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मौद्रिक नीति समीक्षा से पूर्व बढ़ा ब्याज दरों में कटौती का दबाव, चौंका सकता है राजन का फैसला

नयी दिल्ली : दो दिसंबर को रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की समीक्षा करने वाला है. इस पर उद्योग जगत, निवेशकों व आम लोगों की नजरें टिकी हैं. रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में कटौती किये जाने को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगायी जा रही हैं. एक तबका का मानना है कि महंगाई दर घटने के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 21, 2014 12:44 PM
नयी दिल्ली : दो दिसंबर को रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की समीक्षा करने वाला है. इस पर उद्योग जगत, निवेशकों व आम लोगों की नजरें टिकी हैं. रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में कटौती किये जाने को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगायी जा रही हैं. एक तबका का मानना है कि महंगाई दर घटने के बाद रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कटौती कर सकता है, वहीं दूसरे तबके का मानना है कि अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने और राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण के लिए रिजर्व बैंक ऐसा नहीं करेगा और इस संबंध में कोई फैसला जारी वित्तीय वर्ष के अंत में ही लिया जायेगा.
तीन दिन पहले केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने जब ब्याज दरों में कटौती किये जाने के लिए उपयुक्त माहौल होने की बात एक कार्यक्रम के दौरान अपने संबोधन में कही, तो एक बार फिर इसको लेकर अटकलें अपने चरम पर पहुंच गया. जेटली ने ब्याज दर कम करने के पीछे कई कारण गिनाये, जैसे महंगाई दर कम होना, क्रूड की कीमतें कम होना आदि. उनकी दलील है कि दर कम होने से कारोबारी माहौल में और सुधार होगा. वहीं, गुरुवार को सार्वजनिक क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक एसबीआइ की अध्यक्ष अरुंधति भट्टाचार्य ने कहा कि दो दिसंबर को होने वाली मौद्रिक समीक्षा में ब्याज दरों में कटौती किये जाने की संभावना नहीं है.
सबसे अहम बात यह कि मौद्रिक नीति की समीक्षा करने के उत्तरदायी संस्था रिजर्व बैंक से इस इस संबंध में दो अलग-अलग राय उभर कर सामने आ रही है. तीन दिन पहले वित्तमंत्री जेटली ने राजधानी दिल्ली के जिस सिटी निवेशक सम्मेलन में ब्याज दरें कम करने की पैरोकारी की, उसी कार्यक्रम में रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एसएस मुंदड़ा ने भी मौद्रिक नीति की समीक्षा के दौरान सभी कारकों को ध्यान में रखने की बात करके सकारात्मक संकेत दे दिया. हालांकि उन्होंने इस संबंध में कोई स्पष्ट टिप्पणी नहीं की.
उधर, पिछले सप्ताह रिजर्व बैंक के एक और डिप्टी गवर्नर एचआर खान ने मुंबई के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए इशारों में यह जताने की कोशिश की थी कि ब्याज दरों में कटौती की मांग अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक हो सकती है. उन्होंने कहा था कि महंगाई घटी है, लेकिन खाद्य पदार्थो की कीमतें खासकर सब्जियों की कीमतें अभी काफी अधिक हैं. उन्होंने कहा था कि खाद्य कीमतों को नियंत्रित करना अब भी चुनौती है. दरअसल, ऐसे कुछ अहम कारण हैं, जिसके कारण रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन हर ओर से ब्याज दरों में उठती कटौती की मांग पर शायद ध्यान नहीं दें. जैसे, जिंसों की कीमतों में कमी से महंगाई दर घटी, लेकिन उनकी मांग अब भी बरकरार है, खाद्य पदार्थो की कीमतें अब भी अधिक हैं और उनके मूल्य में जो कमी आयी है उसे अस्थायी माना जा रहा है. वैश्विक स्तर पर क्रूड की कीमतें घटी हैं, लेकिन उसके भविष्य को लेकर आशंकाएं हैं. पक्के तौर पर यह कहना संभव नहीं है कि आगे भी इसमें कमी आयेगी ही. अगर भविष्य में इसकी कीमतें बढ़ी, तो फिर से देश में महंगाई बढ़ेगी. अमेरिका के फेडरल रिजर्व के कदम का भी ब्याज दर पर फैसला लेने के राजन इंतजार कर सकते हैं. अगर अमेरिकी फेडरल रिजर्व अपनी ब्याज दरें बढ़ाता है, तो उभरते भारतीय बाजार से पूंजी बाहर जा सकती है, जिससे घरेलू मुद्रा पर दबाव बढ़ जायेगा.
आर्थिक जानकारों का मानना है कि महंगाई दर को आरबीआइ द्वारा तय लक्ष्य तक लाने के लिए खाद्य महंगाई में स्थायी गिरावट जरूरी है. विेषकों का कहना है कि मौजूदा रुझान या गिरावट अस्थायी है, लेकिन एक तबके का यह भी कहना है कि अभी कीमतों में और नरमी आयेगी. बहरहाल, इन कयासों के बीच यह देखना दिलचस्प होगा कि 11 दिन बाद जब रघुराम राजन मौद्रिक नीति की समीक्षा करेंगे तो वे क्या फैसला लेंगे. पिछले एक साल से अधिक के कार्यकाल में उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को दुरुस्त के लिए प्रशंसनीय कार्य किया है, लेकिन उनकी असली चुनौती इस सिलसिले को जारी रखना और रिजर्व बैंक की विश्वसनीयता को बरकरार करना है और नि:संदेह वे दबाव मुक्त होकर वही फैसला लेंगे जो इसके हित में होगा.

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