नयी दिल्ली : सरकार ने आज डीजल को नियंत्रणमुक्त कर दिया है. इसके साथ ही आज मध्यरात्रि से डीजल की कीमतें 3 रुपये 37 पैसे घट जायेंगे. एक प्रेस कांफ्रेंस में वित्तमंत्री अरूण जेटली ने बताया कि आज से सरकार ने डीजल पर से अपना नियंत्रण हटा लिया है. अब इसकी कीमतों का फैसला बाजार करेगा.
उन्होंने कहा कि जिस प्रकार पेट्रोल की कीमतों को बाजार के हवाले कर दिया गया है उसी प्रकार अब डीजल भी बाजार के हवाले कर दिया गया है. कच्चे तेलों के दामों पर भारतीय बाजारों में भी डीजल की कीमतें तय की जायेंगी. नफा-नुकसान के आधार डीजल की कीमतों का निर्धारण तेल कंपनियों का काम होगा.
इसके साथ ही उन्होंने घोषणा की कि अब एलपीडी सिलिंडरों की सब्सिडी सीधे उपभोक्ताओं के खाते में ट्रांसफर की जायेगी. 10 नवंबर से खाता में राशि ट्रांसफर का काम शुरू कर दिया जायेगा. इसी उद्देश्य से जन-धन योजना के तहत करोड़ो खाते खुलवाये गये थे. जिनका अभी भी बैंक खाता नहीं होगा उनके लिए पुरानी स्कीम लागू रहेगी.
उक्त निर्णय आज हुई कैबिनेट की बैठक में किया गया. इसके साथ-साथ निर्णय किया गया कि प्राकृतिक गैस की कीमतें 5.61 प्रति बैरल निर्धारित की गयी है.
डीजल के दाम में पांच साल में यह पहली कटौती है. इससे पहले 29 जनवरी 2009 को डीजल में दो रुपये की कटौती की गई थी. डीजल के दाम में पिछली बार एक सितंबर को 50 पैसे की वृद्धि की गई थी और जनवरी 2013 के बाद से इसमें 19 किस्तों में 11.81 रुपये लीटर की वृद्धि हो चुकी है.
डीजल के दाम नियंत्रणमुक्त करने का इससे अच्छा अवसर नहीं हो सकता था क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम चार साल के निचले स्तर पर हैं जबकि दो प्रमुख राज्यों में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान हो चुका है. भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने हाल ही में सरकार से ‘इस मौके का फायदा उठाने’ को कहा था. ऐसा समय जब मुद्रास्फीति पांच साल के निचले स्तर पर है और तेल कंपनियां पहली बार डीजल पर मुनाफा कमा रही हैं.
ब्रंट क्रूड तेल के दाम इस साल 25 प्रतिशत टूटकर लगभग 83 डालर प्रति बैरल पर आ गए हैं और इनके निकट भविष्य में इनके 100 डालर प्रति बैरल का स्तर छूने का अनुमान नहीं है. उल्लेखनीय है कि पूर्ववर्ती संप्रग सरकार ने 2010 में पेट्रोल की कीमतों को नियंत्रण मुक्त कर दिया था. इसके साथ ही उसने पिछले साल जनवरी में डीजल के दाम में हर महीने 50 पैसे लीटर वृद्धि का फैसला किया.
पेट्रोल के दाम तब से कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों के हिसाब से ही तय होती हैं और अगस्त के बाद से इसमें पांच बार कमी की जा चुकी है.डीजल बिक्री से होने वाला नुकसान या अंडर रिकवरी समाप्त हो चुकी है और तेल कंपनियों को सितंबर के दूसरे पखवाडे से मुनाफा होने लगा. कंपनियों को इसकी बिक्री से होने वाला मुनाफा (ओवर रिकवरी) 3.56 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गया.
कीमतों के नियंत्रण मुक्त होने का मतलब है कि सरकार एवं ओएनजीसी सहित सार्वजनिक तेल उत्खनन कंपनियां अब डीजल पर सब्सिडी नहीं देंगी. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेट्रोलियम सब्सिडी के लिए बजट में 63,400 करोड रुपये का प्रावधान किया है जो कि पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 25 प्रतिशत कम है. लेकिन इस बार कच्चे तेल के दाम में गिरावट को देखते हुये सब्सिडी बिल बजट प्रावधान से उपर निकलने की संभावना नहीं लगती.
मूल रुप से पेट्रोल व डीजल के दाम अप्रैल 2002 में नियंत्रण मुक्त किया गया था जबकि राजग सरकार सत्ता में थी. लेकिन राजग शासनकाल के आखिरी दिनों में जब कच्चे तेल के दाम बढने लगे सरकारी नियंत्रण वाली प्रशासनिक मूल्य प्रणाली फिर से लौट आई. इसके बाद कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम जब आसमान छूने लगे तो मूल्यों पर सरकारी नियंत्रण बनाये रखा.
हालांकि, जून 2010 में पेट्रोल के दाम नियंत्रण मुक्त कर दिये गये. उसके बाद से ही पेट्रोल के दाम नियंत्रणमुक्त हैं. देश की कुल ईंधन खपत में डीजल की खपत 43 प्रतिशत तक है. जनवरी 2013 में तत्कालीन संप्रग सरकार ने डीजल की बिक्री पर होने वाले नुकसान को धीरे धीरे छोटी-छोटी वृद्धि के साथ समाप्त करने का फैसला किया. इस तरह डीजल के दाम में आखिरी 50 पैसे की वृद्धि सितंबर 2014 में हुई जिसके साथ डीजल बिक्री पर नुकसान पूरी तरह समाप्त हो गया.
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