नयी दिल्ली : भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) आर्थिक वृद्धि को रफ्तार देने के लिए नीतिगत दर में लगातार छठवीं बार कटौती कर सकता है. विशेषज्ञों ने यह बात कही. विनिर्माण गतिविधियों में गिरावट के कारण आर्थिक वृद्धि दर घटकर 4.5 प्रतिशत पर आ गयी है. यह आर्थिक वृद्धि का छह साल से अधिक का न्यूनतम आंकड़ा है.
केंद्रीय बैंक 2019 में अब तक पांच बार नीतिगत दर में कटौती कर चुका है. सुस्त पड़ती वृद्धि को रफ्तार देने और वित्तीय प्रणाली में धन उपलब्धता की स्थिति को बढ़ाने के लिए नीतिगत दर में कुल मिलाकर 1.35 प्रतिशत की कमी की गयी है. इस समय रेपो दर 5.15 प्रतिशत है. एक बैंकर ने पहचान उजागर नहीं करते हुए बताया कि आरबीआई गवर्नर ने पिछले दिनों कहा था कि जब तक आर्थिक वृद्धि में सुधार नहीं होता तब तक ब्याज दरों में कटौती की जायेगी. इससे इस बात की संभावना है कि तीन दिसंबर से शुरू होने वाली मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दर घटायी जा सकती है.
आईएचएस मार्किट के मुख्य अर्थशास्त्री (एशिया प्रशांत) राजीव विश्वास ने कहा, आरबीआई ने अक्तूबर में दरों में कटौती के साथ मौद्रिक नीति को उदार बनाये रखने का फैसला किया था. इस स्थिति में आर्थिक मोर्चे पर सुस्ती रहने बनी रहने से नीतिगत दर में कटौती की संभावना है. डेलॉयट इंडिया की अर्थशास्त्री रुमकी मजूमदार ने कहा कि मुद्रास्फीति नीचे बनी हुई है और अर्थव्यवस्था की क्षमता को देखते हुए इसके नीचे ही बने रहने की उम्मीद है. इसलिए आरबीआई के पास नीतिगत दर में कटौती की गुंजाइश बनी हुई है.
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड के मुख्य अर्थशास्त्री निखिल गुप्ता ने कहा, हमें आशंका है कि अक्तूबर-दिसंबर तिमाही में बेहतर वृद्धि देखने को नहीं मिले. त्योहारी महीना होने के बावजूद प्रमुख सूचकांकों में अक्तूबर में गिरावट का रुख रहा. हमें लगता है कि आर्थिक वृद्धि दर तीसरी तिमाही में घटकर 4 प्रतिशत के करीब आ सकती है.
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