नयी दिल्ली : सरकार के अर्थव्यवस्था में सुधार आने के दावों के बीच मंगलवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक, दिसंबर में औद्योगिक उत्पादन (आईआईपी) 0.3 फीसदी घट गया. वहीं, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति जनवरी में बढ़कर 7.59 फीसदी पर पहुंच गयी, जो इसका साढे पांच साल से अधिक का उच्चस्तर है.
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा बुधवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक, दिसंबर में औद्योगिक उत्पादन में गिरावट आयी है. वहीं, खुदरा मुद्रास्फीति बढ़ी है. इससे अर्थव्यवस्था में दिख रहे सुधार के संकेतों के टिकाऊ होने को लेकर चिंता बढ़ी है. यह मुद्रास्फीति के जोखिम को भी रेखांकित करता है.
रिजर्व बैंक की इस महीने की शुरुआत में जारी मौद्रिक नीति समीक्षा में इन चिंताओं को ध्यान में रखते हुये प्रमुख ब्याज दर में कोई कटौती नहीं की गयी. सीतारमण ने मंगलवार को संसद में 2020-21 के बजट पर चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि आईआईपी में सकारात्मक वृद्धि से औद्योगिक गतिविधियों में आयी तेजी सहित सात संकेतक अर्थव्यवस्था में सुधार की ओर इशारा कर रहे हैं.
वहीं, इसके एक दिन बाद बुधवार को दिसंबर माह की औद्योगिक गतिविधियों को लेकर जारी आंकड़ों के अनुसार, विनिर्माण क्षेत्र के खराब प्रदर्शन के चलते आईआईपी 0.3 फीसदी घट गया. इससे पहले दिसंबर, 2018 में औद्योगिक उत्पादन 2.5 फीसदी बढ़ा था. पिछले साल अगस्त, सितंबर और अक्टूबर लगातार तीन महीने गिरावट में रहने के बाद नवंबर 2019 में औद्योगिक उत्पादन 1.8 फीसदी बढ़ा था.
अगस्त 2019 में इसमें 1.4 फीसदी की गिरावट आयी थी, जबकि सितंबर में 4.6 फीसदी और अक्टूबर में 4 फीसदी नीचे आया था. इसी तरह, बुधवार को ही जारी जनवरी के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित आंकड़ों में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़कर 7.59 फीसदी पर पहुंच गयी. यह इसका 68 माह का उच्चस्तर है. एक महीना पहले दिसंबर 2019 में यह 7.35 फीसदी थी.
वहीं, पिछले साल जनवरी महीने में यह कहीं नीचे 1.97 फीसदी पर थी. चालू वित्त वर्ष के पहले नौ माह (अप्रैल-दिसंबर 2019) के दौरान औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर घटकर 0.5 फीसदी रह गयी, जबकि इससे पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में आईआईपी में 4.7 फीसदी वृद्धि दर्ज की गयी थी.
इससे पहले, मई, 2014 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति 8.33 फीसदी पर पहुंची थी. आंकड़ों के अनुसार, खुदरा मुद्रास्फीति में यदि खाद्य मुद्रास्फीति की बात की जाये, तो जनवरी, 2020 में यह 13.63 फीसदी रही, जबकि एक महीने पहले दिसंबर, 2019 में यह 14.19 फीसदी थी. हालांकि, जनवरी 2019 में इसमें 2.24 फीसदी की गिरावट दर्ज की गयी थी.
सब्जियों के मामले में महंगाई दर सालाना आधार पर इस साल जनवरी में उछलकर 50.19 फीसदी हो गयी, जबकि दलहन और उससे बने उत्पादों की मुद्रास्फीति बढ़कर 16.71 फीसदी रही. मांस और मछली जैसे अधिक प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों की महंगाई दर आलोच्य महीने में बढ़कर 10.50 फीसदी रही, जबकि अंडे के मूल्य में 10.41 फीसदी का उछाल आया.
इक्रा की प्रधान अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि विभिन्न श्रेणियों में दामों में तेजी को देखते हुए खाद्य मुद्रास्फीति चिंताजनक है. प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ के दाम ऊंचे बने रहने की आशंका है. एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज के शोध प्रमुख (मुद्रा) राहुल गुप्ता ने कहा कि यह लगातार दूसरा महीना है, जब खुदरा मुद्रास्फीति केंद्रीय बैंक के मुद्रास्फीति लक्ष्य के दायरे से ऊपर निकल गयी है. अगर मुद्रास्फीति लगातार 6 फीसदी से ऊपर बनी रहती है, हमें नहीं लगता कि रिजर्व बैंक अगली मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दर में कटौती करेगा.
औद्योगिक उत्पादन के आंकड़ों पर डेलॉयट इंडिया की अर्थशास्त्री रुमकी मजूमदार ने कहा कि दिसंबर में औद्योगिक उत्पादन के आंकड़ों में गिरावट से पिछले महीने से उद्योग गतिविधियों में जो सुधार दिखना शुरू हुआ है, उसके टिकने को लेकर चिंता बढ़ी है. यह समूची अर्थव्यवस्था की दृष्टि से अच्छा नहीं है, क्योंकि वैश्विक स्तर पर दिक्कतें पहले से उद्योग के लिए चुनौती बनी हुई हैं.
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