जीडीपी पर भाजपा का पलटवार : मोदी के कार्यकाल में अर्थव्यवस्था सुधरी, कांग्रेस ने विकास की ‘मृगमरीचिका” पैदा की थी
नयी दिल्ली : संप्रग शासनकाल के दौरान सबसे ज्यादा विकास दर के कांग्रेस के दावे पर पलटवार करते हुए भाजपा ने रविवारको कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल में भारत ‘पांच अल्पविकसित’ अर्थव्यवस्थाओं से बाहर निकलर ‘कुछ अच्छे’ निवेश स्थल के रूप में उभर रहा है. पार्टी ने कहा कि पूर्ववर्ती सरकार विकास की […]
नयी दिल्ली : संप्रग शासनकाल के दौरान सबसे ज्यादा विकास दर के कांग्रेस के दावे पर पलटवार करते हुए भाजपा ने रविवारको कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल में भारत ‘पांच अल्पविकसित’ अर्थव्यवस्थाओं से बाहर निकलर ‘कुछ अच्छे’ निवेश स्थल के रूप में उभर रहा है.
पार्टी ने कहा कि पूर्ववर्ती सरकार विकास की ‘मृगमरीचिका’ पैदा करने का प्रयास कर रही थी. भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि इस तथ्य को नहीं बदला जा सकता कि कांग्रेस नीत संप्रग सरकार ऋण में दबी हुई थी, सूक्ष्म आर्थिक अस्थिरता थी, महंगाई थी, नीतियां नहीं बनती थीं और भ्रष्टाचार काफी था. पात्रा पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम के बयान का जवाब दे रहे थे कि कांग्रेस नीत संप्रग एक और संप्रग दो सरकारों में स्वतंत्रता के बाद सबसे अधिक दशकीय वृद्धि हुई थी.
केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि वृद्धि दर तेज करने की संप्रग सरकार की नीतियों ने वृहद-आर्थिक अस्थिरता पैदा कर दी थी. उन्होंने यह भी कहा कि 2004-08 तक का दौर वैश्विक आर्थिक तेजी का दौर था और उसका फायदा भारत समेत सभी अर्थव्यवस्थाओं को मिला था. जेटली ने जीडीपी की नयी शृंखला की पिछली कड़ियों के अनुमानों पर ताजा रपट को लेकर छिड़ी बहस में हस्तक्षेप करते हुए कहा कि संप्रग ने राजकोषीय अनुशासन भंग कर दिया था. साथ ही बैंकों को अंधाधुंध कर्ज बांटने की जोखिमभरी सलाह दी थी. जीडीपी की पिछली कड़ियों के इन अनुमानों का संकेत है कि मनमोहन सिंह सरकार के समय अर्थव्यवस्था की रफ्तार बेहतर थी.
जेटली ने फेसबुक पर एक लेख में कहा, ‘… राजकोषीय अनुशासन के साथ समझौता किया गया और बैंकिंग प्रणाली को अंधाधुंध कर्ज बांटने की जोखिमभरी सलाह दी गयी और यह नहीं देखा गया कि अंतत: इससे बैंक खतरे में पड़ जायेंगे. उस पर भी 2014 में जब संप्रग सरकार सत्ता से बेदखल हुई तो उसके आखिरी के तीन वर्षों में वृद्धि दर साधारण से भी नीचे थी.’ इस समय राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (एनएससी) की एक उपसमिति द्वारा जीडीपी की नयी शृंखला की पीछे की कड़ियों को तैयार करने के संबंध में जारी रपट को लेकर पक्ष-विपक्ष के बीच बहस छिड़ी हुई है. नयी शृंखला के लिए 2011-12 को आधार वर्ष बनाया गया है, जबकि पिछली शृंखला 2004-05 को आधार वर्ष मानकर तैयार की गयी थी.
