अब DLF नहीं जुटा पायेगा शेयर बाजार से पैसा, SEBI ने लगायी 3 साल की रोक

मुंबई : भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने डीएलएफ कंपनी पर बड़ी कार्रवाई करते हुए आज उसे शेयर बाजार में कारोबार करने से प्रतिबंधित कर दिया है. यह प्रतिबंध तीन साल के लिए लागू किया गया है. डीएलएफ के चेयरमैन के.पी. सिंह, वाइस-चेयरमैन राजीव सिंह और कुछ अन्य पर यह प्रतिबंध लगाया गया है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 13, 2014 4:51 PM

मुंबई : भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने डीएलएफ कंपनी पर बड़ी कार्रवाई करते हुए आज उसे शेयर बाजार में कारोबार करने से प्रतिबंधित कर दिया है. यह प्रतिबंध तीन साल के लिए लागू किया गया है. डीएलएफ के चेयरमैन के.पी. सिंह, वाइस-चेयरमैन राजीव सिंह और कुछ अन्य पर यह प्रतिबंध लगाया गया है.

सेबी ने कहा कि डीएलएफ ने 2007 में आईपीओ(आरंभिक सार्वजनिक पेशकश)जारी करते समय ग्राहकों को गलत सूचना उपलब्‍ध करायी थी. यह बाजार नियमों के खिलाफ है. सेबी ने कहा कि आदेश के तहत कंपनी पूरी तरह से बाजार से दूर रहेगी.सेबी इस बात की जांच कर रहा था कि क्‍या डीएलएफ ने प्रोपर्टी डेवलपर के अपने आईपीओ में इस बात का खुलासा किया था कि उसपर कितने कानूनी मामले लंबित हैं और उसकी सहायक कंपनियां कौन-कौन सी हैं.

सेबी की ओर से डीएलएफ के अध्‍यक्ष और उपाध्‍यक्ष के अलावे उसके 5 और एक्‍सक्‍यूटिव्‍स टीसी गोयल,पिया सिंह, जी.एस. तलवार. कामेश्‍वर स्‍वरुप और रमेश संका को भी तीन सालों तक शेयर बाजार से दूर रहने का आदेश दिया गया है.

सेबी के पूर्णकालिक सदस्य राजीव अग्रवाल ने नियमक के 43 पृष्ठ के आदेश में कहा कि मैनें पाया कि यह मामला सक्रिय तरीके से और जानबूझकर किसी सूचना को दबाने का मामला है, ताकि डीएलएफ के आईपीओ के समय शेयर जारी करने के दौरान निवेशकों को धोखा दिया जा सके और उन्‍हें गुमराह किया जा सके.

आदेश में कहा गया है कि इस मामले में जो उल्लंघन दिखे हैं वे गंभीर हैं और उनका प्रतिभूति बाजार की सुरक्षा व सच्चाई पर बडा प्रभाव पडा अग्रवाल ने कहा, मेरे विचार में इस मामले में जो गंभीर उल्लंघन हुए हैं ऐसे में बाजार के प्रति निष्ठा की रक्षा के लिए प्रभावी कार्रवाई की जरुरत है. डीएलएफ ने 2007 में आईपीओ से 9,187 करोड रुपये जुटाए थे.

हालांकि नियामक ने डीएलएफ पर किसी तरह का जुर्माना नहीं लगाया है, लेकिन प्रतिबंध आदेश से डीएलएफ व छह कार्यकारी तीन साल तक प्रतिभूति बाजार में किसी तरह की खरीद-फरोख्त नहीं कर पाएंगे और साथ ही वे धन भी नहीं जुटा पाएंगे. सेबी ने कहा कि ये 6 व्यक्ति आईपीओ के लिए दस्तावेज जमा कराए जाने के समय शीर्ष प्रबंधन स्तर का हिस्सा थे. कंपनी पर आरोप है कि उसने ‘जाली लेनदेन’ के जरिये तीन अनुषंगियों के साथ सौदो में कुछ चीजों का खुलासा नहीं किया.

जहां सिंह और उनके पुत्र और पुत्री तथा गोयल अभी भी डीएलएफ के बोर्ड में हैं, जबकि संका अब कंपनी के साथ नहीं हैं. डीएलएफ देश की सबसे बडी रीयल एस्टेट कंपनी है जिसका सालाना कारोबार 10,000 करोड रुपये तथा बाजार पूंजीकरण 26,000 करोड रुपये का है. 2007 में सूचीबद्धता के बाद कंपनी का बाजार पूंजीकरण एक लाख करोड रुपये के पार चला गया था, लेकिन बाद में यह नीचे आ गया.

कंपनी और उसके शीर्ष कार्यकारियों को सूचनाओं को सार्वजनिक करने और निवेशक संरक्षण (डीआईपी) संबंधी सेबी के दिशानिर्देशों के अलावा व्यापार में धोखाधडी वाले और अनुचित व्यवहार रोधक (पीएफयूटीपी) नियमों के उल्लंघन का भी दोषी पाया गया है. सिंह परिवार और संबंधित इकाइयां डीएलएफ के मुख्य प्रवर्तक हैं और इनके पास कंपनी की 74.91 प्रतिशत हिस्सेदारी है. डीएलएफ को हाल के समय में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) की कार्रवाई भी झेलनी पडी है.

डीएलएफ ने इस आदेश पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है

सेबी ने अप्रैल, 2010 में दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के बाद जांच शुरू की थी. नियामक को किम्सुक कृष्ण सिन्हा नाम के व्यक्ति द्वारा दायर शिकायतों की जांच करने को कहा गया था. सिन्हा ने 2007 में सेबी के पास भी शिकायत दर्ज कराई थी. ये शिकायतें मुख्य रुप से डीएलएफ की कथित रुप से संबंधित इकाइयों के साथ लेनदेन के बारे में थीं.

सेबी ने कहा कि डीएलएफ की तीन अनुषंगियों सुदिप्ति, शालिका तथा फेलिसाइट को शेयरों का स्थानांतरण ‘जाली सौदों’ के रुप में किया गया. उस समय कंपनी के गैर कार्यकारी निदेशक रहे जी एस तलवार को सेबी ने ‘संदेह का लाभ’ दिया है. सेबी ने कहा कि यह स्थापित नहीं हो पाया कि क्या तलवार कंपनी के रोजाना के परिचालन में शामिल थे.

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