नयी दिल्ली : सार्वजनिक क्षेत्र की कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) की सात में से छह कोयला उत्पादन करने वाली अनुषंगियों ने पर्यावरण मंत्रालय के कहने के अनुरूप अपनी नीति नहीं बनायी. भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) की बुधवार को संसद के पटल पर रखी गयी रिपोर्ट में यह कहा गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कोल इंडिया लिमिटेड ने अपनी मूल कॉरपोरेट पर्यावरण नीति में संशोधन किया और मार्च, 2012 में एक व्यापक पर्यावरण नीति तैयार की. इसके बाद इसे दिसंबर, 2018 में नये सिरे से तैयार किया गया.
कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि सीआईएल की सात में से छह कोयला उत्पादक अनुषंगियों ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तय नियम के मुताबिक कोई नीति नहीं बनायी. पर्यावरण मंत्रालय का कहना है कि कंपनियों को उनके निदेशक मंडल से मंजूरी प्राप्त एक सोची समझी पर्यावरण नीति बनानी चाहिए. रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि सीआईएल की नीति में पर्यावरण अनुशासन के मामले में विभिन्न स्तरों पर जिम्मेदारी तय की गयी है, लेकिन उसकी अनुषंगियों ने अपने परिचालन नियमों में इन्हें शामिल नहीं किया है.
कैग की यह रिपोर्ट ‘कोल इंडिया लिमिटेड और उसकी अनुषंगियों में खनन गतिविधियों के कारण पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव और उससे बचाव उपाय आकलन’ पर तैयार की गयी है. कैग ने आगे कहा है कि सीआईएल की तीन अनुषंगियों की आठ कोयला खानों में प्रदूषण तत्व भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) की तय सीमा से अधिक थे.
इसके अलावा, रिपोर्ट में कहा गया है कि 2013 से 2018 के बीच एमसीएल की लखनपुर और बसुंधरा (डब्ल्यू) खानों से 62 लाख किलो लीटर दूषित पानी को आस पास के जलाशयों में छोड़ दिया गया, जिससे भूमिगत पानी के दूषित होने का खतरा बढ़ गया.
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