मुंबई : नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) ने आज साइरस मिस्त्री की टाटा संस के खिलाफ याचिका को ठुकरा दिया. मिस्त्री ने खुद को अक्तूबर 2016 में टाटा समूह के चेयरमैन पद से हटाये जाने के खिलाफ याचिका दायर की थी. एनसीएलटी की मुंबई बेंच के जस्टिस बीएसवी प्रकाश कुमार एवं वी नल्लासेनापथी ने यह फैसला इस मामले की लंबे समय तक चली सुनवाई के बाद दिया. एनसीएलटी ने अक्तूबर 2017 से फरवरी 2018 तक इस मामले की सुनवाई की.एनसीएलटी ने कहा कि साइरस मिस्त्री को इसलिए हटाया गया था क्योंकि टाटा संस के निदेशक मंडल और उसके सदस्यों का मिस्त्री पर से भरोसा उठ गया था.
मिस्त्री ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि चेयरमैन व बोर्ड ऑफ डायरेक्टर से उन्हें हटाया जाना समूह के प्रमोटरों द्वारा किये गये उत्पीड़न का परिणाम है. टाटासंस में टाटा ट्रस्ट 68 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखती है. याचिका में यह भी कहा गया था टाटा संस बोर्ड व रतन टाटा के कारण समूह को राजस्व नुकसान झेलना पड़ा. उन्होंने खुद काे पद से हटाये जाने को एकपक्षीय व मनमाना कार्रवाई बताया था.
मिस्त्री परिवार टाटा संस में 18.6 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखना है. हालांकि मतदान के अधिकार केवर चार प्रतिशत है. 18 प्रतिशत की अधिक हिस्सेदारी के साथ मिस्त्री समूह टाटा संस में सबसे बडी हिस्सेदार है. रतन टाटा की 70 साल की उम्र हो जाने के बाद साइरस मिस्त्री को दिसंबर 2012 में टाटा समूह का चेयरमैन बनाया गया था. हालांकि बाद में कई मुद्दों पर दोनों के बीच गंभीर मतभेद उभर आये और रतन टाटा की अगुवाई में उन्हें समूह ने पद से हटा दिया.
इस स्थिति में कुछ दिनों के लिए रतन टाटा ने अंतरिम चेयरमैन का पदभार संभाला और उसके बाद कंपनी के आइटी कारोबार टीसीएस के प्रमुख रहे एन चंद्रशेखरन को समूह का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था.
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