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आर्थिक पूंजी व्यवस्था तय करने के लिए पैनल का होगा गठन, अध्यक्ष कौन विमल जालान या राकेश मोहन?

नयी दिल्ली : रिजर्व बैंक आैर सरकार के बीच चल रही रस्साकशी के बीच एक खबर यह भी आ रही है कि केंद्र सरकार देश में आर्थिक व्यवस्था तय करने के लिए एक पैनल गठित करने का प्रस्ताव दिया है. गठित होने वाला पैनल यह तय करेगा कि रिजर्व बैंक अपने खजाने से सरकार को […]

नयी दिल्ली : रिजर्व बैंक आैर सरकार के बीच चल रही रस्साकशी के बीच एक खबर यह भी आ रही है कि केंद्र सरकार देश में आर्थिक व्यवस्था तय करने के लिए एक पैनल गठित करने का प्रस्ताव दिया है. गठित होने वाला पैनल यह तय करेगा कि रिजर्व बैंक अपने खजाने से सरकार को कुछ पैसा दे या न दे, लेकिन इससे पहले यह तय होना अभी बाकी है कि गठित होने वाले पैनल का अध्यक्ष कौन होगा? इस प्रकार के सवाल खड़ा होने के पीछे कारण यह है कि पैनल के अध्यक्ष पद के लिए सरकार ने रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर विमल जालान का सुझाया है, जबकि रिजर्व बैंक की आेर से पूर्व डिप्टी गवर्नर राकेश मोहन का नाम आगे बढ़ाया गया है.

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मीडिया की खबरों में इस बात की चर्चा है कि पूर्व गवर्नर विमल जालान रिजर्व बैंक को सरकार के प्रति जवाबदेह मानते हैं, जबकि राकेश मोहन के बारे में चर्चा यह है कि वे रिजर्व बैंक की स्वायत्तता के प्रबल समर्थक हैं. आर्थिक पूंजी व्यवस्था तय करने के लिए जिस पैनल को गठित करने की चर्चा की जा रही है, उसमें अध्यक्ष के अलावा दो प्रतिनिधि आैर शामिल किये जायेंगे, जिसमें एक सरकार के प्रतिनिधि होंगे आैर एक रिजर्व बैंक के.

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पिछले दिनों एक अखबार को दिये गये साक्षात्कार में विमल जालान ने इस सवाल का जवाब देने से इनकार कर दिया था कि रिजर्व बैंक के खजाने से सरकार कुछ राशि ले सकती है या नहीं? हालांकि, इस साक्षात्कार के दौरान उन्होंने यह जरूर कहा था कि रिजर्व बैंक को यह देखना होगा कि उसे अपना खजाना भरे रखने से आर्थिक क्षेत्र पर क्या प्रभाव पड़ता है आैर दूसरा यह कि रिजर्व बैंक के खजाने से पैसा निकालना कितना अधिक जरूरी है.

सरकार के स्तर पर यह बार-बार कहा जा रहा है कि रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था के जोखिमों से निपटने के लिए अपने पास उतना ही पैसा रखे, जितना कि जरूरी हो. बाकी का बचा पैसा वह सरकार को दे दे, जिसका इस्तेमाल अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाने आैर तेज विकास करने में किया जा सके. सरकार की आेर से यह तर्क दिया जा रहा है कि रिजर्व बैंक पहले दुनिया के दूसरे देशों के केंद्रीय बैंकों की नीतियों आैर कार्यप्रणालियों का अध्ययन कर ले, उसके बाद यह तय कर ले कि उसे अपने पास किस सीमा तक धन रिजर्व रखना है, जिससे भविष्य में आने वाले आर्थिक जोखिमों से निपटा जा सके.

हालांकि, सरकार द्वारा रिजर्व बैंक से धनराशि मांगे जाने को लेकर देश में राजनीतिक बवाल भी मचा हुआ है. प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने बीते छह नवंबर को सरकार पर आरोप लगाते हुए यह कहा था कि देश में होने वाले आम चुनाव से पहले रेवड़ियां बांटने के लिए सरकार रिजर्व बैंक से पैसा मांग रही है. उसने कहा था कि अगर रिजर्व बैंक 3.6 लाख करोड़ रुपये लेने की मोदी सरकार की कथित मांग मान लेता है, तो यह अब तक की सबसे ‘बड़ी लूट’ होगी. कांग्रेस ने इसको ‘ग्रेट इंडियन रॉबरी’ की उपमा देते हुए आरोप लगाया था कि यह धनराशि 2019 संसदीय चुनावों से पहले ‘रेवड़ियां’ बांटने के लिए मांगी जा रही है. कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने दिल्ली आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में आरोप लगाते हुए कहा था कि भारत की वृहद आर्थिक स्थिरता पर इस तरह के कदम के ‘गंभीर’ प्रभाव होंगे.

वहीं, विपक्षी दलों में प्रमुख राजनीतिक पार्टी कांग्रेस की आेर से आरोप लगाये जाने के तीन दिन बाद यानी नौ नवंबर को वित्त मंत्रालय में आर्थिक विभाग के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने ट्वीट के जरिये जवाब देते हुए कहा था कि मीडिया में गलत जानकारी वाली तमाम अटकलबाजियां जारी हैं. सरकार का राजकोषीय हिसाब-किताब बिल्कुल सही चल रहा है. अटकलबाजियों के विपरीत सरकार का आरबीआई से 3.6 या एक लाख करोड़ रुपये मांगने का कोई प्रस्ताव नहीं है. हालांकि, गर्ग ने यह जरूर कहा था कि इस समय केवल एक प्रस्ताव पर ही चर्चा चल रही है और वह रिजर्व बैंक की आर्थिक पूंजी की व्यवस्था तय करने की चर्चा है.

अब खबर यह है कि रिजर्व बैंक की इसी आर्थिक पूंजी की व्यवस्था तय करने की प्रक्रिया के तहत तीन सदस्यों वाले एक पैनल का गठन किया जाना है, जिसके अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित नामों को लेकर पेंच फंसा है. सरकार चाहती है कि विमल जालान को इस पैनल का अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए, जबकि रिजर्व बैंक चाहता है कि उसकी स्वायत्तता के प्रबल समर्थक पूर्व डिप्टी गवर्नर राकेश मोहन को इसका अध्यक्ष बनाया जाये. अब देखना यह है कि इस मसले को किस तरह सुझाया जा सकता है.

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