बजट में देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के साथ दीर्घकालिक विकास के मार्ग पर अग्रसर करने के लिए कई स्तरों पर उपायों की घोषणा की गयी है. व्यापक निवेश के लक्ष्य को पूरा करने के लिए संसाधनों को जुटाने तथा वित्तीय घाटा नियंत्रित रखने की चुनौती भी सरकार के सामने है.
प्रो अरुण कुमार,अर्थशास्त्री
सबसे बड़ी बात है कि जो पांच साल में इन्फ्रास्ट्रक्चर पर सौ लाख करोड़ रुपये खर्च करने की बात कही गयी है, वो बहुत बड़ी बात है. अगर ऐसा हो पाता है, तो विकास दर बढ़ेगी.
देश की अर्थव्यवस्था जितने गहरे संकट में है, उतना ही लंबा ये बजट भाषण है. बहुत सारी बातें इस बजट में शामिल हैं. तीस हजार करोड़ रुपये जब खर्च करना है, तो हर एक को कुछ न कुछ दिया जा सकता है.
लेकिन सवाल ये है कि इसकी दिशा क्या है? अर्थव्यवस्था में जो संकट है, क्या वो इस बजट से दूर होगा. यह कैसे होगा? क्योंकि टैक्स रेवन्यू कम हो गया है, व्यय काट दिया गया है. हर सेक्टर में परेशानी है, सब जगह गिरावट है, जिससे उबरना जरूरी है. कुल मिलाकर ये सब जो किया जा रहा है, जैसे कस्टम ड्यूटी और इनकम टैक्स में बदलाव किया गया है और बाकी खर्चे दिखाये गये हैं, सबमें एक बड़ा असंतुलन है. कितना रिसोर्स आयेगा आैर कहां खर्च होगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है. संशोधित बजट में कहा गया था कि व्यय बढ़ाया जायेगा. लेकिन वो बढ़ा नहीं, बल्कि घट गया.
साल 2018-19 में 23 लाख करोड़ रुपये का व्यय था, जिसे करीब 28 लाख करोड़ करने का लक्ष्य था, जो कि 27 लाख करोड़ ही हुआ. इसी तरह 27 लाख करोड़ का जो रिवाइज एस्टीमेट है, उसे अब साढ़े तीस लाख करोड़ करने की बात कही जा रही है. लेकिन, जब संसाधन कम होंगे, राजस्व कम होगा, तो व्यय कैसे बढ़ेगा? टैक्स में छूट दे दी गयी है, अर्थव्यवस्था की विकास दर कम है, फिर सरकार इसे कहां से पूरा करेंगी. ऐसे में फिर फिजिकल डेफिसिट (सकल राजकोषीय घाटा) बढ़ेगा. लेकिन सरकार ने कहा है कि वो सकल राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करेगी और इसे 3.5 प्रतिशत कर देगी. यह बजट में हमेशा होता है कि खर्च और टैक्स रेवन्यू ज्यादा दिखाया जाता है और राजकोषीय घाटा कम. यह एक तरह से बजट को अच्छे रूप में पेश करने की प्रक्रिया है.
भले संसाधन नहीं हैं, लेकिन दिखा देंगे कि हम ये सब करेंगे. लेकिन अगर संसाधन नहीं होंगे, तो बाद में पता चलेगा कि कटौती की जा रही है घोषणाओं को पूरा करने में. जैसे मनरेगा में कितना देना है, वो अभी बजट में बताया नहीं गया है, जैसे हर साल बताते हैं. जबकि गांव में बेरोजगारी की समस्या के लिए यह बहुत जरूरी है. कुल मिलाकर बजट की जो दिशा है, उसमें यह साफ नहीं है कि अर्थव्यवस्था में गिरावट कैसे रुकेगी और रोजगार कैसे बढ़ेगा.
पिछले साल एक लाख पांच हजार करोड़ का टार्गेट था विनिवेश का और हासिल हुआ पैंसठ हजार करोड़ रुपया, यानी कि करीब साठ फीसदी. इस बार इसे बढ़ा कर दो लाख दस हजार करोड़ कर दिया है. सरकार को लग रहा है कि एलआइसी के शेयर बेचने से काफी पैसा आ जायेगा. लेकिन विनिवेश का प्लान बहुत प्रभावी नहीं हो पाता है.
