ऋण शोधन अक्षमता कानून में सात संशोधनों को हरी झंडी, समाधान योजना सभी पर बाध्यकारी

नयी दिल्ली : दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता कानून को अधिक उपयोगी और कारगर बनाने के लिए सरकार ने इस कानून में सात संशोधन करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. इन संशोधनों में समाधान प्रक्रिया को पूरा करने के लिए 330 दिन की समयसीमा रखी गयी है साथ ही समाधान योजना को सभी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 17, 2019 9:28 PM

नयी दिल्ली : दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता कानून को अधिक उपयोगी और कारगर बनाने के लिए सरकार ने इस कानून में सात संशोधन करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है.

इन संशोधनों में समाधान प्रक्रिया को पूरा करने के लिए 330 दिन की समयसीमा रखी गयी है साथ ही समाधान योजना को सभी संबद्ध पक्षों के लिए बाध्यकारी बनाने का भी प्रावधान किया गया है. विशेषज्ञों का कहना है कि इन बदलावों से कानून के अमल में आने वाली कई तरह की अड़चनों को दूर करने और समाधान प्रक्रिया को अधिक सरल बनाने में मदद मिलेगी. इसके साथ ही समय की भी बचत होगी. बैंकों के पुराने फंसे कर्जों की वसूली को सुनिश्चित करने के लिए लाये गये इस कानून में अब तक दो बार संशोधन किया जा चुका है.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) संशोधन विधेयक 2019 के मसौदे को मंजूरी दी गयी. सात संशोधनों में एक प्रावधान यह भी रखा गया है कि ऋण शोधन प्रक्रिया के दौरान सामने आने वाली समाधान योजना सभी संबद्ध पक्षों पर बाध्यकारी होगी. इसमें लंबित कर्ज की देनदारी रखने वाली केंद्र सरकार, कोई भी राज्य सरकार, स्थानीय प्राधिकरण को भी शामिल किया गया है. सूत्रों का कहना है कि ऋणदाताओं की समिति (सीओसी) प्रक्रिया के किसी भी समय कर्जदार कंपनी के परिसमापन का फैसला कर सकती है. यह निर्णय सीओसी समिति के गठन के बाद और समाधान के लिए सूचना ज्ञापन तैयार करने से पहले किसी भी समय ले सकती है.

संशोधनों के बाद कानून में समाधान योजना के हिस्से के तौर पर विलय और अलग होने जैसे कंपनी में व्यापक पुनर्गठन योजना की मंजूरी को लेकर भी अधिक स्पष्टता दी गयी है. सूत्रों ने बताया कि कंपनियों के लिए दिवाला समाधान प्रक्रिया को पूरा करने के लिए 330 दिन का समय होगा. इसमें विवाद और दूसरी न्यायिक प्रक्रियाओं में लगने वाला समय भी शामिल होगा. वर्तमान में यह समयसीमा 270 दिन है, लेकिन कई मामलों में विवाद होने पर अधिक समय लग रहा है.

एक आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया है कि जिन संशोधन प्रस्तावों को मंजूरी दी गयी है वह कंपनियों के दिवाला समाधान रूपरेखा ढांचे में सामने आ रही अहम खामियों को दूर करने के लिहाज से दी गयी है. हालांकि, इसके साथ ही समाधान प्रक्रिया से अधिक से अधिक मूल्य प्राप्त हो सके इस बात का भी ध्यान रखा गया है.

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