केंद्र सरकार vs आरबीआई: आजादी के बाद पहली बार हो रही है सेक्शन-7 की चर्चा, जानें क्यों
नयी दिल्ली: केंद्र की मोदी सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के बीच कड़वाहट बढ़ती ही जा रहीहै. इस बढ़ते मतभेद और कड़वाहट के बीच आरबीआई ऐक्ट के सेक्शन-7 की चर्चा जोरों पर हो रही है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो केंद्र सरकार आरबीआई ऐक्ट के सेक्शन-7 लागू करने का मन बना रही है. ऐसे […]
नयी दिल्ली: केंद्र की मोदी सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के बीच कड़वाहट बढ़ती ही जा रहीहै. इस बढ़ते मतभेद और कड़वाहट के बीच आरबीआई ऐक्ट के सेक्शन-7 की चर्चा जोरों पर हो रही है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो केंद्र सरकार आरबीआई ऐक्ट के सेक्शन-7 लागू करने का मन बना रही है. ऐसे पहली बार हो रहा है जब आजाद भारत की किसी सरकार में आरबीआई के खिलाफ सेक्शन-7 लागू करने पर चर्चा हो रही है.
आप जानते हैं कि आखिर आरबीआई ऐक्ट में सेक्शन-7 है क्या ? तो हम आपको बताते चलें कि धारा 7 लागू होने के बाद सरकार करीब-करीब हर मुद्दे पर रिजर्व बैंक को निर्देश देने का काम कर सकती है जिसे उसे मानना ही होगा. धारा 7 के दो हिस्से हैं, पहला सलाह-मशविरा करना, दूसरा दिशा-निर्देश जारी करना. इसका अर्थ है कि धारा 7 लागू होती है तो फिर आरबीआई भी सरकार ही चलाएगी. वैसे तो आरबीआई अपने आप में एक स्वायत्त निकाय है. वह सरकार से अलग अपने फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है. कुछ तय स्थितियों में आरबीआई सरकार के निर्देश सुनता है.
कैसे पड़ी दरार
सरकार और आरबीआई के बीच विवाद तब प्रकाश में आया जब 26 अक्टूबर को आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने एक बयान में रिजर्व बैंक की स्वायत्ता को लेकर सरकार पर प्रश्न उठा दिये थे. उन्होंने कहा था कि सरकार आरबीआई की आजादी का सम्मान करे… यदि वह ऐसा नहीं करेगी तो बाजार की नाराजगी झेलनी पड़ेगी.
क्या इस कारण है रिजर्व बैंक और सरकार के बीच तनाव ?
बताया जा रहा है कि केंद्र सरकार 2014 तक दिये गये अंधाधुंध कर्ज के कारण आरबीआई से नाराज है. वह चाहती है कि यस बैंक, बंधन बैंक, इक्विटास, उज्जीवन जैसी कंपनियों पर आरबीआई सख्ती ना बरते. सरकार चाहती है पावर कंपनियों के लोन को एनपीए घोषित करने में रियायत बरती दी जाए जबकि रिजर्व बैंक इसके पक्ष में नजर नहीं आ रहा है. सरकार यह भी चाहती है कि गिरते रुपये को थामने के लिए आरबीआई की ओर सेकदम उठाया जाए.
आरबीआई बनाम सरकार : विवाद नयी बात नहीं
सरकार और आरबीआई में विवाद नयी बात नहीं है. पहले भी कई मौकों पर कई मुद्दों पर मतभेद रहा है. आमतौर पर ब्याज दर, बैंकिंग में तरलता और मैनेजमेंट को लेकर अलग-अलग विचार रहे हैं. हालांकि, अंत में हमेशा विवाद सुलझ जाता है.
पूर्व गवर्नर राजन को भी सरकार के साथ टकराव की स्थिति से दोचार होना पड़ा
वित्त मंत्रालय, पटेल में पावर एनपीए को राहत, बैंकों में पीसीए, एनबीएफसी कंपनियों में कैश संकट और आरबीआई से अलग स्वतंत्र भुगतान नियामक गठन पर एक मत नहीं है. पटेल से पहले पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को भी कई बार सरकार के साथ टकराव की स्थिति से दोचार होना पड़ा. इनमें एनपीए, मैनेजमेंट और नोटबंदी जैसे मुद्दे शामिल हैं.
इतिहास में पहली बार
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ऐक्ट की धारा सात के तहत मिले अधिकार का इतिहास में पहली बार इस्तेमाल करते हुए केंद्र सरकार ने तीन पत्र रिजर्व बैंक को भेजे हैं. हालांकि इन खबरों के चर्चा में आने के फौरन बाद केंद्र ने कहा कि रिजर्व बैंक की स्वायत्तता बेहद जरूरी है.
Disclaimer: शेयर बाजार से संबंधित किसी भी खरीद-बिक्री के लिए प्रभात खबर कोई सुझाव नहीं देता. हम बाजार से जुड़े विश्लेषण मार्केट एक्सपर्ट्स और ब्रोकिंग कंपनियों के हवाले से प्रकाशित करते हैं. लेकिन प्रमाणित विशेषज्ञों से परामर्श के बाद ही बाजार से जुड़े निर्णय करें.