पावर सेक्रेटरी एससी गर्ग ने कहा, दिवाला कानून से नहीं, संपत्ति पुनर्गठन से ही संकटग्रस्त बिजली कंपनियों का पुनरुद्धार

मुंबई : वित्तीय संकट से जूझ रही बिजली कंपनियों का समाधान या पुनरुद्धार मौजूदा दिवाला कानून नहीं कर सकता, लेकिन संपत्ति पुनर्गठन कंपनियां इस मामले में कारगर साबित हो सकती हैं. बिजली सचिव एससी गर्ग ने शुक्रवार को यह बात कही. गर्ग ने कहा कि मौजूदा दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता प्रक्रिया के तहत यदि […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 23, 2019 6:33 PM

मुंबई : वित्तीय संकट से जूझ रही बिजली कंपनियों का समाधान या पुनरुद्धार मौजूदा दिवाला कानून नहीं कर सकता, लेकिन संपत्ति पुनर्गठन कंपनियां इस मामले में कारगर साबित हो सकती हैं. बिजली सचिव एससी गर्ग ने शुक्रवार को यह बात कही. गर्ग ने कहा कि मौजूदा दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता प्रक्रिया के तहत यदि किसी बिजली कंपनी को राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) में भेजा जाता है, तो उसके अहम बिजली खरीद और ईंधन आपूर्ति समझौते समाप्त हो जाते हैं और बच जाते हैं, तो सिर्फ संयंत्र और मशीनें.

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उन्होंने कहा कि बिजली क्षेत्र किसी बैंक के लिए परिसंपत्ति के आधार पर प्रदर्शन करने वाला सबसे खराब क्षेत्र है. इस क्षेत्र में पूरी दबाव वाली परिसंपत्तियां करीब 4,000 अरब रुपये या 65,000 मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता से अधिक की होंगी. गर्ग यहां एसोचैम द्वारा परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनियों पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि हर तरह के उद्योग या परिसंपत्ति का समाधान दिवाला एवं ऋणशोधन संहिता (आईबीसी) से नहीं किया जा सकता है.

गर्ग ने कहा कि यदि बिजली क्षेत्र की परिसंपत्तियों को एनसीएलटी में भेजा जाता है, तो बिजली संयंत्र के अलावा परोक्ष तौर पर कुछ भी नहीं बचेगा. बिजली खरीद और ईंधन आपूर्ति समझौते समाप्त हो जायेंगे और इसके चलते कोई नया खरीदार उसे खरीदने में दिलचस्पी नहीं दिखायेगा. इस क्षेत्र के संकट को दूर करने में परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनियां कारगर हो सकती हैं. उन्होंने कहा कि इस मामले में संपत्ति पुनर्गठन कंपनियां जो कि एक दशक से काम कर रही हैं, वह उद्योग के विशेषज्ञों के साथ मिलकर वित्तीय संकट में फंसी बिजली कंपनियों के लिए कोई समाधान निकाल सकतीं हैं.

गर्ग ने संपत्ति पुनर्गठन कंपनियों यानी एआरसी के अधिकारों में संशोधन की भी वकालत की. उन्होंने कहा कि इन कंपनियों को संपत्ति प्रबंधक के तौर पर अधिकार दिये जाने चाहिए. फिलहाल, इनके अधिकार केवल एक ऋण का प्रबंधन करने वाली कंपनी तक सीमित हैं.

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