नयी दिल्ली : शीर्ष न्यायालय ने आज 1993 से 2010 के बीच के सभी कोल ब्लॉकों को रद्द करने का फैसला सुनाने के साथ यह भी कहा है कि इससे उत्पन्न परिस्थितियों पर विचार करना करना होगा. सरकार के दावे को संज्ञान में लेते हुए अदालत ने कहा कि सरकार उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है. पूर्व की यूपीए सरकार ने इस मामले की सुनवायी के दौरान अदालत से आग्रह किया था कि कोल ब्लॉक लेने वाली कंपनियों ने इस कार्य में दो लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश कर दिये हैं, इसलिए इन आवंटनों को रद्द नहीं किया जाये.
वहीं, मौजूदा एनडीए सरकार ने भी अदालत से कहा था कि वह वैसे 46 कोयला ब्लॉकों जहां कार्य आरंभ हो चुके हैं, उनका आवंटन रद्द नहीं करे. हालांकि सरकार ने अदालत से यह भी कहा था कि कोर्ट के कड़े फैसले से उत्पन्न सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियों का सामना करने के लिए वह तैयार है. अब जब कोर्ट का फैसला आ गया है तब एनडीए सरकार को पॉवर व बैंकिंग सेक्टर को खतरे से उबारने की रणनीति पर काम करना होगा.
दरअसल, 1993 से 2010 के सभी निजी कोल ब्लॉक के आवंटन को रद्द किये जाने के फैसले को भारत के कॉरपोरेट जगत में एक जबरदस्त झटके के तौर पर देखा जा रहा है. अदालत ने सिर्फ सरकारी क्षेत्र के एनटीपीसी और सेल के एक -एक ब्लॉक और अति वृहद विद्युत परियोजना के दो ब्लॉक के आवंटन को रद्द नहीं किया है. न्यायालय ने रद्द किये गये कोल ब्लॉक से संबंधित कंपनियों को छह महीने में अपना काम समेटने व खनन नहीं शुरू होने से हुए नुकसान की भरपाई करने को कहा है. अदालत ने कैग की उस दलील को स्वीकार किया है कि कोयला ब्लाकों में उत्पादन चालू नहीं होने के कारण 295 रुपए प्रति टन की दर से राजस्व का नुकसान हुआ. अत: मुख्य न्यायाधीश आरएस लोढ़ा की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने संबंधित कंपनियों को इस नुकसान की भरपाई का निर्देश भी दिया है. शीर्ष अदालत ने 14 जुलाई 1993 के बाद से हुए कोल ब्लॉक आवंटन करने के लिए गठित स्क्रीनिंग कमेटियों की बैठक, आवंटन की प्रक्रिया व पारदर्शिता के अभाव पर ही नाराजगी जतायी है.
कैग ने 2012 की अपनी रिपोर्ट में पारदर्शिता के अभाव में गैर जिम्मेदाराना तरीके से आवंटित किये गये कोल ब्लॉक के कारण 33 बिलियन डॉलर के नुकसान का अनुमान लगाया था. स्टील, सीमेंट व पॉवर सेक्टर की लगभग 200 से अधिक कंपनियों को ये कोल ब्लॉक आवंटित किये गये थे.
अर्थव्यवस्था के जानकार और इस फैसले से प्रभावित पक्ष अपने-अपने हिसाब से नफा-नुकसान का आकलन कर रहे हैं. इस फैसले को लेकर बाजार पहले से ही आशंकित था. सोमवार को सेंसेक्स में मामूली सुधार आने के बाद मंगलवार को उसमें जबरदस्त गिरावट आयी थी. बिजनेस अखबार इकोनॉमिक्स टाइम्स के वेब संस्करण ने आइडीबीआइ बैंक के अध्यक्ष एमएस राघवन के हवाले से लिखा है कि उनके बैंक द्वारा कोयला खनन के काम में लगी कंपनियों को दिये गये 2000 करोड़ रुपये के कर्ज प्रभावित होंगे. अदालत के संभावित फैसले के मद्देनजर आज बैंक इंडेक्स सुबह से ही एक प्रतिशत दबाव में ट्रेड कर रहा था. किंगफिशर को कर्ज देने के कारण पहले ही चुनौतियों से जूझ रहे आइडीबीआइ बैंक के शेयर में बाजार खुलने के साथ ही 5.3 प्रतिशत की गिरावट आ गयी.
शीर्ष अदालत के फैसले का असर वैसी कंपनियों के शेयर पर प्रमुखता से दिखा जो कोल ब्लॉक से जुड़ी हैं. जिंदल स्टील एंड पॉवर के शेयरों में आज दस फीसदी से अधिक की गिरावट आयी, जबकि हिंडाल्को के शेयर भी 0.75 प्रतिशत गिरे. अदालत के फैसले से केनरा बैंक, पंजाब नैशनल बैंक के शेयर भी गिरे. पॉवर सेक्टर से जुड़ी कंपनियों ने इनसे भी कर्ज ले रखा है. हालांकि इस फैसले के बाद के कोल इंडिया व रिलायंस पॉवर के शेयर चढ़े. मध्यप्रदेश के सासन स्थित अति वृहद विद्युत परियोजना में रिलायंस पॉवर की हिस्सेदारी का उसे लाभ मिला.
एक और प्रमुख अंगरेजी बिजनेस अखबार बिजनेस स्टैंडर्ड के वेब संस्करण ने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार द्वारा इस मामले में कोर्ट में दी गयी दलील के हवाले से लिखा है कि आवंटन रद्द होने पर इस काम में लगी कंपनियों को 2.86 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा, जिसका उन्होंने निवेश किया है. खास ऊर्जा व बैंकिंग क्षेत्र इससे प्रभावित होगा. हालांकि एनडीए सरकार ने इस तरह का कोई आंकड़ा पेश नहीं किया, लेकिन वह उत्पन्न चुनौतियों का मुकाबला करने को तैयार है.
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