मुंबई : राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) ने कहा है कि टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री की ओर से रतन टाटा, टाटा संस और समूह की कंपनियों के खिलाफ लगाये गये आरोपों में कोई ‘दम’ नहीं है. एनसीएलटी ने इस सप्ताह टाटा संस के खिलाफ साइरस मिस्त्री की याचिका को खारिज कर दिया था. न्यायाधिकरण ने अपने आदेश में कहा है कि टाटा संस के चेयरमैन और बोर्ड का निदेशक रहते हुए मिस्त्री ने ‘समूह पर निरंकुश नियंत्रण’ हासिल करने का प्रयास किया.न्यायाधिकरण के 368 पन्ने के फैसले को गुरुवार को सार्वजनिक किया गया.
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न्यायाधिकरण की मुंबई पीठ ने टाटा परिवार और उसके इतिहास का गहराई से अध्ययन किया और टाटा समूह द्वारा दशकों से ‘समाज’ के लिए किये गये कार्यों की मुक्तकंठ से सराहना की. पीठ ने कहा कि भले ही उसे इस तरह की सूचना ब्रिटानिका या विकिपीडिया या फिर समूह के स्रोतों से मिली, लेकिन टाटा समूह के इस इतिहास और वरीयताओं को ध्यान में रखते हुए ऐसी कोई संभावना नजर नहीं आती कि समूह केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए पूर्वाग्रही कारोबारी फैसले करेगा.
इसके साथ ही, न्यायाधिकरण ने रतन टाटा और न्यासी निदेशक एन सूनावाला के खिलाफ आरोप लगाने के लिए मिस्त्री की आलोचना की. न्यायाधिकरण ने हाल ही में अपने फैसले में टाटा संस के चेयरमैन पद से हटाये जाने के खिलाफ दायर मिस्त्री की याचिका को खारिज कर दिया. न्यायाधिकरण ने कहा कि 100 अरब डॉलर के समूह का निदेशक कंपनी के कार्यकारी चेयरमैन को हटाने में ‘सक्षम’ है.
एनसीएलटी ने मिस्त्री द्वारा रतन टाटा और कंपनी के निदेशक मंडल के स्तर पर गड़बड़ी होने के आरोपों को भी खारिज कर दिया. मिस्त्री को अक्टूबर, 2016 में टाटा संस के चेयरमैन पद से हटा दिया गया था. मिस्त्री ने टाटा संस बोर्ड के इस कदम के खिलाफ एनसीएलटी में मामला दायर किया था. मिस्त्री ने कंपनी के साथ-साथ रतन टाटा पर भी कई आरोप लगाये थे.
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