ऑडिटर्स का सुप्रीम कोर्ट में राजफाश : महज एक रुपये प्रति वर्गफुट की कीमत पर बुक कराये गये थे आम्रपाली के महंगे फ्लैट
नयी दिल्ली : फॉरेंसिक ऑडिट की वजह संकट में फंसे आम्रपाली समूह के कई नये राज सामने आ रहे है. इस काम के लिए नियुक्त ऑडिटरों ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 500 से अधिक लोगों के नाम पर महंगे-महंगे फ्लैटों की बुकिंग मात्र एक रुपये, पांच रुपये या 11 रुपये प्रति वर्गफुट […]
नयी दिल्ली : फॉरेंसिक ऑडिट की वजह संकट में फंसे आम्रपाली समूह के कई नये राज सामने आ रहे है. इस काम के लिए नियुक्त ऑडिटरों ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 500 से अधिक लोगों के नाम पर महंगे-महंगे फ्लैटों की बुकिंग मात्र एक रुपये, पांच रुपये या 11 रुपये प्रति वर्गफुट के भाव पर की गयी थी. ऑडिट में यह भी सामने आया है कि ड्राइवरों, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों और ऑफिस ब्वॉय का काम करने वालों के नाम पर 23 कंपनियां बनायी गयी थीं. ये कंपनियां आम्रपाली के गठबंधन का हिस्सा थीं और घर खरीदारों के पैसे को इधर उधर करने के लिए इनको आगे किया गया था.
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दो फॉरेंसिक ऑडिटरों ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उनके सामने 655 ऐसे लोगों के नाम आये हैं, जिनके नाम पर फ्लैट की ‘बेनामी’ बुकिंग की गयीं. उनके 122 पतों पर वैसा कोई व्यक्ति नहीं मिला. फॉरेंसिक ऑडिटरों की अंतरिम रिपोर्ट न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ को सौंपी गयी. रिपोर्ट में कहा गया है कि मुख्य वित्त अधिकारी (सीएफओ) ने चंदर वाधवा ने पिछले साल 26 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश होने से सिर्फ तीन दिन पहले 4.75 करोड़ रुपये अज्ञात लोगों को स्थानांतरित किये.
फॉरेंसिक ऑडिटर पवन कुमार अग्रवाल ने पीठ से कहा कि मार्च, 2018 तक वाधवा के खाते में 12 करोड़ रुपये थे. उसके बाद उन्होंने एक करोड़ रुपये अपनी पत्नी के नाम स्थानांतरित किये. 26 अक्टूबर को अदालत के समक्ष पहली बार पेश होने से तीन दिन पहले उन्होंने 4.75 करोड़ रुपये अज्ञात लोगों को स्थानांतरित किये. अग्रवाल की इस बात के बाद पीठ ने वाधवा की खिंचाई की और उनके खिलाफ अवमानना की चेतावनी दी. वाधवा उस समय अदालत में मौजूद थे.
अदालन ने कहा कि आप न्याय की राह में अड़गा डाल रहे हैं. आप को अच्छी तरह मालूम था कि आपस से सवाल किये जायेंगे. इसलिए आपने पैसा दूसरी जगह भेज दिया. आप सात दिन में वह पैसा वापस लाइये. आपको 23 अक्तूबर 2018 के बाद धन अंतरित करने का कोई कोई काम नहीं था. हम आप के खिलाफ अवमाना की कार्रवाई कर सकते हैं. पीठ ने फॉरेंसिक ऑडिटरों से आयकर विभाग के उस आदेश को पेश करने को कहा, जिसमें विभाग ने 2013-14 में अपनी छापेमारी और जब्ती कार्रवाई में 200 करोड़ रुपये के बोगस बिल और वाउचर जब्त किये थे.
साथ ही, उस समय आम्रपाली समूह के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक अनिल कुमार शर्मा से जो एक करोड़ रुपये तथा निदेशक शिव प्रिया से एक करोड़ रुपये मिले थे. एक अन्य फॉरेंसिक ऑडिटर रवि भाटिया ने बताया कि आम्रपाली समूह ने आयकर विभाग के आदेश को चुनौती दी थी, जिसने उस पैराग्राफ को हटा दिया, जिसमें कच्चे माल खरीद के लिए
200 करोड़ रुपये के बोगस बिल और वाउचरों का जिक्र था. पीठ ने ऑडिटरों से कहा कि आप आयकर विभाग और अपीलीय प्राधिकरण के दोनों ऑर्डर दिखाये. हम उन्हें देखना चाहते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने बहुराष्ट्रीय कंपनी जेपी मॉर्गन रीयल एस्टेट को भी इस मामले में आड़े हाथ लेते लिया. इस कंपनी ने 2010 में आम्रपाली जोडिएक में उसके शेयरों की खरीद के जरिये 85 करोड़ रुपये का निवेश किया था. बाद में इन शेयरों को रीयल्टी कंपनी की सहायक कंपनियों को बेच दिया गया था. फॉरेंसिक ऑडिटरों ने कहा कि जेपी मॉर्गन रीयल एस्टेट फंड तथा आम्रपाली समूह के बीच शेयर खरीद करार कानून के प्रावधानों का उल्लंघन था.
इस पर पीठ ने जेपी मॉर्गन और उसके भारतीय प्रभारी के वकील से कहा कि कंपनी को कई चीजें स्पष्ट करने की जरूरत है. उन्हें अपना जवाब एक सप्ताह में अपना जवाब देना है. पीठ ने चेताया कि यदि अदालत को इन सवालों का संतोषजनक जवाब नहीं मिलता है, तो गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ) इस मामले को देखेगा. बिना पंजीकरण आम्रपाली समूह की विभिन्न परियोजनाओं के लाखों खरीदारों को राहत देने के लिए पीठ ने पक्षों तथा नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों से उनके फ्लैटों के पंजीकरण के लिए कानूनी सुझाव मांगे हैं. इस मामले की सुनवाई की अगली तारीख 24 जनवरी तय की गयी है.
सुप्रीम कोर्ट ने 12 दिसंबर को दो फॉरेंसिक ऑडिटरों को करीब 3,000 करोड़ रुपये इधर-उधर करने की जांच को कहा था. यह फ्लैट खरीदारों का पैसा था, जो आम्रपाली समूह ने कथित रूप से अपनी सहयोगी कंपनियों के शेयर खरीदने तथा संपत्ति बनाने पर खर्च किया था.
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