संसदीय समिति ने आईसीआईसीआई बैंक में कुनबापरस्ती पर पूछे सवाल

नयी दिल्ली : संसद की एक समिति ने सोमवार को भारतीय बैंक संघ (आईबीए) से बैंकों में बढ़ती एनपीए समस्या से निपटने के लिए कार्ययोजना तैयार करने को कहा. इसके साथ ही, समिति के कुछ सदस्यों ने वीडियोकोन समूह को दिये गये कर्ज में आईसीआईसीआई बैंक की प्रबंध निदेशक एवं सीईओ चंदा कोचर की कथित […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 4, 2018 10:56 PM

नयी दिल्ली : संसद की एक समिति ने सोमवार को भारतीय बैंक संघ (आईबीए) से बैंकों में बढ़ती एनपीए समस्या से निपटने के लिए कार्ययोजना तैयार करने को कहा. इसके साथ ही, समिति के कुछ सदस्यों ने वीडियोकोन समूह को दिये गये कर्ज में आईसीआईसीआई बैंक की प्रबंध निदेशक एवं सीईओ चंदा कोचर की कथित कुनबापरस्ती को लेकर भी सवाल किये.

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हालांकि, लोकसभा सांसद वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाली संसद की स्थायी समिति की बैंकरों के साथ हुई बैठक में इस बात पर भी जोर दिया गया कि सभी कंपनियों और उद्योगपतियों को जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वाले नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए. दिसंबर, 2017 की समाप्ति पर बैंकों की गैर-निष्पादित राशि (एनपीए) यानी कर्ज में फंसी राशि 8.31 लाख करोड़ रुपये को छू गयी थी.

आईबीए के उपाध्यक्ष और स्टेट बैंक के चेयरमैन रजनीश कुमार और पंजाब नेशनल बैंक के प्रबंध निदेशक सुनील मेहता ने बैठक में समिति को एनपीए और बैंकिंग धोखाधड़ी से जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे में बताया. सूत्रों ने बताया कि आईबीए के वरिष्ठ सलाहकार आलोक गौतम भी बैठक में उपस्थित थे. रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल भी इस माह के आखिर में समिति को विभिन्न मुद्दों पर जानकारी देंगे.

सूत्रों ने बताया कि कुछ सदस्यों ने आईसीआईसीआई बैंक की प्रमुख सीईओ चंदा कोचर पर लगे आरोपों के बारे में सवाल किये. एक सदस्य ने निजी क्षेत्र के इस बैंक में कुनबापरस्ती चलने के बारे में जानना चाहा. हालांकि, निजी क्षेत्र के आईसीआईसीआई बैंक ने इस मामले में स्वतंत्र जांच बिठायी है. आरोप है कि बैंक की प्रबंध निदेशक एवं सीईओ चंदा कोचर ने वीडियोकोन समूह को दिये गये कर्ज के बदले में लाभ हासिल किया है.

तृणमूल कांग्रेस के सांसद दिनेश त्रिवेदी ने इस बात को लेकर हैरानी जतायी कि बैंक धोखाधडी और फंसे कर्ज में अपना पैंसा गंवा रहे हैं, तो फिर उनकी पूंजी बढ़ाने के लिए सार्वजनिक धन का इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है. कुछ सदस्यों ने यह भी जानना चाहा कि कि पूर्ववर्ती संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकारों के सत्ता में रहते बैंकों द्वारा ताबड़तोड़ कर्ज दिये जाने की वजह से ही बैंकिंग तंत्र विशेषतौर से सरकारी बैंकों का एनपीए बढ़ रहा है.

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का सकल एनपीए दिसंबर 2017 की समाप्ति पर 7.77 लाख करोड़ रुपये से ऊपर पहुंच गया था. संसदीय समिति को इससे पहले वित्तीय सेवाओं के सचिव राजीव कुमार ने भी बैंकिंग क्षेत्र की स्थिति से अवगत कराया.

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