ऊंचे रिटर्न के वादे से सावधान
फरजी निवेश योजनाओं के जरिये धोखाधड़ी रुकने का नाम नहीं ले रही ऐसा लगता है कि हम गलतियों से न सीखने के लिए अभिशप्त हैं. सारधा घोटाला सामने आने के बाद लगा था कि लोग फरजी निवेश योजनाओं को लेकर जागरूक होंगे, पर ऐसा होता दिख नहीं रहा. चंद दिनों पहले ही झारखंड के बोकारो […]
फरजी निवेश योजनाओं के जरिये धोखाधड़ी रुकने का नाम नहीं ले रही
ऐसा लगता है कि हम गलतियों से न सीखने के लिए अभिशप्त हैं. सारधा घोटाला सामने आने के बाद लगा था कि लोग फरजी निवेश योजनाओं को लेकर जागरूक होंगे, पर ऐसा होता दिख नहीं रहा. चंद दिनों पहले ही झारखंड के बोकारो में निवेशकों से 30 करोड़ की ठगी का मामला सामने आया है. ठगी के शिकार सैकड़ों लोगों में बोकारो स्टील के सेवानिवृत्त कर्मचारी, नौकरशाह और पेशेवर भी शामिल हैं. यानी अच्छे खासे पढ़े-लिखे लोग भी झांसे में आ जा रहे हैं. इस बार जिन कंपनियों ने ठगी की है, उनका नाम है सारदा प्लीजर एंड एडवेंटर लि और सारदा म्यूचुअल बेनेफिट (निधि) लि. फरजीवाड़ा करनेवाली कंपनियों के नाम बदलते रहते हैं, लेकिन उनका तरीका नहीं बदलता. वे मोटे रिटर्न का लालच देकर लोगों को अपने झांसे में लेती हैं.
* लालच की कोई दवा नहीं
वित्तीय धोखाधड़ी के मामले में इतिहास बार-बार खुद को क्यों दोहराता है? पहली वजह है, लालच. गैर पंजीकृत निवेश योजनाएं बहुत ऊंचे रिटर्न का वादा करती हैं. दूसरा, इन फरजी योजनाओं के एजेंटों को बहुत मोटा कमीशन मिलता है, जो 30 फीसदी तक हो सकता है. वहीं पंजीकृत जमा योजनाओं में कमीशन अधिकतम तीन फीसदी तक होता है. इसके अलावा, प्रदर्शन बोनस के रूप में विदेश यात्रा जैसे लुभावने वादे किये जाते हैं.
एजेंट जिस स्कीम के लिए काम करते हैं, उसकी कानूनी वैधता के बारे में खुद नहीं जानते. अक्सर लोग कंपनी के बजाय एजेंट पर भरोसा कर निवेश करते हैं. कुछ योजनाएं मल्टी-लेवल मार्केटिंग (एक के जरिये दूसरे को जोड़ने की प्रक्रिया) का इस्तेमाल करती हैं. सबसे खतरनाक वो योजनाएं होती हैं जिनमें आपको दो और लोगों को जोड़ना होता है.
चाहे इन योजनाओं में किसी उत्पाद की मार्केटिंग ही क्यों न शामिल हो. तीसरा, निवेशकों को प्रभावित करने के लिए ऐसे विज्ञापन दिये जाते हैं, जो दिखाते हैं कि फलां योजना के साथ बड़ी-बड़ी हस्तियां जुड़ी हुई हैं. ऐसी योजनाओं के प्रवर्तक इस बात का खास ख्याल रखते हैं कि शुरुआती निवेशकों को वादे के मुताबिक रिटर्न मिल जाये. इससे लोगों के बीच बहुत तेजी से योजना के पक्ष में बात फैलती है.
