मुंबई: रिजर्व बैंक ने राज्य सरकारों के द्वारा बार-बार कर्जमाफी की योजनाओं की घोषणा करने पर ऐतराज जताया है. आरबीआइ के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि इन योजनाओं से कर्ज के उचित मूल्य के निर्धारण पर असर पड़ता है जिसके परिणामस्वरुप ऋण बाजार में गड़बड़ी पैदा होती है.
राजन ने कहा कि ग्राहकों की सुरक्षा के लिए सूक्ष्म वित्त ऋणदाताओं द्वारा दिए जाने वाले ऋण पर ब्याज दरों की उचित अधिकतम सीमा तय की जानी चाहिए. गौरतलब है कि तत्कालीन अविभाजित आंध्रप्रदेश में अक्तूबर 2010 में उपजे संकट के कारण सूक्ष्म वित्त (माइक्रो फाइनेंस) क्षेत्र की स्थिति काफी बिगड़ गई थी. इसके बाद आरबीआई द्वारा गठित मालेगाम समिति ने इस क्षेत्र के लिए 26 प्रतिशत ब्याज दर सीमा तय करने का सुझाव दिया था. देश के इस केन्द्रीय बैंक ने अप्रैल 2012 में इस सीमा को अधिसूचित किया था.
आंध्र प्रदेश सरकार ने उस समय कर्ज लेने वालों द्वारा आत्महत्या की घटनायें होने के बाद सूक्ष्म वित्त संस्थाओं द्वारा बलपूर्वक उनसे ऋण वसूली पर प्रतिबंध लगा दिया था. अब विभाजन के बाद आंध्र प्रदेश और तेलंगाना दोनों ही राज्य सरकारों ने पिछले साल आये चक्रवात फेलिन से प्रभावित किसानों का कर्ज माफ किये जाने की घोषणा कर दी है. तेलंगाना सरकार ने बट्टे-खाते में डाले गए ऋण की तय 25 प्रतिशत राशि बैंकों को दे दी है जबकि आंध्र प्रदेश सरकार ने अब तक ऐसा नहीं किया. अकेले इन दो राज्यों के कृषि क्षेत्र में बैंकों के करीब 1,300 अरब रुपए दांव पर लगे हैं.
ऐसे में आरबीआइ के गवर्नर का यह बयान महत्वपूर्ण है और राज्य सरकारों द्वारा ऐसी घोषणाएं करने के उनके भविष्य के निर्णयों पर व्यापक असर डाल सकता है.