वित्तीय एजेंडा तय करने में विकासशील देश निभायें भूमिका: रघुराम राजन
मुंबई: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर रघुराम राजन ने आज कहा कि नीति निर्माण में पश्चिमी देश, विकासशील देशों के हितों का भी ध्यान रखें इसके लिये जरुरी है कि वैश्विक वित्तीय एजेंडा तय करने में उभरती अर्थव्यवस्थायें भी बढचढकर भागीदारी निभायें.राजन ने यहां सेंट जेवियर कालेज के छात्रों को संबोधित करते हुये कहा, […]
मुंबई: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर रघुराम राजन ने आज कहा कि नीति निर्माण में पश्चिमी देश, विकासशील देशों के हितों का भी ध्यान रखें इसके लिये जरुरी है कि वैश्विक वित्तीय एजेंडा तय करने में उभरती अर्थव्यवस्थायें भी बढचढकर भागीदारी निभायें.राजन ने यहां सेंट जेवियर कालेज के छात्रों को संबोधित करते हुये कहा, ‘वैश्विक अर्थव्यवस्था में उभरते बाजारों की भूमिका तो बढी है लेकिन उनकी सबसे बडी कमजोरी यह है कि वैश्विक एजेंडा तय करने में उनकी भागीदारी नहीं होती है. ये देश केवल प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं लेकिन आगे बढकर भागीदारी नहीं निभाते हैं.’
रिजर्व बैंक गवर्नर ने इस मामले में विशेष तौर पर अमेरिका में मौद्रिक नीति में मात्रात्मक सरलता जैसे बदलावों का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि आपस में एक दूसरे से जुडे वैश्विक बाजार में इस तरह की घरेलू नीतियों को उभरते बाजारों पर गहरा असर पडता है. उन्होंने कहा कि ऐसे में अपने विचारों को सामने रखने का सकारात्मक असर होता है.
राजन ने कहा, ‘अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) भी अब कुछ ऐसे कदम उठाने की सोच रहा है जिनके सुझाव हम देते रहे हैं. वह नकदी प्रवाह बढाने जैसे मुद्दों पर गौर कर रहा है. वह देखना चाहता है कि इनका बाहरी अर्थव्यस्थाओं पर क्या असर हो सकता है और इस तरह के कदम दुनिया के लिये शुद्ध रुपये से सकारात्मक होते हैं अथवा नहीं.’
उन्होंने कहा, ‘स्पष्ट तौर पर ऐसी नीतियों को उन देशों पर सकारात्मक प्रभाव होना चाहिये जो उन्हें चला रहे हैं लेकिन उनका विशुद्ध रुप से दूसरे देशों के लिये भी सकारात्मक असर होना चाहिये.’ राजन पश्चिमी देशों की उदार एवं समझौतावादी नीतियों और भारत जैसे विकासशील देश पर उनके प्रतिकूल असर के बारे में खुलकर अपने विचार व्यक्त करते रहे हैं. वह आईएमएफ और विश्व बैंक जैसे बहुपक्षीय संस्थानों के खिलाफ बोलते रहे हैं और उनका कहना है कि ये संस्थाएं भी वास्तविकता से अनभिग्य हो सकती है.
राजन ने शिकागो के बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस के साथ अपने जुडे होने की याद करते हुये कहा कि वहां यह परंपरा है कि अपनी बात कहो और जितना विवादस्पद बन सकते हैं उतना विवादित बनो. उन्होंने कहा कि शुरु में यह खराब लगता है कि फलां व्यक्ति शिकायत कर रहा है, लेकिन कुछ समय बाद नियामक को लगता है कि यह सही बात है. ‘मेरा मानना है कि अपनी बात कहने में कोई बुराई नहीं है क्योंकि इसके बाद हमें उसका जवाब मिलता है और बदलाव आता है. इसलिये शुरु में अपनी बात जोरदार ढंग से कहिये, बाद में इससे फायदा होगा.’ विकसित देशों में आने वाले दिनों में दरें बढने और भारत से संभावित पूंजी की निकासी बढने के बारे में राजन ने कहा, ‘हमें अपने वृहद आर्थिक कारक मजबूत करने होंगे और इस तरह की किसी भी घटना से बचाव के उपाय करने होंगे.’