बैंकिंग सेक्टर में एनपीए और इस्तीफों का रहा बोलबाला, पैसा लेकर भागने वालों का हौसला बुलंद
नयी दिल्ली : बैंक क्षेत्र के लिए साल 2018 बहुत परेशानियों भरा रहा है. इस दौरान धोखाधड़ी करने वाले या भगुतान में चूक करने वाले कर्जदार देश छोड़कर फरार होने वालों के हौसले बुलंद रहे, तो कई बैंक के टॉप अफसरों को अपना पद छोड़ना पड़ा. साल के आखिर तक केंद्रीय बैंक के गवर्नर ने […]
नयी दिल्ली : बैंक क्षेत्र के लिए साल 2018 बहुत परेशानियों भरा रहा है. इस दौरान धोखाधड़ी करने वाले या भगुतान में चूक करने वाले कर्जदार देश छोड़कर फरार होने वालों के हौसले बुलंद रहे, तो कई बैंक के टॉप अफसरों को अपना पद छोड़ना पड़ा. साल के आखिर तक केंद्रीय बैंक के गवर्नर ने भी इस्तीफा दे दिया. अदालतों, न्यायाधिकरणों और अन्य मंचों द्वारा फंसी परिसंपत्तियों की वसूली के लिए किये गये प्रयास के बावजूद बैंक क्षेत्र की एनपीए की समस्या लगातार बढ़ती रही.
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यही नहीं, ऋण भुगतान में चूक करने वाली कंपनियों के प्रवर्तकों ने भी परिसंपत्ति के लिये दावा किया और उपयुक्त मंचों पर ऋण अदायगी की पेशकश भी की. साल 2018 देश के सबसे बड़े बैंक धोखाधड़ी के साथ शुरू हुआ. हीरा कारोबारी नीरव मोदी और उसके मामा मेहुल चोकसी ने कुछ बैंक अधिकारियों के साथ मिलीभगत करके पंजाब नेशनल बैंक के साथ 14,000 करोड़ रुपये की कथित धोखाधड़ी की.
नीरव मोदी के मामले में परतें खुल ही रही थी कि मार्च में एक व्हिसल ब्लोवर ने आईसीआईसीआई बैंक की प्रबंध निदेशक रहीं चंदा कोचर के खिलाफ शिकायत की. कोचर पर वीडियोकॉन समूह को दिये गये कर्ज में एक-दूसरे को लाभ पहुंचाने तथा हितों के टकराव के आरोप हैं. अक्टूबर में चंदा कोचर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. हालांकि, इस मामले में आंतरिक और नियामकीय जांच अभी चल रही है. एक और शीर्ष बैंक अधिकारी शिखा शर्मा को भारतीय रिजर्व बैंक से झटका मिला.
आरबीआई ने एक्सिस बैंक की प्रबंध निदेशक पद पर उनके कार्यकाल विस्तार को मंजूरी देने से मना कर दिया था. कुछ ऐसी ही कहानी यस बैंक के साथ भी हुई. आरबीआई ने बैंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी राणा कपूर का कार्यकाल घटाकर 31 जनवरी 2019 कर दिया. हालांकि, इस साल का सबसे बड़ा इस्तीफा खुद आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल का रहा. उन्होंने निजी कारणों का हवाला देते हुए 10 दिसंबर को अपने पद से अचानक इस्तीफा दे दिया था.
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में, गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) की समस्या के खिलाफ जंग जारी है. हालांकि, स्थिति सामान्य होने में काफी समय लगेगा. सरकारी बैंक का सकल एनपीए मार्च में उच्चतम स्तर पर था. चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) में सकल एनपीए करीब 23,860 करोड़ रुपये कम होकर 8,71,741 करोड़ रुपये रह गया. मार्च 2018 के अंत में यह 8,95,601 करोड़ रुपये था.
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