Budget 2020: तंगी से जूझ रही शिक्षा व्यवस्था में नयी जान फूंकेगा इस बार का बजट?
केंद्रसरकार एक फरवरी को पेश होने वाले आम बजट में शिक्षा के बजट में पांच से आठ प्रतिशत की बढ़ोतरी कर सकती है. वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के पिटारे से शिक्षा के लिए एक लाख 25 हजार करोड़ रुपये तक मिलने की उम्मीद जतायी जा रही है. शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार का ध्यान […]
केंद्रसरकार एक फरवरी को पेश होने वाले आम बजट में शिक्षा के बजट में पांच से आठ प्रतिशत की बढ़ोतरी कर सकती है. वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के पिटारे से शिक्षा के लिए एक लाख 25 हजार करोड़ रुपये तक मिलने की उम्मीद जतायी जा रही है.
शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार का ध्यान शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने, रिसर्च, इनोवेशन, तकनीक, व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास पर रहेगा. बजट में शिक्षकों की ट्रेनिंग, पाठ्यक्रमऔर कोर्स में बदलाव वाले खास बिंदुओं को शामिल किये जाने की संभावना है.
आपको बताते चलें कि फिलवक्त देश की शिक्षा व्यवस्था बजट की भारी कमी से जूझ रही है. उच्च शिक्षा हो या स्कूली शिक्षा, हर जगह बजट की कमी है. पिछले एक दशक के दौरान शिक्षा के क्षेत्र में खर्च देश के जीडीपी के 3 प्रतिशत से भी कम रहा है, जबकि प्रस्तावित वैश्विक मानक 6 प्रतिशत है.
आंकड़ों की बात करें, तो 2014-15 में जब मोदी सरकार ने पहली बार बजट पेश किया था तो उसमें शिक्षा क्षेत्र को 83000 करोड़ रुपये का बजट दिया गया था. बाद में इसे उसी साल घटाकर 69000 करोड़ रुपये कर दिया गया. इसके बाद शिक्षा बजट उस दर से नहीं बढ़ा, जिस तरह उसे बढ़ना चाहिए था.
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान निर्मला सीतारमण ने जब जुलाई, 2019 में बजट पेश किया तो शिक्षा क्षेत्र को 94,854 करोड़ रुपये का बजट मिला, जो 2014 के बजट से महज 15.68 फीसदी अधिक है.
जबकि इस दौरान कुल बजट 55 प्रतिशत से अधिक बढ़ा. 2014-15 में संपूर्ण बजट की राशि 17.95 लाख करोड़ रुपये थी, जो 2019-20 में बढ़कर 27.86 लाख करोड़ हो गई.
विशेषज्ञों कीमानें, तो भारत में जहां एक तरफ शिक्षा के क्षेत्र में बजट काफी कम है, वहीं इसका वितरण भी काफी असमान है. 2019-20 के बजट के अनुसार, शिक्षा के क्षेत्र में जो 94,854 करोड़ जारी किये गए, उसमें स्कूली शिक्षा का बजट 56,536.63 करोड़ रुपये और उच्च शिक्षा का बजट 38,317.36 करोड़ रुपये है.
उच्च शिक्षा के 38,317.36 करोड़ रुपये में से देश के लगभग 1000 विश्वविद्यालयों का हिस्सा 6843 करोड़ रुपये है. वहीं, देश में 50 से भी कम संख्या में स्थित आईआईटी और आईआईएम का बजट विश्वविद्यालयों के बजट से कहीं अधिक है.
देश भर के 23 आईआईटी कॉलेजों का बजट 6410 करोड़ रुपये, जबकि देश के 20 आईआईएम कॉलेजों को 445 करोड़ रुपया मिलता है. यही वजह है कि भारत की विश्वविद्यालयीय शिक्षा बड़ी नाजुक स्थिति में है.
बजट के असमान वितरण के अलावा एक समस्या यह भी है कि शिक्षा के क्षेत्र में जितना बजट प्रस्तावित किया जाता है, उतना खर्च नहीं हो पाता. एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 10 सालों में 8 बार ऐसा मौका आया जब शिक्षा पर प्रस्तावित बजट खर्च नहीं हो सका.
इस रिपोर्ट के अनुसार, 2014 से 2019 के दौरान लगभग 4 लाख करोड़ रुपये प्रस्तावित बजट शिक्षा के क्षेत्र में खर्च नहीं हो पाया.
ऐसे में यह उम्मीद की जानी चाहिए कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इस बार के बजट में शिक्षा के क्षेत्र पर कुछ ज्यादा ध्यान देंगी. यही नहीं, केंद्र सरकार को भी यह समझने की जरूरत है कि ऐसी नीतियां बनाये कि बजट में प्रस्तावित राशि का सही और पूरा खर्च हो. समय की भी यही मांग है.
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