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PNB ने अपने भ्रष्ट कर्मियों पर सीवीसी की सलाह को किया था नजरअंदाज…!

नयी दिल्ली : घोटाले में फंसे सार्वजनिक क्षेत्र के पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) ने अपने कथित रूप से भ्रष्ट स्टाफ (कर्मचारियों) के खिलाफ कार्रवाई करने की केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की सलाह को नजरअंदाज किया था. सीवीसी ने पीएनबी और कुछ अन्य सरकारी संगठनों को इस बारे में सलाह दी थी. संसद में हाल में […]

नयी दिल्ली : घोटाले में फंसे सार्वजनिक क्षेत्र के पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) ने अपने कथित रूप से भ्रष्ट स्टाफ (कर्मचारियों) के खिलाफ कार्रवाई करने की केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की सलाह को नजरअंदाज किया था.

सीवीसी ने पीएनबी और कुछ अन्य सरकारी संगठनों को इस बारे में सलाह दी थी. संसद में हाल में पेश सीवीसी की 2017 की वार्षिक रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख है कि पीएनबी ने उसकी सलाह की अनदेखी की थी.

यह रिपोर्ट ऐसे समय आयी है जबकि पीएनबी 13,000 करोड़ रुपये के ऋण घोटाले में कई एजेंसियों की जांच का सामना कर रहा है. इस घोटाले के सूत्रधार आभूषण कारोबारी नीरव मोदी और उसके मामा गीतांजलि जेम्स के प्रवर्तक मेहुल चोकसी है.

सीवीसी की ताजा रिपोर्ट में ऐसे मामले का जिक्र है, जिसमें पीएनबी ने एक कंपनी को 200 लाख रुपये की नकद ऋण (सीसी) सीमा और 150 लाख रुपये का मियादी ऋण देहरादून में एक विनिर्माण इकाई लगाने के लिए दिया था.

यह कर्ज ऐसी संपत्ति को गिरवी रखकर दिया गया था, जो अव्यावहारिक थी. यह कर्ज शेयर, संयंत्र और कारखाना जमीन को बंधक रखकर दिया गया था, जिसका मूल्य 42 लाख रुपये था.

इसके अलावा कर्ज के लिए दिल्ली में एक अचल संपत्ति को गिरवी रखा गया था. सीवीसी ने कहा कि इसके अलावा 150 लाख रुपये की नकदऋण सीमा और 50 लाख रुपये का सावधि ऋण दूसरी यूनिट लगाने के लिए दिया गया.

मौजूदा गिरवी रखी गयी संपत्ति पर देनदारी की अवधि बढ़ा दी गयी और दिल्ली की दूसरी अचल संपत्ति को भी गिरवी रखा गया. रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंक ने दिल्ली की दोनों संपत्तियों के दस्तावेजों और उनके स्थल के बारे में छानबीन नहीं की.

एक संपत्ति के मामले में विक्रेता सही मालिक नहीं था और दूसरी ग्राम सभा की जमीन थी. दोनों ही गिरवी रखी संपत्तियां गड़बड़ थीं. आयोग ने पीएनबी के वरिष्ठ प्रबंधक के खिलाफ भारी जुर्माना लगाने की प्रक्रिया की सलाह दी थी.

कुल 14 आरोपों में से जांच अधिकारी ने दो आरोपों को साबित किया हुआ पाया और एक आरोप आंशिक रूप से सही पाया गया. सीवीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि कई सरकारी विभागों रेल मंत्रालय, दूरसंचार विभाग, नागर विमानन मंत्रालय, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय, एक्जिस बैंक आॅफ इंडिया, वित्त मंत्रालय, इस्पात मंत्रालय और जल बोर्ड ने भी अपने भ्रष्ट कर्मचारियों पर सीवीसी की सलाह को नजरअंदाज किया.

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