”रुपया, तेल और राजनीतिक रार, बाजार में हाहाकार के लिए जिम्मेदार”
नयी दिल्ली : कच्चे तेल के दाम, घरेलू राजनीतिक परिस्थितियां, वैश्विक स्तर पर ब्याज दरें और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार को लेकर घटनाक्रम निकट भविष्य में शेयर बाजारों को प्रभावित करेंगे. विशेषज्ञों ने यह राय जतायी है. रुपये की कमजोरी, कच्चे तेल की ऊंची कीमतों, विदेशी कोषों की निकासी तथा अमेरिका और चीन के बीच […]
नयी दिल्ली : कच्चे तेल के दाम, घरेलू राजनीतिक परिस्थितियां, वैश्विक स्तर पर ब्याज दरें और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार को लेकर घटनाक्रम निकट भविष्य में शेयर बाजारों को प्रभावित करेंगे. विशेषज्ञों ने यह राय जतायी है. रुपये की कमजोरी, कच्चे तेल की ऊंची कीमतों, विदेशी कोषों की निकासी तथा अमेरिका और चीन के बीच व्यापार को लेकर तनाव बढ़ने से हाल के समय बाजार की धारणा प्रभावित हुई है. विशेषज्ञों का कहना है कि निवेशकों की निगाह अब इस साल कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव पर रहेगी.
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सेंट्रम ब्रोकिंग के वरिष्ठ उपाध्यक्ष एवं शोध (संपदा) प्रमुख जगन्नधाम तुनुगुंटला ने कहा कि भारतीय बाजार को इस समय कई मोर्चों पर समस्याओं से जूझना पड़ रहा है. रुपये अपने सर्वकालिक निचले स्तर पर है, तो बांड प्राप्ति बढ़ी तथा कच्चे तेल के दाम ऊंचाई पर हैं. उन्होंने कहा कि इस साल कई राज्यों में विधानसभा चुनाव तो 2019 में लोकसभा चुनाव होने हैं. इन सब कारणों से भारतीय बाजार प्रभावित रहेंगे. हालांकि, बंबई शेयर बाजार का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स इस साल नौ फीसदी चढ़ा है. यह अभी 37,121 अंक पर चल रहा है.
कोटक सिक्योरिटीज की उपाध्यक्ष (शोध) टीना विरमानी ने कहा कि घरेलू मोर्चे पर कंपनियों की आमदनी तथा विभिन्न क्षेत्रों में मांग में सुधार से बाजार की धारणा तय होगी. वैश्विक स्तर पर देखा जाये, तो कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट काफी महत्वपूर्ण होगी. सैमको सिक्योरिटीज एंड स्टॉकनोट के संस्थापक एवं सीईओ जिमीत मोदी ने कहा कि शेयर बाजारों के लिए वैश्विक स्तर पर ब्याज दरें, अंतरराष्ट्रीय व्यापार विवाद, मुद्रा का उतार चढ़ाव और मुद्रास्फीति को लेकर संभावना महत्वपूर्ण होगी. इस साल राज्यों के चुनाव बाजार के लिए महत्वपूर्ण घटनाक्रम होगा, जिससे बाजारों की दिशा तय होगी.
जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के शोध प्रमुख विनोद नायर ने कहा कि सबसे पहले वैश्विक वित्तीय बाजारों में स्थिरता आनी चाहिए. व्यापार और मुद्रा के उतार-चढ़ाव पर अंकुश लगना चाहिए. यदि यही स्थिति कायम रहती है, तो व्यापार और मुद्रा युद्ध का असर अगले 12 महीने तक दिखायी देगा.
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