घाटे में चल रही यूनिट को बेचना बहुत मुश्किल होता है. एयर इंडिया को तीन बार बेचने की कोशिश हो चुकी है, लेकिन सफलता नहीं मिली. फिर बहुत कंसेशन के साथ इसे बेचने की कवायद हो रही है. इसलिए विनिवेश एक सही जरिया नहीं है, संसाधन जुटाने का. आपकी जो यूनिट्स हैं, जो अच्छा काम कर रही हैं, जैसे एलआइसी है और पेट्रोलियम कंपनियां हैं, उनको आप अगर बेच देंगे, तो आगे आपका जो नॉन टैक्स रेवन्यू है, वो भी कम हो जायेगा. इसलिए ये एक बार के लिए तो अच्छा हो सकता है, लेकिन आगे के लिए समस्या पैदा करेगा. अर्थव्यवस्था को बढ़ा कर उससे रेवन्यू हासिल करके निवेश करें, तो ज्यादा अच्छा है.
पूंजी का विनिवेश होगा, तो निवेश कम हो जायेगा. हम जब तक पूंजीगत वस्तुओं को बढ़ायेंगे नहीं, विकास दर नहीं बढ़ेगी. बजट की घोषणायें सुनने में तो बहुत अच्छी लगती हैं.
जब कहा जाता है कि कृषि को दिया, गराीबों को दिया, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजतियों को दिया, स्टार्टअप को दे रहे हैं, तो लगता है कि सभी हित की बात है इसमें. लगभग सबके लिए कुछ न कुछ हैं, लेकिन फिर वही सवाल उठता है कि आपके संसाधन क्या हैं. इतना सब आप सच में कर रहे हैं या कहने के लिए भर कह रहे हैं. जैसे किसानों की आय को दोगुनी करने की बात फिर कही गयी है, लेकिन इसे आप कैसे दोगुना करेंगे दो साल में, जब अर्थव्यवस्था ही पटरी पर नहीं है.
सबसे बड़ी बात है कि जो पांच साल में इन्फ्रास्ट्रक्चर पर सौ लाख करोड़ रुपये खर्च करने की बात कही गयी है, वो बहुत बड़ी बात है. अगर ऐसा हो पाता है, तो विकास दर बढ़ेगी. अभी तो प्राइवेट सेक्टर निवेश नहीं करनेवाला, क्योंकि उसको लगता है अभी लाभ नहीं दिख रहा है. इसलिए बजट से ही उसको देना पड़ेगा. पब्लिक सेक्टर को इसमें लगाना होगा. एक तरफ जब पब्लिक सेक्टर को विनिवेश करने को कहा जायेगा और फिर उससे इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश के लिए भी कहा जायेगा, तो यह बहुत अंतर्विरोध पैदा करता है.
कुल मिलाकर, इस बजट में बहुत अच्छी-अच्छी योजनाओं की घोषणा की गयी है, लेकिन यह नहीं बताया गया है कि इन्हें पूरा करने के लिए संसाधन कहां से आयेंगे.
इंफ्रास्ट्रक्चर
रोजगार और विकास पर जोर
रोजगार और िवकास पर जोर
ढांचागत विकास के लिए सराहनीय कदम
डॉ राजीव उपाध्याय
प्राध्यापक, दिल्ली विश्वविद्यालय
सरकार ने अर्थशास्त्रियों के सुझावों के अनुसार आधारभूत
संरचनाओं केविकास को महत्व दिया है. जरूरत इनके सही कार्यान्वयन की है.
भारतीय अर्थव्यवस्था कुछ तिमाही पहले तक आइएमएएफ और अन्य संस्थाओं के हिसाब दुनिया में सबसे तेजी से बढ़नेवाली अर्थव्यस्थाओं में शामिल थी. परंतु बीते कुछ तिमाहियों में जीडीपी के विकास की गति पिछले कई दशकों मे सबसे कम रही है. अर्थव्यवस्था में आये इस नाटकीय बदलाव ने सभी को चकित किया है.
हालांकि आइएमएफ ने इसे शार्ट-टर्म समस्या बताया है. अर्थशास्त्रियों ने बताया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान समस्या का कारण ग्रामीण क्षेत्रों में आयी मांग में कमी है. इस कमी से निपटने में आधारभूत संरचनाओं (इंफ्रास्ट्रक्चर) में निवेश एक प्रभावकारी तरीका हो सकता है. इन सभी कारणों से पूरे देश की निगाहें इस साल के बजट पर लगी हुई थीं. सब जानना चाहते थे कि सरकार अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने के लिए क्या-क्या घोषणाएं करती है.
