नयी दिल्ली : रिजर्व बैंक के पास उपलब्ध अतिरिक्त अधिशेष पूंजी को लेकर महीनों से चल रही खींचतान अब पटाक्षेप होने के कगार पर दिखाई दे रहा है. इसकी वजह यह है कि इस मसले को लेकर सरकार की ओर से रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता में गठित छह सदस्यीय समिति ने अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप दे दिया है और संभावना यह भी है कि वह जल्द ही सरकार को सौंप दी जायेगी. समिति ने रिजर्व बैंक को उसके पास उपलब्ध अतिरिक्त पूंजी तीन से पांच साल के अंतराल में सरकार को हस्तांतरित करने की सिफारिश की है.
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मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार, भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अगुवाई वाली उच्चस्तरीय समिति ने केंद्रीय बैंक के पास पूंजी के उपयुक्त स्तर पर अपनी रिपोर्ट को बुधवार को अंतिम रूप दे दिया. छह सदस्यीय जालान समिति की नियुक्ति 26 दिसंबर, 2018 को की गयी थी. समिति को केंद्रीय बैंक की आर्थिक पूंजी रूपरेखा ढांचे की समीक्षा कर रिजर्व बैंक के पास रहने वाले उपयुक्त पूंजी स्तर के बारे में सिफारिश देने को कहा गया.
हालांकि, जून, 2019 के मध्य में इस बात की भी चर्चा थी कि अतिरिक्त अधिशेष पूंजी के संबंध में बिमल जालान समिति जून के अंत में ही अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप देगी. बताया जा रहा है कि फिलहाल, रिजर्व बैंक के पास 9.6 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक का पूंजी अधिशेष है. सूत्रों ने बुधवार को यहां समिति की बैठक के बाद कहा कि रिपोर्ट को अंतिम रूप दे दिया गया है. अब आगे और बैठक की जरूरत नहीं है.
समझा जाता है कि समिति ने रिजर्व बैंक के पास उपलब्ध अतिरिक्त अधिशेष पूंजी को अगले तीन से पांच साल के दौरान सरकार को हस्तांतरित करने की सिफारिश की है. समिति में रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर राकेश मोहन, वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग, रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एनएस विश्वनाथन और रिजर्व बैंक के केंद्रीय निदेशक मंडल के दो सदस्य भारत दोषी और सुधीर मनकड़ शामिल हैं.
वित्त मंत्रालय ने रिजर्व बैंक से सर्वश्रेष्ठ वैश्विक नीतियों का पालन करते हुए अधिक अधिशेष सरकार को हस्तांतरित करने के लिए कहा था. बाद में सरकार ने रिजर्व बैंक के आर्थिक पूंजी ढांचे (ईसीएफ) की समीक्षा के लिए इस समिति का गठन कर दिया.
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