* झांसे में आने से कैसे बचें
अपने यहां संदिग्ध योजनाओं और नियमन संबंधी खामियों की भरमार है, ऐसे में आप फरजीवाड़े का शिकार होने से कैसे बचें? सबसे पहली बात यह कि अगर आपको किसी योजना का रिटर्न अविश्वसनीय लगे, तो आप उसे फरजी मान कर चलें. इसके अलावा, कोई योजना अगर एजेंटों को बहुत ज्यादा कमीशन व अन्य प्रलोभन दे रही हो, पैसा जमा करानेवाली कंपनी का बहुत तेजी से प्रसार हो रहा हो, कंपनी के प्रवर्तकों की विश्वसनीयता के बारे में पहले से कोई जानकारी न हो, कंपनी बहुत ज्यादा विज्ञापन कर रही हो, कंपनी के कारोबार का मॉडल आपको समझ में न आ रहो या फिर विश्वसनीय न लग रहा हो, कंपनी बड़ी रकम का लेन-देन नकद में कर रही हो, कोई जमा योजना आपको दो और लोगों को जोड़ने को कह रही हो, तो आपको इनसे दूर ही रहना चाहिए.
ऐसी किसी योजना में पैसा न लगायें, जो नियमन के अधीन नहीं हो. कोई जमा योजना चुनते समय देखें कि वह किस नियामक के दायरे में आयेगी- भारतीय रिजर्व बैंक, सेबी या राज्य सरकार. अगर योजना किसी के दायरे में नहीं है, तो उससे दूर रहें. अगर किसी योजना का रिटर्न बैंक एफडी वगैरह से ज्यादा है, तो आपको जानना चाहिए कि यह रिटर्न कहां से आयेगा.
उसकी क्रेडिट रेटिंग, पिछला वित्तीय रिकॉर्ड और उसकी विश्वसनीयता से जुड़े अन्य पहलू देखें. आप नियामक (आरबीआइ, सेबी, सरकार आदि) की वेबसाइट पर जाकर जमा योजना चलानेवाली कंपनी या समूह के बारे में पूरी छानबीन कर सकते हैं. कई कंपनियां रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (आरओसी) से मिले रजिस्ट्रेशन नंबर को अपनी विश्वसीयता के सबूत के रूप में प्रचारित करती हैं, लेकिन यह सरासर धोखा है. जब तक कोई कंपनी रिजर्व बैंक, सेबी या राज्य सरकार के नियमन में नहीं आती हो, उसके आरओसी में रजिस्ट्रेशन का कोई अर्थ नहीं है.
अधिकतर फरजी योजनाएं जांच-पड़ताल से इसलिए बच निकलती हैं, क्योंकि इन्हें जो समूह चलाते हैं, वे न तो बैंक होते हैं, न गैर बैंकिंग फाइनेंस कंपनियां और न ही सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध कंपनियां. यानी उन पर किसी वित्तीय नियामक की नजर नहीं होती. बैंकिंग और गैर बैंकिंग के अलावा जो भी निवेश योजनाएं हैं उन्हें ह्यसामूहिक निवेश योजनाह्ण (सीआइएस) माना गया है और सेबी के नियमन में लाया गया (धारा 11एए, सेबी अधिनियम, 1992) है. लेकिन सीआइएस के तहत कोई योजना पंजीकृत नहीं है.
* कहां है सुरक्षा
छोटी बचत के लिए डाक घर और बैंकों की योजनाएं सबसे अच्छी हैं. यहां जोखिम न के बराबर है. डाकघर में आवर्ती जमा (आरडी), एनएससी, बचत खाता, मासिक आय खाता, मियादी जमा, वरिष्ठ नागरिक बचत योजना, पीपीएफ जैसे कई विकल्प उपलब्ध हैं. अगर बैंक के जरिये छोटी बचत करनी है, तो सबसे अच्छे विकल्प सरकारी बैंक हैं. क्योंकि ये सबसे ज्यादा सुरक्षित हैं और इनमें निजी बैंकों के मुकाबले ज्यादा छोटी रकम जमा की जा सकती है. अगर निजी बैंक में पैसा जमा करना है, तो किसी जाने-माने बड़े बैंक को ही चुनें. सहकारी बैंकों से दूर रहना बेहतर है.
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