नयी दिल्ली: देश से विदेशी मुद्रा निकासी बढ़ने और चालू खाते के घाटे के बिगड़ते हालात से जूझती सरकार ने अब सरकारी बॉंड जारी करने की संभावनायें टटोलनी शुरु कर दी हैं ताकि विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति को मजबूत बनाया जा सके.वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार रघुराम राजन ने विदेशी बैंकरों के साथ बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा ‘‘उन्होंने हमें सावरेन बॉंड इश्यू सहित कई सुझाव दिये हैं.
सभी तरह के विकल्प हमारे सामने मौजूद हैं, जब भी आवश्यकता पड़ेगी हम इन्हें परखेंगे.’’भारत इससे पहले भी कई मौकों पर भुगतान संतुलन के संकट से बचने के लिये सरकारी बॉंड जारी कर चुका है. राजन द्वारा बुलाई गई इस बैठक में सिटी बैंक, बैंक ऑफ अमेरिका और बार्कलेज सहित कई बैंकों के प्रतिनिधि उपस्थित थे.उन्होंने कहा कि बॉंड इश्यू के अलावा बैंकरों ने ऋण बाजार को और अधिक लचीला बनाने के सुझाव दिये. ‘‘उन्होंने बाजारों को और ज्यादा लचीला बनाने सहित कई मुद्दों पर अपने सुझाव दिये. भारत को किस तरह से धन जुटाना चाहिये, यह कैसे प्राप्त किया जा सकता है? .हम इस पर गौर करेंगे.
राजन ने कहा ‘‘यह बैठक निर्णय करने के लिये नहीं थी, यह जानकारी जुटाने के लिये बुलाई गई थी. इस तरह की बातचीत जारी रहेगी. अब हमारे पास कई तरह के सुझाव है जिनपर विचार किया जा सकता है.’’ सरकार ने भुगतान संतुलन के संकट से निपटने के लिये वर्ष 1991 में भारत विकास बॉंड जारी किये और 1.6 अरब डालर जुटाये. भारत के परमाणु परीक्षण और उसके बाद लगे प्रतिबंधों से उबरने के लिये 1998 में ‘‘रिसर्जेट इंडिया बॉंड’’ जारी किये गये. इस योजना में 4.2 अरब डालर राशि जुटाई गई.
तीन साल बाद 2001 में एक बार फिर सरकार ने ‘‘इंडिया मिलिनियम डिपाजिट’’ बॉंड जारी किये. अंतरराष्ट्रीय बाजार में ईंधन के दाम बढ़ने और पूंजी प्रवाह घटने के बीच ये बांड जारी किये गये जिसमें सरकार 5.5 अरब डालर जुटाने में सफल रही थी.
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