रकम होती है जिसके लिए बॉन्ड जारी किया जाता है और जो बॉन्ड की मेच्योरिटी के बाद धारक को वापस मिलती है. हर बॉन्ड का एक कूपन होता है, यह उस बॉन्ड पर मिलने वाला ब्याज होता है. किसी भी बॉन्ड को खरीदने से पहले उसकी यील्ड से यह पता लगाया जाता है कि मेच्योरिटी के बाद कितना पैसा मिलेगा.
बॉन्ड के भाव बढ़ने और घटने का असर उसकी यील्ड पर विपरित पड़ता है. अगर किसी बॉन्ड का भाव बढ़ता है तो उसकी यील्ड घट जाती है और अगर किसी बॉन्ड का भाव घटता है तो उसकी यील्ड बढ़ जाती है. इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है.
जैसे भारत सरकार ने अगर तीन साल पहले कोई बॉन्ड जारी किया था, जिसका फेस वैल्यू 100 रुपये था और उसका कूपन या ब्याज दर 7 फीसदी था और उसकी मेच्योरिटी 30 साल थी. वहीं तीन साल बाद सरकार एक और बॉन्ड बेचती है जिसका फेस वैल्यू भी 100 रुपये है. लेकिन उसका कूपन या ब्याज दर 6 फीसदी है. ऐसे में कोई भी व्यक्ति ज्यादा रिटर्न के लिए तीन साल पुराना बॉन्ड खरीदना चाहेगा.
ऐसे में 100 रुपये के फेस वैल्यू वाला बॉन्ड का भाव बढ़ेगा और वह 100 रुपये से ज्यादा का हो जायेगा. यह 120 रुपये या फिर 110 रुपये का भी हो सकता है. ऐसे में उसका कूपन या ब्याज दर 7 फीसदी ही होगा. मतलब इस बॉन्ड के धारक को 7 रुपये सालाना ब्याज मिलेगा.
ऐसे में अगर धारक ने 100 रुपये फेस वैल्यू वाले पुराने बॉन्ड को 120 रुपये में खरीदा है तो ब्याज 7 फीसदी सालाना मिलेगा, लेकिन वह फेस वैल्यू का 7 फीसदी होगा. मतलब 100 रुपये का 7 फीसदी, नाकि 120 रुपये का 7 फीसदी. ऐसे में लागत बढ़ जाने से मुनाफा घट जायेगा.
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