वास्तविक क्षेत्र के आंकड़ों पर इस उपसमिति की ताजा रपट के अनुसार, मनमोहन सरकार के कार्यकाल में 2006-07 के दौरान जीडीपी की वृद्धि दर 10.08 तक पहुंच गयी थी जो 1991 में उदारीकरण शुरू होने के बाद जीडीपी वृद्धि दर का सर्वोच्च आंकड़ा है. जेटली ने कहा, ‘वृद्धि बढ़ाने की संप्रग सरकार की नीतियों से वृहद-आर्थिक अस्थिरता पैदा हुई. इस तरह उस वृद्धि की गुणवत्ता खराब रही.’ उन्होंने अपने तर्क के समर्थन में 1999 से लेकर 2017-18 तक के राजकोषीय घाटे, मुद्रास्फीति, बैंक ऋण वितरण और चालू खाते के आंकड़ों का हवाला दिया है. उन्होंने कहा कि 2003-04 वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए तेजी का दौर था. इससे वैश्विक वृद्धि को बल मिला. ज्यादातर अर्थव्यवस्थाओं का प्रदर्शन अच्छा रहा और सभी उभरती अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि दर भी ऊंची हो गयी थी.
जेटली ने लिखा है कि 2004 में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार सत्ता से बाहर हुई थी तो उस समय वृद्धि दर 8% थी. इसके अलावा 2004 में आयी नयी सरकार को 1991 से 2004 के बीच हुए निरंतर नये सुधारों का लाभ मिला. वैश्विक अर्थव्यवस्था की गति से भी उसे समर्थन मिला. वैश्विक मांग ऊंची होने से निर्यात बढ़ रहा था और भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए यह बढ़ा अवसर था. उन्होंने कहा है कि उस समय की सरकार ने आर्थिक सुधार के लिए कोई महत्वपूर्ण कदम नहीं उठाया था. लेकिन, जब अनुकूल परिस्थितियां खत्म हो गयीं तो वृद्धि दर लड़खड़ाने लगी और उसको बरकरार रखने के लिए राजकोषीय अनुशासन भंग करने और बैंकों को अंधाधुंध ऋण देने की सलाह जैसे दो कदम उठाये गये, जबकि अंतत: इससे बैंक खतरे में पड़ गये.
उन्होंने कहा कि राजग-एक (वाजपेयी सरकार) के समय चालू खाते का हिसाब-किताब देश के पक्ष में था. इसके विपरीत संप्रग एक और दो में यह हमेशा घाटे में रहा और संप्रग-दो में यह घाटा सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया था. इसी तरह बैंक ऋण वितरण में वृद्धि के मुद्दे पर जेटली ने लिखा है कि संप्रग एक के दौरान और संप्रग दो के कुछ समय तक बैंक ऋण अत्याधिक तेजी से बढ़ा था. इनमें से बहुत से ऋण परियोजना के भरोसेमंद होने का आकलन किए बिना ही दे दिये गये थे. अनावश्यक रूप से अतिरिक्त क्षमता सृजित की गयी, उनमें से तमाम परियोजनाएं अब भी बिना इस्तेमाल के पड़ी हैं. उन्होंने कहा कि बैंकों पर बहुत ज्यादा बोझ लाद दिया गया था. अव्यवहारिक परियोजनाएं बैंकों का कर्ज नहीं चुका सकी और गैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए) का स्तर बहुत ऊंचा हो गया. ऐसे फंसे ऋणों के पुनगर्ठन के लिए नए ऋण बांटे गये और बैंकों की असली हालत पर पर्दा डाल दिया गया. इसका परिणाम यह हुआ कि बैंक कमजोर होते गये और 2012-13 तक आते-आते उनकी ऋण देने की क्षमता कम हो गयी.
जेटली ने कहा कि 2014 के बाद कहीं बैंकों की वास्तिविक स्थिति सामने आयी और ऋणों की वसूली के लिए दिवाला कानून समेत तमाम उपाय किये गये. जेटली ने कहा है कि 2008 में आर्थिक तेजी का दौर खत्म होने के बाद संप्रग सरकार ने राजकोषीय अनुशासन के साथ गंभीर खिलवाड़ किया और सरकारी खर्च को राजस्वसे बहुत अधिक ऊंचा कर दिया. 2011-12 में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 5.9% तक पहुंच गया था. उसके बाद अब यह 2017-18 में 3.5% पर लाया गया है. उन्होंने कहा कि इस परिप्रेक्ष्य में उस दौर में सभी अर्थव्यवस्थाएं तीव्र वृद्धि कर रही थीं और उसमें ऊंची वृद्धि हासिल करनेवाला भारत कोई अनूठा देश नहीं था. जेटली इस समय गुर्दा प्रत्यारोपण के बाद स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं. उनके स्थान पर रेलमंत्री पीयूष गोयल को वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त कार्यभार दिया गया है.
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