Budget 2020 : रिकॉर्ड-तोड़ बजट भाषण

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक प्रभात खबर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणाओं के मामले तो कोई रिकॉर्ड नहीं तोड़ा है. लेकिन उन्होंने इस बार बजट भाषण सुननेवालों की कड़ी परीक्षा ली है. उन्होंने अपना बजट भाषण रिकॉर्ड समय 2 घंटे 39 मिनट में पूरा किया. फिर भी वह अपना भाषण पूरा नहीं कर पायीं और […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 2, 2020 6:24 AM
आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक
प्रभात खबर
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणाओं के मामले तो कोई रिकॉर्ड नहीं तोड़ा है. लेकिन उन्होंने इस बार बजट भाषण सुननेवालों की कड़ी परीक्षा ली है. उन्होंने अपना बजट भाषण रिकॉर्ड समय 2 घंटे 39 मिनट में पूरा किया. फिर भी वह अपना भाषण पूरा नहीं कर पायीं और उनके गले में कुछ दिक्कत आ गयी.
इसके बाद केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत अन्य मंत्रियों ने उनसे अपील की कि वह अपना बजट भाषण सदन के पटल पर रख दें. इसके बाद उन्होंने बाकी भाषण बिना पढ़े सदन के पटल पर रख दिया. पिछली साल भी उन्होंने लंबा भाषण दिया था जो 2 घंटे 17 मिनट चला था. लेकिन इस बार तो यह रिकॉर्ड-तोड़ रहा. लंबे और बोझिल भाषण की यह दिक्कत है कि उसमें कई अहम बातें छुप जाती हैं.
वित्त मंत्री के बजट भाषण में कई सकारात्मक बातें थीं. आम आदमी के लिए एक अहम घोषणा यह रही कि अब बैंकों में लोगों की जमा 5 लाख रुपये तक की राशि गारंटी के साथ सुरक्षित रहेगी. पहले यह सीमा सिर्फ 1 लाख रुपये की थी. बजट में एक नयी टैक्स प्रणाली की भी घोषणा की गयी है. सरकार ने आयकर स्लैब में बदलाव शर्तों के साथ किया है. वित्त मंत्री ने कहा कि नयी आयकर व्यवस्था वैकल्पिक होगी, करदाताओं को पुरानी व्यवस्था या नयी व्यवस्था में से चुनने का विकल्प होगा.
नयी व्यवस्था में आपको निवेश पर मिलनेवाली छूट का मोह छोड़ना होगा. अगर आप निवेश में छूट लेते हैं, तो टैक्स की पुरानी दर ही मान्य होगी. टैक्स विशेषज्ञों का कहना है कि नयी व्यवस्था में फायदा होगा. इसको लेकर युवा नौकरीपेशा उत्साहित हैं, क्योंकि उनके हाथ में खर्च करने के लिए ज्यादा रकम आयेगी.
इससे अर्थव्यवस्था को भी थोड़ा सहारा मिल सकता है. लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह है कि दबाव में ही सही जो बचत हो जाती थी, उसका चलन समाप्त हो जाएगा. यह पश्चिम का मॉडल है और हमने उस दिशा में पहला कदम बढ़ाया है. लेकिन पश्चिम में सामाजिक सुरक्षा की व्यापक व्यवस्था है. ऐसी व्यवस्था हमारे देश में नहीं है. अमूमन यही छोटी बचत बुढ़ापे का सहारा बनती है.

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