नयी दिल्ली : बाजार नियामक सेबी ‘लिक्विड’ यानी तरल म्यूचुअल फंड के लिए नियम कड़े कर सकता है और निवेश को एक न्यूनतम समय तक उसमें बनाये रखने की समय सीमा तय कर सकता है. यह बात यहां वरिष्ठ अधिकारियों ने सोमवार कही.
इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज (आईएल एंड एफएस) की चूक के बाद गैर बैंकिंग बीमा कंपनियों के समक्ष नकदी की कमी के बीच यह बात सामने आयी है. अधिकारियों ने कहा कि सेबी ‘लिक्विंड फंड’ म्यूचुअल फंड योजनाओं में निवेशक को बनाये रखने की एक एक लघु समय सीमा लागू कर सकता है.
ऐसी योजनाओं में इसमें निवेशकों का पैसा सरकार के ट्रेजरी बिलों और ऐसी अन्य सरकारी प्रतिभूतियों में लगाया जाता है, जहां निवेश पर जोखिम बहुत कम होता है और इन प्रतिभूतियों का एक हाजिर बाजार हर समय उपलब्ध होता है.
उन्होंने कहा कि विनियामक ‘लिक्विड फंड’ के लिए अल्पकालीन ‘लॉक-इन’ (यानी निवेश को योजना में बनाये रखने की) अवधि तय करने के साथ प्रतिभूतियों को तरल (तत्काल भुनाने योग्य) प्रतिभूतियों और ‘चूक’ तथा ‘गैर-तरल’ श्रेणी की प्रतिभूतियों में बांट सकता है जिनको बाजार में भुनाने में मुश्किल होती है इसके अलावा सेबी लिक्विड फंड के लिए उन सभी बांड के मामले में ‘मार्क टू मार्केट वैल्यू’ अनिवार्य करने पर गौर कर रहा है जिसकी परिपक्वता अवधि 30 दिन है.
‘मार्क टू मार्केट वैल्यू’ से आशय संपत्ति के वर्तमान मूल्य को आधार बनाया जाता है. फिलहाल 60 दिन या उससे अधिक अवधि की प्रतिभूतियों को ‘मार्क टू मार्केट वैल्यू’ के तहत रखा जाता है. अधिकारियों के अनुसार, सेबी द्वारा नियुक्त म्यूचुअल फंड (एमएफ) परामर्श समिति की सोमवार को बैठक में इन कदमों पर चर्चा की उम्मीद है. उसके बाद नियामक अंतिम नियमन लाने से पहले परामर्श पत्र जारी कर सकता है.
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