नयी दिल्ली : अर्थव्यवस्था में नरमी और नकदी समस्या का सामना कर रही केंद्र सरकार को आर्थिक विकास के मोर्चे पर भी झटका लगा है. चालू वित्त वर्ष 2019-20 में अप्रैल-जून की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर घटकर पांच फीसदी पर रह गयी है. यह साढ़े छह साल का निचला स्तर है. बीते वित्त वर्ष 2018-19 की अंतिम तिमाही में आर्थिक विकास दर 5.8 फीसदी रही थी. केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) की ओर से जारी आंकड़ों में यह जानकारी दी गयी है.
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हालांकि, देश में घरेलू मांग में गिरावट तथा निवेश की स्थिति अच्छी नहीं रहने से पहले से ही उम्मीद जतायी जा रही थी कि जून की तिमाही में विकास दर का आंकड़ा पहले से ज्यादा नरम रहेगा. वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में देश की अर्थव्यवस्था सालाना आधार पर महज पांच फीसदी की दर से आगे बढ़ी है. विकास दर का यह आंकड़ा बाजार की 5.7 फीसदी की उम्मीद से काफी कम है. साल 2013 के बाद जीडीपी विकास का यह सबसे बुरा दौर है.
आंकड़ों के मुताबिक, उत्पादन क्षेत्र पिछले वित्त वर्ष (2018-19) के 12.1 फीसदी की तुलना में महज 0.6 फीसदी की दर से आगे बढ़ा. वहीं, कृषि, वनोपज और मत्स्य उत्पादन क्षेत्र में पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के 5.1 फीसदी की तुलना में दो फीसदी की दर से वृद्धि दर्ज की गयी. खनन क्षेत्र में पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के 0.4 फीसदी की तुलना में 2.7 फीसदी की दर से वृद्धि दर्ज की गयी. वहीं, बिजली, गैस, जलापूर्ति तथा अन्य उपभोक्ता क्षेत्र पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के 6.7 फीसदी की तुलना में 8.6 फीसदी की दर से आगे बढ़े. विनिर्माण क्षेत्र में पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के 9.6 फीसदी की तुलना में 5.7 फीसदी की दर से वृद्धि दर्ज की गयी. व्यापार, होटल, परिवहन, संचार तथा सेवा क्षेत्र में पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के 7.8 फीसदी की तुलना में 7.1 फीसदी की दर से वृद्धि दर्ज की गयी.
इसके अलावा, वित्त, रियल एस्टेट तथा पेशेवर सेवाओं में पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के 6.5 फीसदी की तुलना में 5.9 फीसदी की दर से वृद्धि दर्ज की गयी. लोक प्रशासन, रक्षा तथा अन्य सेवाओं में पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के 7.5 फीसदी की तुलना में 8.5 फीसदी की दर से वृद्धि दर्ज की गयी. जीडीपी वृद्धि दर में गिरावट पहली तिमाही में औद्योगिक उत्पादन वृद्धि के अनुकूल है, जो महज 3.6 फीसदी रही थी, जबकि पिछले साल की समान तिमाही में यह आंकड़ा 5.1 फीसदी था.
बार-बार आने वाले आर्थिक सूचकों जैसे वाहनों की बिक्री, रेल मालवाहन आदि ने उपभोग खासकर निजी उपभोग में गिरावट का संकेत दिया था, जबकि महंगाई दर कम रही थी. आरबीआई ने लगातार चौथी बार रेपो रेट में कटौती की, लेकिन अर्थशास्त्री इसका असर तत्काल दिखने को लेकर आशंकित थे. लगातार चार बार में रिजर्व बैंक कुल एक फीसदी की कटौती कर चुका है.
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