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निजी बिजली कंपनियों के बिलों के भुगतान के लिए बनाया जा सकता है ई-प्लेटफॉर्म

मुंबई : केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) के चेयरमैन की अध्यक्षता में गठित समिति ने राज्य विद्युत वितरण कंपनियों द्वारा निजी क्षेत्र की बिजली उत्पादक (आईपीपी) कंपनियों के बिलों का भुगतान सुनिश्चित करने के लिए एमएसएमई क्षेत्र की तर्ज पर ई-प्लेटफॉर्म बनाने का सुझाव दिया है. इस समिति का गठन राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों द्वारा […]

मुंबई : केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) के चेयरमैन की अध्यक्षता में गठित समिति ने राज्य विद्युत वितरण कंपनियों द्वारा निजी क्षेत्र की बिजली उत्पादक (आईपीपी) कंपनियों के बिलों का भुगतान सुनिश्चित करने के लिए एमएसएमई क्षेत्र की तर्ज पर ई-प्लेटफॉर्म बनाने का सुझाव दिया है. इस समिति का गठन राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों द्वारा स्वतंत्र बिजली उत्पादकों को पहले भुगतान की संभावनायें तलाशने के लिए किया गया था. सरकार ने इस साल फरवरी में सीईए के अंतर्गत यह समिति गठित की.

इसे भी देखें : रांची : फरवरी से बिजली बिल के साथ भुगतान कर सकेंगे उपभोक्ता

बिजली वितरण कंपनियों द्वारा बिजली आपूर्तिकर्ता कंपनियों को देरी से भुगतान की समस्या लंबे समय से बनी हुई है. इसको देखते हुए केंद्रीय बिजली मंत्रालय ने बिजली उत्पादक कंपनियों को समय पर बिजली का भुगतान किया जा सके. इसके लिए एक अगस्त से राज्य बिजली वितरण कंपनियों द्वारा बिजली खरीद को लेकर साख पत्र (एलसी) की पेशकश करना अनिवार्य कर दिया. उसके बाद से ही ज्यादातर बिजली वितरण कंपनियां साख पत्र जारी कर रही हैं.

सीईए चेयरमैन प्रकाश मस्के की अध्यक्षता वाली इस समिति में बिजली मंत्रालय, बिजली उत्पादक और दो राज्य वितरण कंपनियों के सदस्य शामिल थे. यहां यह उल्लेखनीय है कि नकदी संकट से जूझ रही राज्य बिजली वितरण कंपनियों पर निजी क्षेत्र की बिजली उत्पादक कंपनियों का दिसंबर, 2018 तक 72,000 करोड़ रुपये का बकाया था. इस स्थिति के चलते बिजली क्षेत्र में बैंकों के साथ 30 बिजली उत्पादक कंपनियों के तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक के फंसे कर्ज की स्थिति बनी है.

समिति ने अपनी रिपोर्ट में बिजली उत्पादक कंपनियों के लिए ‘बिल डिस्काउंटिंग’ के लिए ई-प्लेटफार्म सृजित करने की सिफारिश की है. इसमें वाणिज्यिक बैंक वित्तपोषण का काम कर सकते हैं. रिपोर्ट के अनुसार, यह मंच ट्रेडर्स (कारोबार के दौरान होने वाली प्राप्ति पर आधारित प्रणाली) की तर्ज पर काम कर सकता है. इस तरह की प्रणाली का उपयोग सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) द्वारा भी किया जाता है.

समिति ने कोयला, लिग्नाइट या गैस जैसे ईंधन का उपयोग करने वाली बिजली उत्पादक कंपनियों के लिए अनुमानित बिल का 50 फीसदी अग्रिम भुगतान की सिफारिश की है. अन्य मामलों में अग्रिम भुगतान अनुमानित बिल का 25 फीसदी हो सकता है. समिति ने यह भी सिफारिश की है कि राज्य अन्य सरकारी विभागों से बकाये का हस्तांतरण सीधे अपनी संबंधित वितरण कंपनियों को करने की व्यवस्था करे.

हालांकि, उद्योग के एक विशेषज्ञ ने कहा कि सिफारिशें भविष्य के भुगतान को लेकर की गयी हैं, लेकिन पिछले बकाये के बारे में इसमें कुछ नहीं कहा गया है. उसने कहा कि वितरण कंपनियों पर बकाया करीब 51,000 करोड़ रुपये का है. सरकार ने बिजली वितरण कंपनियों को साख पत्र की पेशकश करने का निर्देश देने की योजना बनायी है. यह सकारात्मक कदम है, लेकिन पुरानी बकाया राशि का क्या होगा? इस बारे में भी सरकार को तुरंत कदम उठाना चाहिए.

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