‘अर्थव्यवस्था की दक्षता बढ़ाने के लिए संचालन व्यवस्था में सुधार लाएं कंपनियां”
मुंबई : रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने अर्थव्यवस्था की पूर्ण क्षमता के अनुसार दक्षता बढ़ाने के लिए बैंक समेत भारतीय कंपनियों से संचालन व्यवस्था में सुधार लाने को कहा है. आर्थिक वृद्धि में गिरावट के साथ वृहत आर्थिक चिंता बढ़ने के बीच दास ने यह बात कही है. उन्होंने यह भी कहा कि […]
मुंबई : रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने अर्थव्यवस्था की पूर्ण क्षमता के अनुसार दक्षता बढ़ाने के लिए बैंक समेत भारतीय कंपनियों से संचालन व्यवस्था में सुधार लाने को कहा है. आर्थिक वृद्धि में गिरावट के साथ वृहत आर्थिक चिंता बढ़ने के बीच दास ने यह बात कही है. उन्होंने यह भी कहा कि वैश्विक वित्तीय बाजारों के प्रभाव को लेकर सतर्क रहने के साथ खपत और निवेश को पटरी पर लाना दो प्रमुख चुनौतियां हैं. यह बात ऐसे समय कही गयी है, जब कंपनियों के कई प्रवर्तक नियामकीय जांच के घेरे में हैं.
दास ने शुक्रवार को जारी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के 20वें संस्करण की भूमिका में कहा है कि वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद के अंतर्गत आने वाले सभी नियामक वित्तीय प्रणाली में भरोसा मजबूत करने के लिए प्रयास कर रहे हैं. मैं बेहतर संचालन व्यवस्था के महत्व पर फिर से जोर देता हूं. मेरे हिसाब से अर्थव्यवस्था की पूर्ण क्षमता के अनुसार दक्षता बढ़ाने के लिए यह महत्वपूर्ण कारक है.
रिजर्व बैंक ने सुस्त पड़ी आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए रेपो रेट में इस साल 1.35 फीसदी की कटौती की. इस कटौती के बाद नीतिगत रेट 5.15 फीसदी पर आ गयी है, जो नौ साल का न्यूनतम स्तर है, लेकिन इसके बावजूद सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर 2019-20 की दूसरी तिमाही में 25 तिमाहियों के न्यूनतम स्तर 4.5 फीसदी पर रही. गवर्नर ने ‘कोबरा प्रभाव’ को लेकर भी आगाह किया. यह स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब प्रयास किये गये समाधान से समस्या और विकराल हो जाती है.
उन्होंने कहा कि असाधारण मौद्रिक नीति प्रोत्साहन से वैश्विक ब्याज दरें इतनी नीचे आ गयी हैं कि विकसित देशों में यह स्तर अब तक नहीं देखा गया. लंबे समय तक निम्न स्तर पर मुद्रास्फीति के बने रहने के कारण यह संभव हुआ. इसके कारण केंद्रीय बैंक नीतिगत रुख को लेकर संतोषजनक स्तर पर है. हालांकि, बहुपक्षीय व्यापार को लेकर बाधाएं और उभरते भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं के जारी रहने से उसका असर वैश्विक वित्तीय बाजारों पर दिख सकता है.
दास ने कहा कि यह सुनिश्चित करना चुनौती है कि मौद्रिक नीति का लाभ वास्तवित अर्थव्यवस्था को मिले और ऐसा नहीं हो कि वित्तीय बाजारों में यह महत्वहीन बन जाए. हमें कोबरा प्रभाव को लेकर सतर्क रहने की जरूरत है. आर्थिक वृद्धि में गिरावट और कर्ज मांग में नरमी के बारे में उन्होंने कहा कि घरेलू और वैश्विक कारकों से जीडीपी वृद्धि घटी है. वहीं, उपभोक्ता कर्ज में वृद्धि हो रही है, जबकि थोक कर्ज में वृद्धि कमजोर है. इसका कारण कंपनियां और वित्तीय मध्यस्थ अपने व्यापार गतिविधियों में सुधार के लिए कर्ज में कमी लाने पर ध्यान दे रहे हैं.
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