एयरलाइंस बिजनेस बहुत ही नाजुक व्यापार है, पुरानी कंपनी जायेगी तो नयी कंपनी आयेगी

गुरचरण दास कारपोरेट मामलों के जानकार एयरलाइंस बिजनेस बहुत ही नाजुक व्यापार है. पेट्रोल के दाम बढ़ जाते हैं, तो सारी एयरलाइंस कंपनियां परेशानी में आ जाती हैं. कुछ साल पहले जब छोटी कंपनियां आयीं, जिनके पास बिजनेस क्लास सिस्टम नहीं है, जैसे स्पाइस जेट, इंडिगो, गोएयर आदि, ये सभी साधारण एयरलाइंस हैं. इनके टिकटों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 21, 2019 5:57 AM
गुरचरण दास
कारपोरेट मामलों के जानकार
एयरलाइंस बिजनेस बहुत ही नाजुक व्यापार है. पेट्रोल के दाम बढ़ जाते हैं, तो सारी एयरलाइंस कंपनियां परेशानी में आ जाती हैं. कुछ साल पहले जब छोटी कंपनियां आयीं, जिनके पास बिजनेस क्लास सिस्टम नहीं है, जैसे स्पाइस जेट, इंडिगो, गोएयर आदि, ये सभी साधारण एयरलाइंस हैं. इनके टिकटों की कीमतें कम होती हैं, जिससे जेट को मुकाबला करना पड़ा. एक समस्या तो यह है. दूसरी बात यह है कि जेट एयरवेज के नरेश गोयल ने कई दूसरी एयरलाइंस को आने नहीं दिया था. यह ठीक बात नहीं है. जब से जेट शुरू हुई है, तब से वह चाहता रहा है कि इस बिजनेस में उसका एकाधिकार कायम रहे. उड्डयन उद्योग के लिए यह ठीक बात नहीं है.
हमारे मार्केट सिस्टम में कंपनियां पैदा होती हैं, और फिर मर जाती हैं. इसलिए जेट एयरवेज के बंद होने से इतना दुखी नहीं होना चाहिए. मेरा मानना है कि जो खराब कंपनियां हैं, उन्हें मर जाना चाहिए. एक मशहूर अर्थशास्त्री थे शुमपीटर, जिन्होंने इसे ‘क्रिएटिव डिस्ट्रक्शन’ कहा था. यानी खराब कंपनी खत्म होगी, तो नयी कंपनी आ जायेगी.
भारत में अब दिवाला और दिवालियापन कोड (आईबीसी) लॉ मौजूद है, जिससे बहुत सारी कंपनियां अपने मालिकों के हाथ से निकल जायेंगी और इनके लिए नये मैनेजमेंट आ जायेंगे. यह बुरी बात नहीं है. इसमें होता यह है कि डूब रही पुरानी कंपनी की निलामी होती है, जिसे किसी नयी कंपनी ले लेती है. इसलिए अब भी मौका है कि जेट को कोई दूसरी कंपनी खरीद लेगी.जेट पर बैंकों का कर्ज है, इसलिए वह अभी बैंकों के पास है. बैंक कोशिश में हैं कि जेट को कोई खरीद ले.
लेकिन, दूसरी कंपनियां इस बात से डर रही हैं कि जेट के खर्चे ज्यादा हैं और आय कम है. जो भी कंपनी इसे खरीदेगी, उसे सबसे पहले इसका मैनेजमेंट बदलना पड़ेगा, ताकि खर्च कम करके आय को बढ़ायी जा सके. कोशिश हुई है कि कोई विदेशी कंपनी इसे खरीद ले, लेकिन अभी तक किसी ने भी इसमें दिलचस्पी नहीं दिखायी है.
भारत सरकार इस मामले में कुछ नहीं कर सकती और उसे करना भी नहीं चाहिए. एयरलाइन चलाना सरकार का काम नहीं है, इसलिए उसके हाथ में एयर इंडिया भी नहीं होना चाहिए. हालांकि, एयर इंडिया को बेचने की भी कोशिश हो रही है.

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