फिर मंडरा रहा है मंदी का खतरा
दुनिया के विकसित देशों की अर्थव्यवस्था में एक बार फिर गिरावट का दौर दक्षिण अमेरिकी देश अर्जेटीना समेत यूरोपीय देशों द्वारा समय पर विश्व बैंक और अन्य वित्तीय संस्थाओं के कर्ज का निपटारा नहीं किये जाने से दुनिया पर एक बार फिर मंदी का खतरा मंडरा रहा है. हालांकि, वर्ष 2008 की मंदी के बाद […]
दुनिया के विकसित देशों की अर्थव्यवस्था में एक बार फिर गिरावट का दौर
दक्षिण अमेरिकी देश अर्जेटीना समेत यूरोपीय देशों द्वारा समय पर विश्व बैंक और अन्य वित्तीय संस्थाओं के कर्ज का निपटारा नहीं किये जाने से दुनिया पर एक बार फिर मंदी का खतरा मंडरा रहा है.
हालांकि, वर्ष 2008 की मंदी के बाद के दुनिया लगभग आर्थिक मंदी के दौर से उबर चुकी थी, मगर मंदी से उबरने के लिए विभिन्न यूरोपीय-अमेरिकी विकसित देशों की ढुलमुल आर्थिक नीतियों, तेल उत्पादक देशों में संघर्ष, रूस-यूक्रेन संकट सहित अन्य देशों में चल रहे घरेलू-पड़ोसी संघर्ष का असर भी वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है.
हालांकि दुनिया में मंदी छाये रहने के बाद भी वर्ष 2008 से 2011 के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति ठीक-ठाक रही है और अब जबकि एक बार फिर मंदी की आहट सुनाई पड़ रही है, तो इसे पटरी पर रहने की संभावना जाहिर की जा रही है. मगर क्या वैश्विक स्तर पर वित्तीय संकट छाने और बाजारों में गिरावट आने के बाद भारत की अर्थव्यवस्था पहले की तरह दुरुस्त रह पायेगी, यह सोचने वाली बात है.
सुनाई दे रही मंदी की आहट
यूरोपीय बाजारों में भारी गिरावट, ब्रिटेन का एफटीएसइ 100 इंडेक्स में 0.20 फीसदी गिरावट, फ्रांस का सीएसी 40 इंडेक्स में 0.39 फीसदी की कमजोरी, जर्मनी का डीएएक्स इंडेक्स पर 0.49 फीसदी के दबाव के चलते भारतीय बाजार और अर्थव्यवस्था पर भी दबाव बनता जा रहा है. इससे दुनिया में एक बार फिर मंदी छाने की आहट सुनाई पड़ रही है.
यूरोपीय बाजार समेत दुनिया की अर्थव्यवस्था पर बन रहे दबाव को अर्जेटीना संकट, रूस-यूक्रेन के बीच बढ़ रहे तनाव, इराक संकट और पेट्रोलियम पदार्थ उत्पादक देशों में चल रहे संघर्ष और संकट से जोड़ कर देखा जा रहा है.
आर्थिक विशेषज्ञ आशंका जता रहे हैं कि यदि गिरावट का दौर जारी रहा, तो दुनिया में एक बार फिर बड़ी मंदी का खतरा मंडरा रहा है. अनुमान लगाया जा रहा है कि यदि पेट्रोलियम उत्पादक देशो, यूरोप, रूस व अमेरिकी संकट समेत दुनिया के विकसित देशों के बाजार इसी तरह गिरते रहे, तो एशिया समेत दुनिया के विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. इससे भारत को बहुत बड़ा नुकसान होने की आशंका जतायी जा रही है.
भारत हासिल करेगा 5.5 फीसदी की वृद्धि
बैंकाक : भारतीय अर्थव्यवस्था में चालू वित्त वर्ष के दौरान 5.5 प्रतिशत की मजबूत आर्थिक वृद्धि हासिल होने की उम्मीद है. औद्योगिक व सेवाओं के क्षेत्र में ठोस विस्तार व सरकार के आर्थिक सुधारों पर जोर से आर्थिक वृद्धि की गति बढ़ेगी. संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट में यह बात कही गयी है.
संयुक्त राष्ट्र के एशिया प्रशांत क्षेत्र के आर्थिक व सामाजिक आयोग के अनुसार, हाल के वषों में कमजोर वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी महत्व दिया गया, लेकिन बढ़ती असमानता, ऊंची मुद्रास्फीति व ढांचागत कमी जैसी बुनियादी रुकावटों को दूर करने में देरी से आर्थिक वृद्धि प्रभावित हुई.
महिलाओं की भागीदारी से बढ़ेगा जीडीपी
नयी दिल्ली. अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी बढ़ कर 50 प्रतिशत के करीब होने से देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) कुछ एक प्रतिशत और बढ़ सकता है. आइसीआइसीआइ बैंक की प्रबंध निदेशक एवं सीइओ चंदा कोचर ने गुरुवार को यह बात कही. फिक्की महिला संगठन द्वारा यहां आयोजित एक कार्यक्रम में कोचर ने कहा कि भारत में आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी 30 से 35 प्रतिशत तक है, लेकिन यदि हम इसे बढ़ा कर 50 प्रतिशत तक पहुंचाते हैं, तो जीडीपी वृद्धि में कुछ और प्रतिशत जुड़ सकते हैं. मुङो लगता है कि यह सामाजिक आर्थिक मामला है, जो कि अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा होगा.
जीडीपी वृद्धि दर 5.7 प्रतिशत रहेगी
मुंबई. घरेलू रेटिंग एजेंसी इंडिया रेटिंग्स ने औद्योगिक क्षेत्र के अच्छे प्रदर्शन को ध्यान में रखते हुए मौजूदा वित्त वर्ष (2014-15) के लिए जीडीपी वृद्धि दर अनुमान को मामूली बढ़ा कर 5.7% कर दिया है. एजेंसी ने कहा है कि सरकार राजकोषीय घाटे को 4.1% पर सीमित रखने के अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल नहीं कर पायेगी. एजेंसी ने कहा है कि कुल जीडीपी वृद्धि दर अनुमान को 5.6 प्रतिशत से बढ़ा कर 5.7 प्रतिशत किया गया है.
1929 में छायी थी महामंदी
इतिहास में महामंदी या भीषण मंदी (द ग्रेट डिप्रेशन1929-39) के नाम से जानी जानेवाली यह घटना एक विश्वव्यापी आर्थिक मंदी थी. यह वर्ष 1929 में शुरू हुई और 1939-40 तक जारी रही. विश्व के आधुनिक इतिहास में यह सबसे बड़ी मंदी थी. इस घटना ने ऐसा कहर मचाया था कि उससे उबरने में कई साल लग गये. इससे फासीवाद बढ़ा और द्वितीय विश्वयुद्ध की नौबत आयी.
अमेरिका के कारण 2008 में छायी थी मंदी : वर्ष 2008 की शुरु आत में जीडीपी के नकारात्मक आंकड़ों ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी थी. अमेरिका में होम लोन व मॉर्गेज लोन न चुका पानेवाले ग्राहकों की संख्या बढ़ी, जिससे लेहमैन ब्रदर्स, मेरीलिंच, बैंक ऑफ अमेरिका जैसी वित्तीय संस्थाएं तरलता के अभाव मेंआ गयीं.
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