मुंबई : अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) जनवरी में भारत की वृद्धि के अपने अनुमान में उल्लेखनीय कमी कर सकता है. कोष की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने मंगलवार को यह संभावना जाहिर की. कई अन्य विश्लेषक भी इससे पहले भारत की वृद्धि के अनुमान में कमी कर चुके हैं. भारत में जन्मी गोपीनाथ ने यहां आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि संस्थान ने इससे पहले अक्टूबर में अनुमान जारी किया था और जनवरी में इसकी समीक्षा करेगा.
भारत में उपभोक्ता मांग और निजी क्षेत्र के निवेश में आयी कमी तथा कमजोर पड़ता निर्यात कारोबार जीडीपी वृद्धि में आयी सुस्ती के लिए जिम्मेदार बताये जा रहे हैं. भारत की जीडीपी वृद्धि दर सितंबर में समाप्त दूसरी तिमाही में छह साल के निम्न स्तर 4.5 फीसदी पर पहुंच गयी. रिजर्व बैंक और अर्थव्यवस्था पर नजर रखने वाले कई अन्य विश्लेषकों ने 2019-20 के लिए वृद्धि के अपने अनुमान की समीक्षा करते हुए इसे कम किया है.
गोपीनाथ ने कहा कि भारत ही एकमात्र उभरता हुआ बाजार है, जो इस तरह आश्चर्यचकित कर सकता है. उन्होंने कहा कि यदि आप हाल के आने वाले आंकड़ों पर गौर करेंगे, हम अपने आंकड़ों को संशोधित करेंगे और जनवरी में नये आंकड़े जारी करेंगे. इसमें भारत के मामले में उल्लेखनीय रूप से कमी आ सकती है. हालांकि, उन्होंने कोई आंकड़ा बताने से इनकार कर दिया, यहां तक यह भी नहीं बताया कि क्या यह पांच फीसदी से कम रह सकता है.
आईएमएफ ने अक्टूबर में भारत की 2019 की आर्थिक वृद्धि की दर को 6.1 फीसदी और 2020 में इसके सात फीसदी तक पहुंच जाने का अनुमान लगाया. गोपीनाथ ने वर्ष 2025 तक भारत के 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने को लेकर भी संशय जताया. इसके समर्थन में उन्होंने अपनी गणना भी प्रस्तुत की.
38 वर्षीय गोपीनाथ ने कहा कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत को पिछले छह साल के छह फीसदी की वृद्धि दर के मुकाबले बाजार मूल्य पर 10.5 फीसदी की जीडीपी वृद्धि हासिल करनी होगी. स्थिर मूल्य के लिहाज से इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए 8 से 9 फीसदी की वृद्धि हासिल करनी होगी.
गोपीनाथ ने कहा कि यदि सरकार को 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य को हासिल करना है, तो उसे अपने मजबूत बहुमत का इस्तेमाल भूमि और श्रम बाजार में सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए करना चाहिए. उन्होंने कहा कि किसी भी अर्थव्यवस्था को ऊंची आकांक्षा रखना अच्छा है और भारत इस दिशा में काफी कुछ कर भी रहा है.
उन्होंने भारत की वित्तीय स्थिति को चुनौतीपूर्ण बताते हुए चेताया कि राजकोषीय घाटा 3.4 फीसदी के दायरे से आगे निकल जायेगा. वित्तीय प्रबंधन के मोर्चे पर उन्होंने कॉरपोरेट कर में कटौती का जिक्र किया, लेकिन कहा कि इसके साथ ही राजस्व बढ़ाने के किसी उपाय की घोषणा नहीं की गयी.
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