”1991 के आर्थिक उदारीकरण से क्रोनी कैपिटलिज्म में आयी कमी, मगर पूरी तरह से उबरने में वक्त लगेगा”

मुंबई : केंद्र सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) कृष्णमूर्ति सुब्रमणियन ने शनिवार को कहा कि 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद चहेते औद्योगिक घराने के साथ साठ-गांठ से नीति तय करने (क्रोनी कैपिटलिज्म) का चलन कम हुआ है, लेकिन देश को इससे पूरी तरह उबरकर पूरी तरह से कारोबार जगत के अनुकूल नीतियां बनाने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 22, 2020 6:26 PM

मुंबई : केंद्र सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) कृष्णमूर्ति सुब्रमणियन ने शनिवार को कहा कि 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद चहेते औद्योगिक घराने के साथ साठ-गांठ से नीति तय करने (क्रोनी कैपिटलिज्म) का चलन कम हुआ है, लेकिन देश को इससे पूरी तरह उबरकर पूरी तरह से कारोबार जगत के अनुकूल नीतियां बनाने की अवस्था में पहुंचने में अभी कुछ और दूरी तय करनी बाकी है.

उन्होंने कहा कि जब पूरे कारोबार जगत को ध्यान में रखकर नीतियां बनायी जायेंगी, तभी बाजार के अदृश्य हाथों को बल मिलेगा (बाजार कारगर होगा) और यही देश को पांच हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य तक पहुंचायेगा. वे शनिवार को आईआईटी कानपुर के अपने सहपाठियों और संस्थान के अन्य बैच के कार्यक्रम में लोगों को संबोधित कर रहे थे.

सुब्रमणियन ने कहा कि कारोबार के अनुकूल नीतियां वे होती हैं, जो देश में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देती हैं. हमें इस तरह की नीतियों को पूरी तरह अपनाने के लिए कुछ और दूरी तय करने की जरूरत है. इनसे उलट कारोबारियों से यारी-दोस्ती को ध्यान में रखकर नीतियां बनाने से सिर्फ खास-खास लोगों को ही लाभ मिलता है. हमें बाजार के अदृश्य हाथों को ताकत देने के लिए इससे (साठ-गांठ कर नीतियां बनाने से) बचने की जरूरत है.

भारत की नीति निर्माण प्रक्रिया पर आरोप लगता आया है कि स्वतंत्रता के बाद से 1991 में हुए उदारीकरण तक सिर्फ कुछ कारोबारियों को ध्यान में रखकर नीतियां बनायी गयीं. सुब्रमणियन ने साठ-गांठ के घटते प्रतिफल की ओर संकेत करते हुए कहा कि दूरसंचार क्षेत्र के स्पेक्ट्रम आवंटन को लेकर 2011 में जब कैग की रिपोर्ट आने के बाद ऐसी कंपनियों में निवेश पर कमाई शेयर सूचकांकों में वृद्धि की दर से काफी कम रही, जो ‘संपर्कों वाली’ कंपनी मानी जाती हैं.

उन्होंने कहा कि क्रोनी कैपिटलिज्म के साथ एक दिक्कत है, यह आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए कारोबार का बेहतर मॉडल नहीं है. उन्होंने कहा कि हमें हमेशा ऐसे रचनात्मक विध्वंस पर ध्यान देना चाहिए, जहां पहले से मौजूद कॉरपोरेट घरानों को चुनौतियां मिलती हों. सुब्रहमणियन ने स्वतंत्रता के ठीक बाद अपनायी गयी सरकारी क्षेत्र के वर्चस्व वाली नीति की आलोचना करते हुए प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा स्वतंत्रता के मौके पर दिये गये प्रसिद्ध भाषण ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी (नियति से मिलन)’ की चुटकी ली.

उन्होंने कहा कि समाजवाद के आलिंगन ने (देश को) नियति से मुलकात नहीं करायी. सुब्रमणियन ने नीति निर्माण की प्रक्रिया में अर्थव्यवस्था के हालिया सिद्धांतों पर ही निर्भर हो जाने (और कौटिल्य के) अर्थशास्त्र जैसे प्राचीन ग्रंथों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर देने को भी गलत बताया. उन्होंने कहा कि पिछले 100 साल में जो लिखा गया, सिर्फ वही विद्वता नहीं है, बल्कि यह सदियों पुरानी चीज है.

उन्होंने कहा कि अर्थशास्त्र में नैतिक तरीके से संपत्ति के सृजन की वकालत की गयी है. उन्होंने कहा कि हमें बाजार में भी भरोसा बहाल करने की जरूरत है. उन्होंने बजट में ‘असेंबल इन इंडिया’ पर जोर देने को लेकर कहा कि इसे ‘मेक इन इंडिया’ के विकल्प की तरह नहीं, बल्कि सहयोगी कार्यक्रम की तरह देखा जाना चाहिए.

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