मुंबई : आर्थिक वृद्धि दर में नरमी के बीच रिजर्व बैंक ने आज अपनी मुख्य नीतिगत ब्याज दर रेपो में 0.25 प्रतिशत की कटौती की और साथ ही आगे के लिए नीतिगत रुख को ‘तटस्थ’ से ‘नरम’ कर दिया. इस साल यह लगातार तीसरा मौका है जब केंद्रीय बैंक ने बैंकों के लिए सस्ता धन सुलभ कराने के लिए अपनी नीतिगत दर में कटौती की गयी है. इसके साथ ही बैंक ने डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने के लिए आरटीजीएस और एनईएफटी पर शुल्क समाप्त करने की घोषणा कर दी. एटीएम शुल्क, बैंकों द्वारा लिये जाने वाले शुल्क की समीक्षा के लिए समिति का गठन भी किया गया है. इन तीनों मौकों को मिला कर रेपो रेट में कुल 0.75 प्रतिशत की कटौती हो चुकी है.
रेपो रेट वह रेट है जिस पर केंद्रीय बैंक वाणिज्यिक बैंकों को उनकी तत्काल की जरूरत के लिए एक दिन के लिए धन उधार देता है. केंद्रीय बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर के पूर्व के 7.2 प्रतिशत के अनुमान को घटाकर 7 प्रतिशत कर दिया है. वृद्धि दर के अनुमान में कमी का कारण कमजोर वैश्विक परिदृश्य तथा निजी खपत में कमी है. रेपो रेट में इस कटौती के साथ यह 5.7 प्रतिशत पर आ गयी है. रेपो रेट वह रेट है जिस पर रिजर्व बैंक बैंकों को कर्ज देता है.
रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2019-20 की पहली छमाही के लिए मुद्रास्फीति के अनुमान को मामूली रूप से बढ़ाकर 3 से 3.1 प्रतिशत कर दिया है. यह सरकार द्वारा निर्धारित 2 से 6 प्रतिशत के दायरे में है. मौद्रिक नीति घोषणा में कहा गया है, ‘‘मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) इस बात पर गौर करती है कि आर्थिक वृद्धि दर उल्लेखनीय रूप से कमजोर पड़ी है.निवेश गतिविधियों में तीव्र गिरावट के साथ निजी खपत वृद्धि में नरमी चिंता की बात है.’ रिजर्व बैंक की अगली मौद्रिक नीति समीक्षा 5 से 7 अगस्त 2019 को की जाएगी.
आर्थिक वृद्धि दर अनुमान घटाकर 7 प्रतिशत किया
रिजर्व बैंक ने घरेलू गतिविधियों में नरमी तथा वैश्विक स्तर पर व्यापार युद्ध बढ़ने के मद्देनजर चालू वित्त वर्ष के लिए आर्थिक वृद्धि दर अनुमान को कम कर 7 प्रतिशत कर दिया. इससे पहले, अप्रैल में मौद्रिक नीति समिति ने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर 2019-20 में 7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया था. इसमें पहली छमाही में वृद्धि 6.8 से 7.1 तथा दूसरी छमाही में 7.3 से 7.4 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया था. इसमें जोखिम दोनों तरफ समान रूप से बराबर है. केंद्रीय बैंक ने मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक के बाद कहा कि वित्त वर्ष 2018-19 की जनवरी-मार्च तिमाही के आंकड़े से संकेत मिलता है कि घरेलू निवेश कमजोर है और कुल मिलाकर मांग कमजोर हुई है.निर्यात में नरमी इसका एक बड़ा कारण है.वैश्विक स्तर पर मांग की कमजोरी का कारण व्यापार युद्ध का बढ़ना है.इससे भारत के निर्यात और निवेश पर असर पड़ सकता है.इसके अलावा हाल के महीनों में खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में निजी खपत कमजोर हुई है.हालांकि वृद्धि के लिए कई अनुकूल बातें भी हैं.इनमें राजनीतिक स्थिरता, स्थापित उत्पादन क्षमता का उपयोग बढ़ना, दूसरी तिमाही में व्यावसायिक इकाइयों की भविष्य को लेकर प्रत्याशाओं में सुधार , शेयर बाजार में उछाल तथा वाणिज्यिक क्षेत्र को कर्ज वितरण में सुधार जैसी बातें शामिल हैं.इन कारकों तथा नीतिगत दरों में हाल की कटौती के प्रभाव पर विचार करते हुए 2019-20 में जीडीपी वृद्धि दर के अप्रैल अनुमान को 7.2 प्रतिशत से घटाकर 7.0 प्रतिशत कर दिया है.
प्रमुख बातें
-रेपो दर में लगातार तीसरी बार 0.25 प्रतिशत की कटौती
-रेपो दर अब 5.75 प्रतिशत
– रिवर्स रेपो 5.50 प्रतिशत
– वर्ष 2019-20 में जीडीपी की वृद्धि का पूर्वानुमान 7.20 प्रतिशत से घटाकर सात प्रतिशत किया गया
-खुदरा मुद्रास्फीति का पूर्वानुमान बढ़ाकर अप्रैल-सितंबर के लिए 3.0-3.1 प्रतिशत और अक्टूबर-मार्च के लिए 3.40-3.70 प्रतिशत
– निकट भविष्य में खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ने का अनुमान। : मानसून की अनिश्चितता, सब्जियों की कीमतों में बेमौसम तेजी, कच्चा तेल की बढ़ती कीमतें, वित्तीय बाजार का उथल-पुथल और राजकोषीय परिदृश्य के कारण मुद्रास्फीति बढ़ने का जोखिम
– डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने के लिए आरटीजीएस और एनईएफटी पर शुल्क समाप्त-
– एटीएम शुल्क, बैंकों द्वारा लिये जाने वाले शुल्क की समीक्षा के लिए समिति का गठन
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