नयी दिल्ली : सार्वजनिक क्षेत्र की दो तेल उत्पादक कंपनियों के बीच बीते डेढ़ साल से लगातार लहक रही जंग की आग थमने का नाम नहीं ले रही है. हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) ने पिछले डेढ़ साल से अपनी बहुलांश शेयरधारक आयल एंड नैचुरल गैस (ओएनजीसी) को प्रवर्तक मानने से एक बार फिर इनकार कर दिया है.
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दरअसल, ओएनजीसी ने पिछले साल जनवरी में एचपीसीएल में सरकार की समूची 51.11 फीसदी हिस्सेदारी 36,915 करोड़ रुपये में खरीदी थी. एचपीसीएल उसके बाद ओएनजीसी की अनुषंगी बन गयी थी. हालांकि, एचपीसीएल का प्रबंधन लगातार ओएनजीसी को अपनी प्रवर्तक के रूप में मान्यता देने से इनकार कर रहा है.
एचपीसीएल की ओर से 21 जुलाई को शेयर बाजारों को भेजी सूचना में 30 जून, 2019 को समाप्त तिमाही में शेयरधारिता की जानकारी दी है. इसमें ओएनजीसी को एक बार फिर प्रवर्तक के रूप में दर्शाने की बजाय ‘सार्वजनिक शेयरधारक’ के तौर पर पेश किया गया है.
पिछली पांच तिमाहियों के दौरान शेयर बाजारों को दी गयी सूचना की तरह इस बार भी एचपीसीएल ने ‘शून्य’ शेयरधारिता के साथ भारत के राष्ट्रपति को अपना प्रवर्तक बताया है. ओएनजीसी के पास कंपनी के 77.88 करोड़ शेयर या 51.11 फीसदी हिस्सेदारी है, लेकिन उसे सार्वजनिक शेयरधारक के रूप में दिखाया गया है.
ओएनजीसी से जुड़े सूत्रों ने कहा कि आईटी कंपनी माइंडट्री ने लार्सन एंड टुब्रो द्वारा उसकी बहुलांश हिस्सेदारी के अधिग्रहण के एक दिन बाद ही इंजीनियरिंग क्षेत्र की दिग्गज को अपने प्रवर्तक के रूप में पहचान दे दी थी. वहीं, एचपीसीएल लगातार ओएनजीसी को प्रवर्तक मानने से इनकार करती रही है. इस बारे में एचपीसीएल के प्रवक्ता को भेजे ई-मेल का जवाब नहीं मिला है.
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