नयी दिल्ली : इंडियन पेपर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (आईपीएमए) ने वित्त मंत्रालय से कागज पर सीमा शुल्क बढ़ाने की अपील की है. फिलहाल, आयातित कागजों पर 10 फीसदी सीमा शुल्क निर्धारित किया गया है. आईपीएमए ने सरकार से इस शुल्क को 10 फीसदी से बढ़ाकर 25 फीसदी करने का आग्रह किया है. दरअसल, भारत की पेपर मिल वित्त वर्ष 2019 के मुकाबले वित्त वर्ष 2020 के अप्रैल से सितंबर महीने की अवधि के दौरान कागज और पेपरबोर्ड के आयात में 29.9 फीसदी (वॉल्यूम) बढ़ोतरी को लेकर काफी परेशान हैं.
आईपीएमए के अध्यक्ष एएस मेहता ने बताया कि कागज के घरेलू उत्पादन दर की तुलना में आयात वृद्धि दर तेजी से बढ़ रही है. उन्होंने बताया कि इंडोनेशिया और चीन कागज निर्माण के लिए वैश्विक स्तर पर कच्चे माल के निर्यात के क्षेत्र में बड़े खिलाड़ी हैं. वे आक्रामक तरीके से भारतीय बाजार में अपने उत्पादों को खपा रहे हैं.
मीडिया की खबरों के अनुसार, आईपीएमए ने सरकार के सामने कई प्रस्ताव पर इच्छा जाहिर की है. उसने अपने प्रस्ताव में कहा है कि कागज और पेपर बोर्ड पर आयात शुल्क को 10 से 25 फीसदी तक बढ़ोतरी की जानी चाहिए, ताकि इसे कृषि उत्पादों के बराबर किया जा सके. इसका कारण यह है कि किसानों के कच्चे माल (लकडी और कृषि अवशेष सहित) के इस उद्योग अधिकांश स्रोत हैं.
इसके अलावा, प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि एफटीए की तत्काल समीक्षा की जानी चाहिए और पेपर और पेपरबोर्ड को बहिष्करण अथवा नकारात्मक सूची में रखा जाना चाहिए, क्योंकि सीमा शुल्क में वृद्धि मात्र इंडोनेशिया और चीन जैसे देशों से आयात को प्रभावित नहीं कर सकती. स्टॉक लॉट का आयात कड़ा होना चाहिए. आयातित कागज के केवल वास्तविक उपयोगकर्ताओं को लाभ पहुंचाने के लिए सभी ग्रेड के कागजों के आयात को विनियमित किया जाना चाहिए. यह उपभोक्ताओं को लाभान्वित करने के अलावा यह सरकार को राजस्व हानि को रोकने में भी मदद करेगा.