कोलगेट:केंद्र ने कहा,218 कोल ब्लॉकों की फिर हो नीलामी,पर 40 को मिले छूट

नयी दिल्‍ली: केंद्र सरकार ने आज उच्चतम न्यायालय से कहा कि वह ‘उन सभी 218 कोयला ब्लाकों को नीलामी के जरिए फिर से आबंटित किए जाने के पक्ष में है.’ जिनके आबंटन को गैरकानूनी घोषित किया जा चुका है. लेकिन साथ ही वह उसने इनमें से 40 ब्लाकों के मामले में इससे ‘छूट’ चाहती है […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 1, 2014 8:05 PM

नयी दिल्‍ली: केंद्र सरकार ने आज उच्चतम न्यायालय से कहा कि वह ‘उन सभी 218 कोयला ब्लाकों को नीलामी के जरिए फिर से आबंटित किए जाने के पक्ष में है.’ जिनके आबंटन को गैरकानूनी घोषित किया जा चुका है. लेकिन साथ ही वह उसने इनमें से 40 ब्लाकों के मामले में इससे ‘छूट’ चाहती है क्योंकि उनमें खनन हो रहा है औेर वे उनके कोयले का अंतिम इस्तेमाल करने वाले बिजली संयंत्रों के लिये तैयार हैं.

प्रधान न्यायाधीश आर एम लोढा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने नरेन्द्र मोदी सरकार का दृष्टिकोण स्पष्ट करते हुये कहा, ‘सरकार न्यायालय के 25 अगस्त के फैसले के साथ है. हम 218 कोयला खदानों की फिर से नीलामी करना चाहते हैं. हमें खुशी होगी यदि इनमें से करीब 40 खदानों को बचा सकें जिनमें काम हो रहे हैं और वे उत्पाद का अंतिम इस्तेमाल करने वाले संयंत्रों को (आपूर्ति करने) के लिये तैयार हैं.’

अटार्नी जनरल ने इसके साथ ही कहा कि उन 40 खदानों को, जिनके लिये आवश्यक मंजूरी विचाराधीन है और वे काम कर रही हैं, ‘एक जैसा’ नहीं मानना चाहिए और उन्हें निरस्तीकरण से ‘छूट दी जा सकती है’ बशर्ते वे सरकार को 295 रुपए प्रति टन की दर से क्षतिपूर्ति के लिये राजी हों और इस घाटे को पूरा करने के लिये 95 रुपए प्रति टन की दर से बिजली खरीद का समझौता करने के लिये तैयार हों.’

उन्होंने कहा कि 40 खदानों को ‘निरस्तीकरण के गिलोटिन’ से बचाने की जरुरत है क्योंकि बिजली आपूर्ति की कमी के संकट से जूझ रहे देश में कोयला की उपलब्धता को लेकर अनिश्चतता संयंत्रों को प्रभावित कर सकती है. रोहतगी ने कहा कि सरकार सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की कोई भी समिति बनाने के पक्ष में नहीं है. शीर्ष अदालत ने सुझाव दिया था कि इन आबंटनों को गैरकानूनी घोषित करने के फैसले के नतीजों का विश्लेषण करने के लिये सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की समिति बनायी जाये.

अटार्नी जनरल ने कहा, ‘हम कोई समिति नहीं चाहते. यदि इन्हें जाना है तो सभी (कोयला खदान आबंटन) को जाना चाहिए. मेरी राय ही सरकार का विचार है.’ न्यायालय ने इस बारे में केंद्र सरकार को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हुये कहा, ‘केंद्र सरकार का रुख स्पष्ट है कि नीलामी होनी चाहिए. उनका साफ कहना है कि सभी 218 कोयला खदानों की नीलामी होनी चाहिए.’

न्यायालय ने कहा, ‘इन आबंटनों को गैरकानूनी पाया गया है. इसलिए वह (केंद्र) नये सिरे से प्रक्रिया शुरु करना चाहता है.’ इस मामले की सुनवाई के दौरान रोहतगी ने कहा कि खनन कर रही 40 खदानों की तरह ही छह अन्य खदाने भी हैं जो संयंत्रों में उपयोग के लिये ‘पूरी तरह तैयार’ हैं और यदि सख्ती से फैसले का पालन करना है तो एक ही झटके में सारे आबंटन रद्द करने होंगे. शीर्ष अदालत की सुनवाई गैर सरकारी संगठन कामन काज और अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा की जनहित याचिकाओं से उठे मुद्दों के ईदगिर्द ही हो रही थी.

गैर सरकारी संगठन के वकील प्रशांत भूषण और वकील शर्मा का तर्क था कि चूंकि 1993 से 2010 के दौरान कोयला खदानों के आबंटन में कोई पारदर्शिता नहीं थी और इसे गैरकानूनी घोषित किया गया है, इसलिए सभी 218 खदानों का आबंटन रद्द किया जाना चाहिए. न्यायालय ने केंद्र सरकार और तीन संगठनों कोल प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन, स्पांज आयरन मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन और इंडिपेन्डेन्ट पावर प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन आफ इंडिया को हलफनामे दाखिल करने का निर्देश देते हुये इस मामले की सुनवाई नौ सितंबर के लिये स्‍थगित कर दी.

उच्चतम न्यायालय ने 25 अगस्त के फैसले में 1993 से 2010 के दौरान कोयला खदानों के सभी 218 आबंटन गैरकानूनी घोषित कर दिये थे. न्यायालय ने अपने फैसले में ये आबंटन करने वाली जांच समिति की 36 बैठकों में अपनायी गयी प्रक्रिया की निन्दा करने के लिये हर तरह के शब्दों का प्रयोग किया था.

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