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Goldman Sachs ने आर्थिक वृद्धि दर को घटाकर 6 फीसदी किया, कहा- 2008 से बड़ा और व्यापक है मौजूदा आर्थिक संकट

मुंबई : प्रतिभूति तथा निवेश प्रबंधन से जुड़ी वैश्विक कंपनी गोल्डमैन सैश ने भारत की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को घटाकर नीचे जाने के जोखिम के साथ 6 फीसदी कर दिया है. साथ ही, कहा है कि मौजूदा आर्थिक संकट 2008 से बड़ा है. उसने कहा कि देश के समक्ष खपत में गिरावट एक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 17, 2019 5:23 PM

मुंबई : प्रतिभूति तथा निवेश प्रबंधन से जुड़ी वैश्विक कंपनी गोल्डमैन सैश ने भारत की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को घटाकर नीचे जाने के जोखिम के साथ 6 फीसदी कर दिया है. साथ ही, कहा है कि मौजूदा आर्थिक संकट 2008 से बड़ा है. उसने कहा कि देश के समक्ष खपत में गिरावट एक बड़ी चुनौती है और इसका कारण गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के संकट को नहीं ठहराया जा सकता.

इसका कारण यह है कि आईएलएंडएफएस के भुगतान संकट से पहले ही खपत में गिरावट शुरू हो गयी थी. कई लोग खपत में नरमी का कारण एनबीएफसी संकट को बता रहे हैं. एनबीएफसी में संकट सितंबर 2018 में शुरू हुआ. उस समय आईएलएंडएफएस में पहले भुगतान संकट का मामला सामने आया था. उसके बाद इन संस्थानों से खपत के लिए वित्त पोषण थम गया.

ब्रोकरेज कंपनी गोल्डमैन सैश की वॉल स्ट्रीट में मुख्य अर्थशास्त्री प्राची मिश्रा के अनुसार, उसके विश्लेषण से पता चलता है कि खपत में जनवरी, 2018 से गिरावट जारी है. यह अगस्त, 2018 में आईएलएंडएफएस द्वारा चूक से काफी पहले की बात है. उन्होंने कहा कि खपत में गिरावट कुल वृद्धि में कमी में एक तिहाई योगदान है. इसके साथ ही, वैश्विक स्तर पर नरमी से वित्त पोषण में बाधा उत्पन्न हुई है.

यहां एक कार्यक्रम में प्राची ने कहा कि नरमी की स्थिति है और वृद्धि के आंकड़े 2 फीसदी नीचे आये हैं. हालांकि, उन्होंने कहा कि दूसरी छमाही में आर्थिक वृद्धि बढ़ने की उम्मीद है. इसका कारण आरबीआई की सस्ती मौद्रिक नीति है. केंद्रीय बैंक ने प्रमुख नीतिगत दर में रिकॉर्ड पांच बार कटौती की है. कुल मिलाकर रेपो रेट में पांच बार में 1.35 फीसदी की कटौती की जा चुकी है. फरवरी से हो रही इस कटौती के बाद रेपो रेट 5.15 फीसदी पर आ गयी है. इसके अलावा, कंपनियों के कर में कटौती जैसे उपायों से भी धारणा मजबूत होगी और वृद्धि में तेजी आयेगी.

अर्थशास्त्री ने कहा कि निवेश और निर्यात लंबे समय से घट रहा है, लेकिन खपत में तीव्र गिरावट चिंता का नया कारण है. उन्होंने कहा कि मौजूदा नरमी पिछले 20 महीने से जारी है. यह नोटबंदी या 2008 की वित्तीय संकट जैसी उन चुनौतियों से अलग है, जिसकी प्रकृति अस्थायी थी. यह बात ऐसे समय आयी है, जब जून तिमाही में वृद्धि दर छह साल के न्यूनतम स्तर 5 फीसदी पर आ गयी. इसके बाद आरबीआई ने 2019-20 के लिए आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को कम कर 6.1 फीसदी कर दिया है. इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसी एजेंसियों ने भी भारत की वृद्धि दर के अनुमान को कम किया है.

श्रेई इंफ्रा फाइनेंस के चेयरमैन हेमंत कनोड़िया ने कहा कि कंपनी के शोध के अनुसार समस्या का 40 फीसदी कारण वैश्विक व्यापार में नरमी है. वहीं, 30 फीसदी कमी का कारण खपत में नरमी है. शेष का कारण वित्त पोषण को लेकर बाधाएं हैं. उन्होंने कहा कि कंपनी ने कर्ज वितरण को रोक दिया और बारिश के दिनों के लिए नकदी को रखना उचित समझा. इसके कारण निर्माण उपकरण किराये पर लेने के मामले में 30 फीसदी की तीव्र गिरावट आयी.

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