नयी दिल्ली : रिजर्व बैंक कुछ और समय तक नीतिगत दरों को यथावत रख सकता है. इसका कारण 2018-19 में मुद्रास्फीति के 4.5 प्रतिशत के आसपास पर बने रहने की संभावना है. एक रिपोर्ट में यह कहा गया है. कोटक इकोनोमिक रिसर्च के अनुसार एक अप्रैल से शुरू अगले वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति 4.5 प्रतिशत के आसपास बनी रह सकती है. यह 4 प्रतिशत के लक्ष्य से अधिक है.
ऐसे में रिजर्व बैंक सतर्कता बरत सकता है. इसमें कहा गया है, ‘हमारा अनुमान है कि रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) यथास्थिति बनाये रख सकती है, क्योंकि उसे मानसून, सर्दियों के बाद भी कच्चे तेल की ऊंची कीमतों के उच्च स्तर पर बने रहने तथा वैश्विक वित्तीय स्थिति को लेकर चीजों के स्पष्ट होने की प्रतीक्षा करेगी.’
रिजर्व बैंक का ध्यान उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित खुदरा मुद्रास्फीति पर बना हुआ है. इसके अलावा मानसून, कच्चे तेल की ऊंची कीमत तथा वैश्विक वित्तीय स्थिति पर भी उसकी नजर है. रिपोर्ट के मुताबिक, ‘कम क्षमता उपयोग तथा वृद्धि में पुनरूद्धार के शुरूआती चरण को देखते हुए रिजर्व बैंक संभवत: नीतिगत दरों को यथावत रख सकता है.’
हालांकि, रिजर्व बैंक के अनुमान के विपरीत मुद्रस्फीति में यदि तीव्र वृद्धि होती है तो आरबीआई अपने तटस्थ रुख पर नये सिरे से गौर कर सकता है और नीतिगत दर को कड़ा कर सकता है. केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के अनुसार खाद्य वस्तुओं के सस्ता होने तथा ईंधन लागत में कमी से खुदरा मुद्रास्फीति फरवरी में घटकर 4.44 प्रतिशत रह गयी.
फरवरी में खुदरा मुद्रास्फीति में कमी के बाद उद्योग अगले महीने की मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दर में कटौती की अपेक्षा कर रहा है. रिजर्व बैंक पांच अप्रैल को मौद्रिक नीति की अगली समीक्षा करेगा. शीर्ष बैंक ने मुद्रास्फीति में वृद्धि की आशंका के मद्देनजर फरवरी में नीतिगत दर को यथावत रखा था.
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