इस बजट में यातायात संबंधी इंफ्रास्ट्रक्चर के समुचित विकास के लिए सरकार ने आगामी वित्तीय वर्ष 2020-21 में कुल 1,77,000 करोड़ रुपये के निवेश की बात कही है. इस हेतु सरकार तकरीबन 9,000 किलोमीटर के नये इको डेवलपमेंट कॉरिडोर बनायेगी, जिसमें तकरीबन 2500 एक्सेस कंट्रोल हाइवे होंगे. इस निवेश से पूरे देश में न सिर्फ यातायात सुविधाओं का विकास होगा, बल्कि रोजगार भी पैदा होगा. इसके अलावा तटीय क्षेत्रों के विकास हेतु इस वित्तीय वर्ष में सरकार कुल 200 तटीय और पोर्ट हाइ-वे में निवेश करेगी. इनके विकास से इन क्षेत्रों में भी यातायात एवं सामान की ढुलाई सुगम होगी और रोजगार सृजित होगा. इसी तरह सीमावर्ती क्षेत्रों में यातायात के आधारभूत संरचनाओं के विकास के लिए तकरीबन 2000 किलोमीटर लंबा स्ट्रैटिजिक हाइ-वे बनायेगी. इससे रोजगार की नयी संभावनाएं सृजित होंगी, साथ ही इन क्षेत्रों में बेहतर सुरक्षा व्यवस्था बनेगी. इन परियोजनाओं के अलावा सरकार आगामी वर्षों में दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे सहित दो अन्य कॉरिडोर को 2023 तक पूरा करेगी.
बंगलुरु उपनगरीय यातायात परियोजना में केंद्र सरकार 18,600 करोड़ रुपये का योगदान देगी. उड्डयन क्षेत्र में उड़ान योजना के अंतर्गत 100 एयरपोर्ट विकसित किये जायेंगे तथा विमानों की संख्या को दोगुना की जायेगी. सरकार चार रेलवे स्टेशनों का पुर्नविकास करेगी एवं रेलवे की सौर उर्जा के प्रयोग करने की क्षमता को बढ़ायेगी. ये सारी परियोजनाएं देश में न सिर्फ यातायात को सुगम बनायेंगी, बल्कि लाखों लोगों के लिए रोजगार की संभावनाओं को भी पैदा करेगी.
सामान के ढुलाई हेतु सरकार अपनी महत्वाकांक्षी नेशनल लॉजिस्टिक पॉलिसी की घोषणा करेगी, जो पूरे देश में सामानों के ढुलाई को सुगम करने एवं माल की इन-ट्रांजिट बर्बादी को कम करने में मदद देगी. यदि ये पॉलिसी सही तरीके से लागू हुई, तो कृषि उत्पादों की ढुलाई के दौरान होनेवाली बर्बादी में कमी आयेगी, जो अंततः किसानों की आय बढ़ाने में सहायक होगी.
भारतीय घरों में पाइप द्वारा पेयजल उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने 3,60,000 करोड़ रुपये का निवेश करेगी. इस निवेश के बहुत बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में होगा. साथ ही सरकार कृषि क्षेत्र एवं सिंचाई के विकास के लिए 2,83,000 करोड़ रुपये के निवेश की योजना बनायी है.
कृषि क्षेत्र में कोल्ड स्टोरेज की समस्या को देखते हुए सरकार ने स्वयंसेवी निकायों के द्वारा कोल्ड स्टोर का विकास किया जायेगा.
इन परियोजनाओं के अलावा सरकार ने 1,23,000 करोड़ रुपये ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज के लिए आवंटित किया है और 12,300 करोड़ का निवेश स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत करेगी. यदि ये सभी योजनाएं सही रूप में और समय से कार्यान्वित हो जाती हैं, तो लाखों हाथों को रोजगार मिलेगा. इससे ग्रामीण मजदूरों एवं किसानों की आय में महत्वपूर्ण सुधार होने की संभावना है, जो अंततः ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मांग को बढ़ाने में सहयोगी होगा.
