कोलकाता : भारत कठिन दौर से गुजर रहा है और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर अभी नीचे बनी रहेगी. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी) के प्राफेसर अजय शाह ने यह बात कही है. उन्होंने कहा कि इसका कोई त्वरित समाधान नहीं है. हां, अगर समाज के लोग तथा राजनीतिक वर्ग एक-दूसरे के साथ मिल-बैठकर शांति के साथ चर्चा करें तभी इसका समाधान होगा.
शाह ने कहा कि हम इस समय कठिन दौर से गुजर रहे हैं और इसका कोई त्वरित समाधान नहीं है. देश की जीडीपी वृद्धि दर नीचे बनी रहेगी. उन्होंने कहा कि भारत में अभी राजनीतिक गहमा-गहमी है. नागरिकों के अधिकार और शक्तियों का अर्थव्यवस्था पर बड़ा प्रभाव होता है. पूर्व में सेंटर फॉर मानिटरिंग इंडियन एकोनॉमी (सीएमआईई) से जुड़े रहे शाह ने कहा कि अगर हम समाज के लोग और राजनीतिक वर्ग एक-दूसरे के साथ मिल-बैठकर चर्चा करें तो इसका समाधान मिलेगा.
उन्होंने 1991 से 2011 की अवधि को भारतीय इतिहास का स्वर्णिम काल बताया और कहा कि उस दौरान जो आर्थिक वृद्धि हुई, उससे 35 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर हुए. शाह ने अपनी पुस्तक ‘इन सर्च ऑफ द रिपब्लिक’ पर चर्चा के दौरान कहा कि उसके बाद निजी निवेश में कमी के साथ समस्या शुरू हुई. इस किताब को उन्होंने विजय केलकर के साथ मिलकर लिखा है. उन्होंने कहा कि सकल निजी पूंजी निर्माण में 10 फीसदी की कमी आयी है. इसे पूरा करना देश की राजकोषीय क्षमता से बाहर है.
शाह ने देश में दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) लागू करने के तरीके की भी आलोचना की. उन्होंने कहा कि सरकार को आईबीसी लागू करने में कुछ समय लेना चाहिए. पहले जरूरी बुनियादी ढांचा सृजित करने की आवश्यकता थी. इस संहिता के लागू होने के कारण बड़ी संख्या में मामले फंसे हैं.
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