औरंगाबाद : बरसों से सूखे की मार झेल रहे महाराष्ट्र के उस्मानाबाद के किसानों के लिए दो जून की रोटी जुटाना मुश्किल हो गया था और ऐसे में बकरियां उनके लिए संजीवनी साबित हुई हैं, जिनके दूध से बने साबुन बेचकर अब उनका चूल्हा जल रहा है. एक स्थानीय गैर-सरकारी संगठन की मदद से महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले के 25 गांवों के 250 परिवार अब साबुन बनाने का काम कर रहे हैं.
‘शिवार संस्था’ के सीईओ विनायक हेगाना ने कहा कि यह परियोजना उन किसान परिवारों की मदद के लिए शुरू की गयी, जिन्होंने अभाव के कारण आत्महत्या कर ली या बुरे दौर का सामना कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि पीड़ित परिवारों को आर्थिक मदद देने की बजाय हमने उन्हें आजीविका चलाने का तरीका सिखाने का फैसला किया. हमने उन्हें बताया कि कैसे उस्मानाबादी बकरियों को बेचने की बजाय उन्हें पालकर वे मुनाफा कमा सकते हैं.
हेगाना ने कहा कि विटामिन ए, ई, सेलेनियम और अल्फा हाइड्रोक्सी अम्ल से भरपूर बकरी का दूध त्वचा के रोगों का उपचार करता है. इस संस्था का वहां कोई कारखाना नहीं है, लेकिन एक किसान के घर से ही पूरा काम हो रहा है. किसानों को एक लीटर बकरी के दूध के 300 रुपये मिलते हैं और एक दिन के काम का 150 रुपये दिये जा रहे हैं. इस काम में 250 परिवार और उनकी 1400 बकरियां शामिल हैं.
संस्था इस परियोजना में 10,000 और परिवारों को जोड़ने जा रही है, जिनके बनाये साबुन राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेचने की भी योजना है. उप संभागीय कृषि अधिकारी भास्कर कोलेकर ने कहा कि हमारे विभाग ने इन गांवों के किसानों को बकरियां दीं और इन बकरियों के दूध को साबुन परियोजना के लिए इस्तेमाल करेंगे.
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