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने भाषण में इंफ्रास्ट्रक्चर विकास हेतु अनेक मदों एवं क्षेत्रों के लिए अलग-अलग घोषणाएं की. लगभग हर क्षेत्र की जरूरतों की ओर ध्यान देते हुए एक बहुत बड़ी राशि रोड, रेल, उड्डयन एवं ग्रामीण आधारभूत संरचनाओं के विकास हेतु आवंटित किया गया है. इन घोषणाओं के देखते हुए ये कहा जा सकता है कि सरकार ने अर्थशास्त्रियों के सुझावों के अनुसार आधारभूत संरचनाओं के विकास को महत्व दिया है. अब आवश्यकता है कि सरकार इन योजनाओं का समुचित एवं समयानुकूल कार्यान्वयन करे.
बैंकिंग
कारोबार में तेजी की पहलपारदर्शिता को बढ़ावा
सतीश सिंह
आर्थिक अनुसंधान विभागमें मुख्य प्रबंधक
सरकार सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों पर निगरानी की व्यवस्था को औरभी मजबूत बनाना चाहती है ताकि लोगों की जमा पूंजी सुरक्षित रहे.
बैंकों को बजट 2020-21 में अपनी कार्यप्रणाली में सुधार लाने के लिये तीन लाख पचास हजार करोड़ रूपये देने की घोषणा की गयी है, जिससे कमजोर बैंकों को अपने प्रदर्शन में सुधार लाने में मदद मिलेगी. साथ ही साथ उन्हें अपनी वित्तीय गतिविधियों में पारदर्शिता लाने एवं प्रतिस्पर्धी होने में मदद मिलेगी. दरअसल सरकार वित्तीय क्षेत्र को भरोसेमंद और मजबूत बनाना चाहती है. इसी मकसद से कुछ सरकारी बैंकों का विलय किया गया है. सरकार का मानना है कि बड़े बैंक होने से बैंकों को पूंजी की कमी नहीं होगी.
सरकार सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों पर निगरानी की व्यवस्था को और भी मजबूत बनाना चाहती है ताकि लोगों की जमा पूंजी सुरक्षित रहे. वित्त मंत्री ने आइडीबीआइ बैंक में सरकार की हिस्सेदारी को कम करने की भी घोषणा की है. इससे सरकार को विनिवेश लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी और बैंक को बैंकिंग गतिविधियों में तेजी लाने में भी आसानी होगी.
बैंकिंग क्षेत्र से जुड़ी एक महत्वपूर्ण घोषणा बैंक जमा पर गारंटी सीमा को बढ़ाकर पांच लाख रूपये करना है. इस सीमा में बढ़ोतरी की मांग बैंक खाताधारक एक लंबे समय से कर रहे थे, लेकिन पीएमसी घोटाले के बाद इसमें विशेष तेजी आयी थी. अब यदि कोई बैंक डूबता है, तो बैंक खाते में जमा पांच लाख रूपये तक की राशि सुरक्षित रहेगी. इस घोषणा से निवेशकों का बैंकों पर भरोसा बढ़ेगा और बैंकों को सस्ती पूंजी की किल्लत भी नहीं होगी. गौरतलब है कि अभी तक डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन एक्ट, 1961 के तहत बैंक में जमा राशि में से कुल एक लाख रूपये तक की राशि सुरक्षित होती है.
बजट में इन प्रावधानों के अलावा बैंकिंग क्षेत्र के लिये सीधे तौर पर कोई उल्लेखनीय राहत की घोषणा नहीं की गयी है, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से बैंकों के कारोबार में बढ़ोतरी के लिये बजट में अनेक प्रावधान किये गये हैं.वर्ष 2021 में 15 लाख करोड़ रुपए की राशि कृषि ऋण के लिए रखे गये हैं.
मछली और पशुपालन, अक्षय ऊर्जा, स्मार्ट सिटी, विनिर्माण, कौशल विकास आदि के लिये बजट में प्रावधान किये गये हैं. इससे बैंकों को अपने क्रेडिट ग्रोथ बढ़ाने में मदद मिलेगी. यह जरूरी भी है, क्योंकि चालू वित्त वर्ष में छह दिसंबर, 2019 तक सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (एएससीबी) के वर्ष दर वर्ष के आधार पर क्रेडिट ग्रोथ में कमी आयी है. वर्ष 2019 के दौरान इसमें 7.9 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है, जबकि वर्ष 2018 के दौरान इसमें 15.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी. भारत को 2024 तक पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिये बैंकिंग क्रेडिट को मौजूदा स्तर से दोगुना करना जरूरी भी है.
