बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए तीन दशक तक 10 % वृद्धि की जरूरत : कांत

नयी दिल्ली : नीति आयोग के मुख्य कार्यपालक अधिकारी अमिताभ कांत ने आज कहा कि बढ़ती आबादी की मांग को पूरा करने के लिए भारत को अगले तीन दशक तक सालाना करीब 10 प्रतिशत की दर से वृद्धि की आवश्यकता होगी. हालांकि उन्होंने आगाह किया कि दुर्लभ संसाधनों के उपयोग को लेकर पहले जैसा चलता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 14, 2018 8:22 PM

नयी दिल्ली : नीति आयोग के मुख्य कार्यपालक अधिकारी अमिताभ कांत ने आज कहा कि बढ़ती आबादी की मांग को पूरा करने के लिए भारत को अगले तीन दशक तक सालाना करीब 10 प्रतिशत की दर से वृद्धि की आवश्यकता होगी. हालांकि उन्होंने आगाह किया कि दुर्लभ संसाधनों के उपयोग को लेकर पहले जैसा चलता है का रूख अपनाने से इस वृद्धि को प्राप्त नहीं किया जा सकता. कांत ने कहा कि परिवहन के क्षेत्र में जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने के लिए नीति आयोग के विश्लेषण में आने वाले जैव ईंधन के उपयोग का सुझाव दिया गया है.

उन्होंने उद्योग मंडल फिक्की के ‘ सर्कुलर एकोनामी सिम्पोजियम -2018′ में कहा , ‘‘ हम समाप्त होने वाले प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण तथा संसाधन के उपयोग के मामले में दक्षता लाने के लिए बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को बढ़ावा दे रहे हैं. ” कांत ने देश के स्कूली शिक्षा प्रणाली में ‘ सर्कुलर ‘ अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों को शामिल करने को रेखांकित किया.
सर्कुलर अर्थव्यवस्था के तहत यथासंभव लंबे समय तक संसाधनों के उपयोग पर जोर दिया जाता है. साथ ही इसमें उत्पादों का जीवन चक्र समाप्त होने के बाद उससे फिर से नया उत्पाद या सामग्री तैयार करने का प्रयास किया जाता है. वहीं दूसरी तरफ रेखीय ( लिनियर) अर्थव्यवस्था में वस्तुओं के उत्पादन में कच्चे माल का उपयोग कर कचरे के रूप में फेंक दिया जाता है.
उन्होंने कहा कि सरकार को सर्कुलर अर्थव्यवस्था के लिए नियामकीय मसौदा लाने की जरूरत है। कांत ने कहा , ‘ हमें निर्माण क्षेत्र के लिये नवीकरणीय सामग्री के उपयोग को प्रोत्साहन देना चाहिए. ” टेरी ( द एनर्जी एंड रिर्सोसेज इंस्टीट्यूट ) के महानिदेशक डा . अजय माथुर ने रद्दी माल के उपयोग की जरूरत को रेखांकित किया. इस मौके पर फिक्की – एसेंचर अध्ययन जारी किया गया। इसके अनुसार भारत सर्कुलर व्यापार मॉडल अपनाकर 2030 तक 382 से 697 अरब डॉलर तक लाभ उठा सकता है.

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