पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने कहा, वित्त आयोग की शर्तें बदलने से पहले राज्यों के साथ करना चाहिए था मशविरा

नयी दिल्ली : पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 15वें वित्त आयोग के विषय एवं शर्तों में बदलाव के तरीके को ‘एकपक्षीय’ बताते हुए इसके लिए शनिवार को केंद्र सरकार की आलोचना की. उन्होंने कहा कि एकपक्षीय सोच संघीय नीति एवं सहकारी संघवाद के लिए ठीक नहीं है. सिंह ने वित्त आयोग के समक्ष रखे गए […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 14, 2019 4:40 PM

नयी दिल्ली : पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 15वें वित्त आयोग के विषय एवं शर्तों में बदलाव के तरीके को ‘एकपक्षीय’ बताते हुए इसके लिए शनिवार को केंद्र सरकार की आलोचना की. उन्होंने कहा कि एकपक्षीय सोच संघीय नीति एवं सहकारी संघवाद के लिए ठीक नहीं है. सिंह ने वित्त आयोग के समक्ष रखे गए अतिरिक्त विषयों और राज्यों पर उनके संभावित प्रभाव के बारे में राजधानी में एक राष्ट्रीय परिचर्चा को संबोधित करते हुए कहा, ‘सरकार वित्त आयोग के विचारणीय विषय व शर्तों में फेरबदल करना भी चाहती थी, तो अच्छा तरीका यही होता कि उस पर ‘राज्यों के मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन’ का समर्थन ले लिया जाता. यह सम्मेलन अब नीति आयोग के तत्वावधान में होता है.

उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं करने से यह संदेश जायेगा कि धन के आवंटन के मामले में केंद्र सरकार राज्यों के अधिकारों का हनन करना चाहती है. उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि हम अपने देश की जिस संघीय नीति और सहकारी संघवाद की कसमें खाते हैं, यह उसके लिए ठीक नहीं है. सिंह ने कहा, ‘आयोग की रिपोर्ट वित्त मंत्रालय के पास जाती है और उसके बाद इसे मंत्रिमंडल को भेजा जाता है. ऐसे में मौजूदा सरकार को यह देखना चाहिए कि वह राज्यों के आयोगों पर एकपक्षीय तरीके से अपना दृष्टिकोण थोपने की बजाय संसद का जो भी आदेश हो उसका पालन करे.

उल्लेखनीय है कि 15वें वित्त आयोग को राज्यों के बीच राशि के बंटवारे का आधार 1971 के बजाय 2011 की जनसंख्या को बनाने के लिए कहा गया है. दक्षिण भारत के कुछ राज्य इसका विरोध कर रहे हैं. प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी एनके सिंह की अध्यक्षता में 15वें वित्त आयोग का गठन 27 नवंबर, 2017 को किया गया था. इसे अपनी सिफारिशें 30 अक्टूबर, 2019 तक देनी हैं. अब इसे बढ़ाकर 30 नवंबर, 2019 कर दिया गया है.

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा, ‘मैं सभी प्राधिकरणों से सम्मान के साथ यह निवेदन करता हूं कि वे अभी भी इस संबंध में किसी विवाद की स्थिति में मुख्यमंत्रियों के सुझावों पर गौर करें. उन्होंने कहा कि सहकारी संघवाद में परस्पर समझौते करने की जरूरत होती है. इसलिए यह जरूरी है कि केंद्र सरकार राज्यों की बात सुने और उन्हें अपने साथ लेकर चले.

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