बजट के प्रभाव : पैसे कितने बचेंगे कहना मुश्किल
आलोक पुराणिक
अर्थशास्त्री
बजट को स्टॉक मार्केट ने बिल्कुल भी पसंद नहीं किया. करीब हजार बिंदु नीचे गिरकर मार्केट बंद हुआ है. एक दिन में लगभग 2.43 प्रतिशत की गिरावट है. बजट के दिन स्टॉक मार्केट की बीते कई सालों में यह सबसे बड़ी गिरावट रही. लेकिन सच यह भी है कि स्टॉक मार्केट पूरी इकोनॉमी नहीं होता. अगर पूरे बजट को देखें, तो यह महत्वाकांक्षी होने की बात कर रहा है. साल 2019-20 में सरकार ने जो कर संग्रह अनुमान किया था कि करीब 16,49,582 करोड़ मिलेंगे. हालांकि वास्तविक आंकड़ा 15,04,527 करोड़ रहा है, यानी सरकार अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकी.
अब सरकार ने बजट में लक्ष्य रखा है कि 10 प्रतिशत का नॉमिनल ग्रोथ होगा. इसका मतलब है कि वास्तविक ग्रोथ के साथ इन्फ्लेशन को और मिला दें. आर्थिक सर्वेक्षण में कहा जा रहा था कि वृद्धि दर छह प्रतिशत के आसपास रहेगी और चार प्रतिशत के आसपास इन्फ्लेशन रहेगा. इस प्रकार कुल मिलाकर आंकड़ा 10 प्रतिशत बनता है. लेकिन, सवाल है कि क्या आनेवाले वक्त में छह प्रतिशत की ग्रोथ संभव है.
कुल मिलाकर यह बड़ी महत्वकांक्षावाली स्थिति है. आपने जो सारे अनुमान व्यक्त किये हैं, उसका आधार कितना गहरा है और कितना मजबूत है, वह देखनेवाली बात होगी. अगर अर्थव्यवस्था उतनी रफ्तार से नहीं बढ़ती, तो निश्चय ही जिस तरह से इस बार लक्ष्य पूरे नहीं हुए, वह आगे पूरे होंगे, उसकी आशंका बनी रहेगी. इस बजट की तारीफ इसलिए की जानी चाहिए कि किसानों के लिए कई बातें की गयी हैं. अगर ये योजनाएं जमीन पर उतारी जाती हैं, तो निश्चित उससे किसानों को फायदा मिलेगा.
करों में छूट देने से निवेश बढ़ेगा, यह थोड़ा अव्यावहारिक है. निवेश इसलिए आता है, जब कारोबारी को लगता है कि उसके द्वारा तैयार किये गये उत्पादों की बाजार में मांग और बिक्री है. तब व्यापारी उधार लाकर भी निवेश करने के लिए तैयार रहता है. तब वह शेयर जारी करके भी निवेश करेगा. कॉरपोरेट सेक्टर के लिए जो कटौती की गयी, उससे उनके मुनाफे बढ़े और उन्हें लगा मौजूदा बिजनेस से आनेवाले वक्त में वे थोड़ा ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं. वर्तमान में मांग का संकट है.
करों में जो राहत देने की कोशिश की गयी है, उससे मांग बढ़ सकती है. वित्त मंत्री ने कहा है कि जो नया कर ढांचा बनाया गया है, 15 लाख रुपये से कम सलाना आय वालों को लाभ मिलेगा. सरकार ने नयी व्यवस्था भी बना दी है कि अगर कोई व्यक्ति चाहे, तो पुरानी कर व्यवस्था के तहत आयकर दे सकता है. उसी स्थिति में आमजन को क्या मिलना है, क्या नहीं मिलना है, अभी इसका सटीक आकलन नहीं कर सकते.
लेकिन, अगर एक निवेशक या करदाता के जेब में पैसे बचेंगे, तो उसका फायदा मार्केट को होगा, लेकिन पैसे कितने बचेंगे, यह मोटे तौर पर हमें दिखायी नहीं पड़ता. अगर यह रकम आम आदमी के जेब में बची रही और खर्च के माध्यम से बाजार में जायेगी, तो निश्चिय ही बाजार में एक बूस्ट आयेगी और बढ़त होगी. हालांकि, सरकार ने लोगों को दो विकल्प दिये हैं. लेकिन, एेसा कभी हुआ नहीं कि सरकार ने कर की दो व्यवस्था की हो.
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