मुंबई: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर रघुराम गोविन्द राजन का मानना है कि बैंकों में जमा घन पर सरकार किसी भी रूप में कब्जा ना करे. इससे वित्तीय प्रणाली और भी अच्छे ढंग से कार्य कर पायेंगे.
बैंकों में जमा धन का एक बडा हिस्सा अनिवार्य रुप से सरकारी प्रतिभूतियों में लगाने की शर्त में हल्की ढील देने के एक दिन बाद रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम गोविन्द राजन ने आज कहा कि केंद्रीय बैंक आगे चलकर वित्तीय संसाधनों पर इस प्रकार के ‘प्रथम अधिकारों’ में कमी किये जाने के पक्ष में है, ताकि वित्तीय प्रणाली और अच्छे ढंग से काम कर सके.
राजन ने कल मौद्रिक नीति की द्वैमासिक समीक्षा में सांविधिक नकदी अनुपात (एसएलआर) में 0.50 प्रतिशत की कमी करके इस 22 प्रतिशत पर सीमित कर दिया. इस व्यवस्था में बैंकों को अपनी मांग और सांविधिक जमा राशि का तय न्यूनतम हिस्सा सरकारी प्रतिभूतियों में लगाना अनिवार्य होता है. यद्यपि इस निवेश पर बैंकों को ब्याज मिलता है, पर अन्य क्षेत्रों के लिए ऋण देने योग्य धन में कमी आ जाती है.
गौरतलब है कि वित्तीय बाजार में बैंको सहित कई पक्ष भी एसएलआर और नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) जैसी अनिवार्यताओं पर अपनी आपत्तियां खडी करते रहे हैं. सीआरआर के तहत बैंको को एक निश्चित अनुपात में नकदी रिजर्व बैंक के नियंत्रण में रखनी पडता है, जो इस समय 4 प्रतिशत है. बैंकों की एक प्रतिशत राशि पर नियंत्रण का अर्थ है कि उनका करीब 80,000 करोड रुपये बाजार से बाहर हो जाता है.
राजन ने नीतिगत घोषणा के बाद विश्लेषकों के साथ पारंपरिक चर्चा में कहा कि हमें पांच साल में एसएलआर समेत संसाधनों पर इस तरह के प्रथमाधिकारों में कमी लानी चाहिए और प्राथमिक क्षेत्र को ऋण देने की प्रक्रिया को भी अधिक प्रभावी बनाना चाहिए.राजन ने नचिकेत मोर समिति की रपट में प्राथमिक क्षेत्र के लिए रिण (पीएसएल) के बारे में की गयी सिफारिशों का उल्लेख करते हुये कहा कि रिजर्व बैंक पूरी प्रक्रिया को ज्यादा प्रभावशाली बनाने के प्रयास में है.
राजन ने कहा कि इस तरह के बदलाव जरुरी हैं. इसे मौद्रिक चक्र से जोडकर नहीं देखना चाहिए. राजन ने माना कि एसएलआर में 0.50 प्रतिशत की कमी से निकट भविष्य में कोई बडा फर्क नहीं पडने जा रहा और बैंक आगे भी सरकारी प्रतिभूतियों में एसएलआर की सीमा से ज्यादा धन लगाते रहेंगे.
ऋण और बांड बाजार में स्थिति की जांचहोगी
उन्होंने कहा कि आगे चलकर हम ऋण और बांड बाजार में स्थिति की जांच करेंगे और इस संबंध में उचित फैसले करेंगे. राजन ने यह भी कहा कि बैंक सरकारी प्रतिभूतियों के बाजार में अपनी उपस्थिति निश्चित रुप से बनाये रखेंगे. सरकारी प्रतिभूतियों में विदेशी संस्थागत निवेशकों के बारे मे पूछे जाने पर राजन ने कहा कि सरकार इनमें उनकी नई रूचि को लेकर खुश है.
उन्होंने माना कि विदेशी संस्थागत निवेशक तीन साल से अधिक की परिपक्वता वाली सरकारी प्रतिभूतियों में अपेक्षाकृत अधिक तरजीह दे रहे हैं. राजन ने यह भी कहा कि अभी सरकारी प्रतिभूतियों में विदेशी निवेश सीमा टूटने की स्थिति नहीं आयी है, लेकिन केंद्रीय बैंक इस सीमा को बढाने के खिलाफ नहीं है.
उन्होंने कहा कि भारतीय बाजार मजबूत और परिपक्व होने पर बैंकों के अलावा पेंशन फंड और बीमा कंपनियों जैसी बहुत सी और घरेलू निवेशक संस्थाएं इसमें निवेश के लिए आगे आएंगी. उन्होंने सरकारी प्रतिभूतियों में खुदरा निवेशकों की भागीदारी बढाने की आवश्यकता पर भी बल दिया.
आने वाले समय में मौद्रिक नीति के रख के बारे में पूछे जाने पर रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा कि केंद्रीय बैंक का प्राथमिक उद्देश्य यह देखना है कि अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति का दबाव कम हो.रिजर्व बैंक ने खुदरा मुद्रास्फीति को जनवरी 2015 तक 8 प्रतिशत और जनवरी 2016 तक 6 प्रतिशत पर सीमित रखने का लक्ष्य रखा है. खुदरा मुद्रास्फीति जून में 7.31 प्रतिशत थी.
अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति में कमी आयी है
राजन ने कहा कि अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति ‘काफी हद तक’ कम हुयी है, पर अभी यह नहीं कहा जा सकता कि रिजर्व बैंक ने लडाई जीत ली है क्योंकि अभी मुद्रास्फीति के बारे में प्रत्याशा पर पूरा नियंत्रण नहीं हो पाया है. अमेरिकी फेडरल रिजर्व के ब्याज बढाने की संभावना के बारे मे पूछे जाने पर राजन ने कहा कि रिजर्व बैंक दरों के बारे में जो भी कार्रवाई करेगा, वह विकसित और विकासशील देशों के अंतर के बजाय घरेलू परिस्थितियों पर आधारित होगा.
उन्होंने जोर देकर कहा कि हमारे यहां वास्तविक ब्याज दर ठीक है और यह विकसित देशों के बराबर है. रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एच आर खान ने कहा कि सरकार को रिजर्व बैंक के पास अपनी बैलेंस-शीट को सार्वजनिक करने पर कुछ आपत्तियां हैं. उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक सरकार की जमा-खर्च की स्थिति के बारे में तात्कालिक जानकारी के लिए बातचीत कर रहा है.
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